शेषराव वानखेड़े के महान योगदान को सलाम
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 24, 2025 07:07 AM2025-01-24T07:07:40+5:302025-01-24T07:07:45+5:30
उनका सबसे बड़ा उपहार भारत की क्रिकेट राजधानी - मुंबई में एक सुंदर स्टेडियम का था.

शेषराव वानखेड़े के महान योगदान को सलाम
अभिलाष खांडेकर
राजनेताओं पर अक्सर खेलों का राजनीतिकरण करने का आरोप लगता है, जब वे खेल प्रशासन में प्रवेश करते हैं और गंदी चालें चलते हैं, जिसमें वे माहिर होते हैं. भारतीय कुश्ती महासंघ के बृजभूषण शरण सिंह इनमें से सबसे ताजा नाम हैं. लेकिन कुछ सम्मानजनक अपवाद भी रहे हैं. बैरिस्टर शेषराव कृष्णराव वानखेड़े इसी दूसरी श्रेणी के थे और एक अलग ही उम्दा वर्ग से थे.
आज की पीढ़ी के लाखों क्रिकेट प्रशंसक शायद यह नहीं जानते होंगे, न ही उनके पास यह जानने का समय होगा या उन्हें इसकी आवश्यकता होगी कि महाराष्ट्र के ये राजनेता कौन थे और क्रिकेट में उनका क्या योगदान था. पहले मध्य प्रदेश विधानसभा और फिर महाराष्ट्र विधानसभा के लिए चुने गए वानखेड़े एक उत्साही क्रिकेट प्रशंसक और कुशल प्रशासक थे.
उन्होंने न केवल तत्कालीन बॉम्बे क्रिकेट एसोसिएशन (अब मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन) का नेतृत्व किया, बल्कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के भी वे अध्यक्ष रहे. हालांकि उस समय में, जब क्रिकेट आईपीएल के पैसा कमाने वाले टेलीविजन मैचों में परिवर्तित नहीं हुआ था, उनका सबसे बड़ा उपहार भारत की क्रिकेट राजधानी - मुंबई में एक सुंदर स्टेडियम का था.
हाल ही में वानखेड़े स्टेडियम ने 50 साल पूरे किए हैं, जो भारत में लोकप्रिय खेल क्रिकेट के इतिहास में एक बड़ी उपलब्धि है. पिछले रविवार को सैकड़ों क्रिकेट प्रेमी भारतीय क्रिकेट के ‘मक्का’ कहे जाने वाले स्टेडियम में एमसीए द्वारा आयोजित शानदार समारोह में शामिल होने के लिए उमड़ पड़े और एक साथ कई पुरानी यादें ताजा हो गईं.
एक विशाल क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण कोई मजाक नहीं है, खासकर मुंबई जैसे शहर में, जहां जमीन हमेशा से ही कम लेकिन महंगी रही है. किंतु देखिए एक अनुभवी राजनेता, महाराष्ट्र सरकार में पूर्व वित्त मंत्री के उत्साह और जज्बे का नतीजा यह हुआ कि आज हम वहां एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्थल देख रहे हैं.
हमारे देश में कई प्रतिष्ठित क्रिकेट मैदान हैं जैसे मद्रास (चेन्नई) का चेपॉक स्टेडियम या कलकत्ता (कोलकाता) का ईडन गार्डन्स. इन स्टेडियमों में कई बड़े मैच हुए हैं और कई कीर्तिमान बने और टूटे हैं. लेकिन जब क्रिकेट की बात आती है तो मुंबई और वानखेड़े स्टेडियम अपनी सभी अद्भुत कहानियों के साथ सबसे पहले दिमाग में आते हैं. वे एक दूसरे के पर्याय जो हैं.
बेशक, चेपॉक (1916) और ईडन गार्डन्स (1864) बहुत पुराने और आकर्षक मैदान हैं, जिन्होंने सदियों से ‘भद्रजनों के खेल’ को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. कोलकाता का विशाल मैदान भारत का सबसे पुराना क्रिकेट मैदान और दूसरा सबसे बड़ा स्टेडियम है. दूसरा उल्लेखनीय स्टेडियम ब्रेबोर्न (1936) था, जिसका नाम तत्कालीन गवर्नर लॉर्ड ब्रेबोर्न के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने क्रिकेट को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया (सीसीआई) को जमीन आवंटित की थी.
लेकिन कई सालों बाद, क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया (सीसीआई) और बॉम्बे क्रिकेट एसोसिएशन (बीसीए) में कुछ विवाद हुए और वे अलग हो गए. सीसीआई की प्रतिष्ठा और खेल में शुरुआती योगदान वास्तव में उल्लेखनीय है. वर्ष 1928 में बीसीसीआई के गठन के तुरंत बाद, 1933 में सीसीआई का जन्म हुआ. पटियाला के महाराजा, एक महान खेल प्रेमी, ब्रेबोर्न स्टेडियम बनाने के पीछे प्रेरक शक्ति थे, जो सीसीआई की संपत्ति है.
शेषराव वानखेड़े, जो बाद में बीसीए के अध्यक्ष बने, 1960 के दशक के अंत में अपने संघ और सीसीआई के बीच लगातार चल रही कलह के कारण अंदर से बेचैन हो गए और उन्होंने आगे बढ़ने का निर्णय ले लिया. इस प्रकार पहले वाले स्टेडियम के करीब ही एक अन्य क्रिकेट स्टेडियम का जन्म हुआ, जिसका नाम इसके निर्माणकर्ता वानखेड़े जी के नाम पर रखा गया.
इसकी स्वर्ण जयंती के अवसर पर, सुनील गावस्कर से लेकर रोहित शर्मा तक - मुंबई के सभी भारतीय क्रिकेट कप्तानों ने वानखेड़े को दिल से श्रद्धांजलि दी और ऐतिहासिक मैदान पर खेलने की अपनी अविस्मरणीय यादों को ताजा किया. दिलीप वेंगसरकर, सचिन तेंदुलकर, डायना एडुल्जी (महिला कप्तान), रवि शास्त्री और अजिंक्य रहाणे ने गर्व के साथ बताया कि ‘वानखेड़े’ में खेलना क्या मायने रखता है.
गावस्कर ने पहली बार 1974 में इस स्टेडियम को देखा था; रवि शास्त्री ने 1985 में बड़ौदा के खिलाफ रणजी मैच में यहां एक ओवर में छह छक्के लगाए थे, जबकि तेंदुलकर ने अपना अंतिम मैच 2013 में वानखेड़े स्टेडियम में खेला था, जिसमें उनकी मां रजनी जी भी मौजूद थीं. तेंदुलकर ने ताली बजाने वाले दर्शकों को रुंधे गले से बताया कि कैसे उन्होंने बीसीसीआई से अनुरोध किया था कि उनका विदाई मैच मुंबई में आयोजित किया जाए ताकि उनकी मां भी उन्हें शानदार घरेलू मैदान पर खेलते हुए देख सकें.
मुंबई और भारत के कई हिस्सों की क्रिकेट बिरादरी उस शाम बड़ी संख्या में वहां एकत्रित हुई थी, ताकि गौरवमयी इतिहास के साक्षी बन सकें और उन क्रिकेट दिग्गजों की अनकही कहानियां सुन सकें, जिन्हें हर कोई बेहिसाब पसंद करता है. महान क्रिकेट संरक्षक और लंबे समय से भुला दिए गए राजनेता शेषराव वानखेड़े की याद में इस तरह के खूबसूरत कार्यक्रम के आयोजन के लिए एमसीए को बधाई दी जानी चाहिए. गावस्कर, तेंदुलकर, वेगसरकर ने भी सभी के सामने एमसीए की पीठ थपथपाई.