RSS 100 Years: सर्वसमावेशिता ही है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संकल्प, समाज से जोड़ने वाला एक ही सूत्र

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 2, 2025 05:13 IST2025-10-02T05:13:58+5:302025-10-02T05:13:58+5:30

RSS 100 Years:डॉ. हेडगेवार ने समस्त समाज को अपना माना था और उनकी इसी सोच से प्रेरित होकर स्वयंसेवक समाज कार्य में जुटे.

RSS 100 Years live 1925-2025 resolution Rashtriya Swayamsevak Sangh inclusiveness nagpur mohan bhagwat blog Sunil Ambekar | RSS 100 Years: सर्वसमावेशिता ही है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संकल्प, समाज से जोड़ने वाला एक ही सूत्र

सांकेतिक फोटो

Highlightsसंघ के सौ वर्षों की यात्रा में हर स्वयंसेवक को समाज से जोड़ने वाला एक ही सूत्र है, और वह है सर्वसमावेशिता.आज देश-विदेश में संघ की पहचान समग्र समाज के संगठन के रूप में बन गई है. आरंभिक समय से ही संघ ने किसी प्रकार का सामाजिक भेदभाव नहीं किया.

सुनील आंबेकर

नागपुर की धरती पर सौ वर्ष पहले डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बीजारोपण किया गया था, उस संघ को आज समाज के सभी स्तरों पर व्यापक मान्यता मिल रही है. शताब्दी वर्ष के अवसर पर संघ के संगठन कौशल, संस्कार, शाखा प्रणाली और प्रबंधन के बारे में विभिन्न स्तरों पर चर्चा हो रही है. संघ को मिल रही सार्वभौमिक मान्यता का श्रेय वास्तव में किसे दिया जाना चाहिए, इस पर भी समालोचक और विद्वान मंथन कर रहे हैं. तथापि, संघ के सौ वर्षों की यात्रा में हर स्वयंसेवक को समाज से जोड़ने वाला एक ही सूत्र है, और वह है सर्वसमावेशिता.

यही संघ का मूल उद्देश्य भी है. डॉ. हेडगेवार ने समस्त समाज को अपना माना था और उनकी इसी सोच से प्रेरित होकर स्वयंसेवक समाज कार्य में जुटे. संघ ने अपनत्व की भावना से सबको जोड़ने का प्रयास किया और आज देश-विदेश में संघ की पहचान समग्र समाज के संगठन के रूप में बन गई है. संघ को जानने वालों को यह ज्ञात है कि आरंभिक समय से ही संघ ने किसी प्रकार का सामाजिक भेदभाव नहीं किया.

जाति या भाषा जैसे विभाजन इसमें कभी दृष्टिगोचर नहीं हुए. इसीलिए संघ की शाखाओं और वर्गों में सभी स्तरों के स्वयंसेवकों में आपसी स्नेह परिलक्षित होता है. इतना ही नहीं, संघ ने कभी भी महिलाओं को दोयम दर्जे का नहीं माना. और यही कारण है कि संघ की स्थापना के 11 वर्षों के भीतर ही राष्ट्रसेविका समिति का गठन हो गया और महिलाएं भी संघ के कार्यों में जुड़ गईंं.

डॉ. हेडगेवार के विचारों से ही प्रेरित होकर संघ ने हमेशा सामाजिक समरसता की भूमिका निभाई है. संघ ने ही आग्रह किया था कि मराठवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के नाम पर रखा जाए. संघ ने इस विचार का लगातार समर्थन किया है कि समाज के वंचित और शोषित वर्गों को मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण आवश्यक है.

जब देश में ओबीसी(अन्य पिछड़ा वर्ग) आरक्षण पर बहस चल रही थी, तब भी संघ आरक्षण के पक्ष में खड़ा रहा. समाज के सभी वर्गों को समानता के सूत्र में बांधकर देश में एकता स्थापित करने पर ही संघ का हमेशा जोर रहा है. इसी दृष्टि से भारत के उत्तर-पूर्व के राज्यों में भी संघ ने मूलभूत काम किए और वहां के लोग भी हमारे साथ जुड़े.

कई लोगों को वहां जाकर काम करना कठिन और असहज लगा, पर संघ ने वहां भी एकात्मता स्थापित करने की दिशा पहल की. समय के साथ होने वाले परिवर्तनों को संघ ने सदैव अपनाया है. आज तकनीकी का युग है और यह समय की मांग भी है और इसीलिए संघ भी इसका स्वागत करता है.

पर, संघ का मानना है कि तकनीकी परिवर्तन सर्वसमावेशी होने चाहिए और इससे समाज के प्रत्येक वर्ग का हित सुनिश्चित होना चाहिए. तकनीकी विकास से देश में खाई न बने, बल्कि वंचितों को प्रगति के अवसर मिलें. इसीलिए संघ ने स्वदेशी विकेन्द्रीकृत उत्पादन को प्रोत्साहन देने की वकालत की है.

संघ मानता है कि सिर्फ अंग्रेजी ही प्रमुख भाषा नहीं होनी चाहिए, सर्वसमावेशी सोच के साथ संघ ने सभी भाषाओं को  महत्व दिया है. समाज भी चाहता है कि हमारी सभी भाषाएं शैक्षणिक क्षेत्र और कार्यालयीन व्यवहार में व्यापक रूप से प्रयुक्त हों. वर्षों से संघ के स्वयंसेवक बिना किसी दिखावे के वंचित वर्ग की सेवा कर रहे हैं.

उनके प्रयत्नों से संघ का दायरा बढ़ा है. यदि आप संघ की सर्वसमावेशिता को जानना-परखना चाहते हैं तो किसी नजदीकी शाखा में जाकर देखिए. संघ की नई शाखा खुलते ही वहां के स्वयंसेवक आसपास के क्षेत्रों में जाते हैं और स्थानीय लोगों से आत्मीयता से संपर्क व संवाद स्थापित करते हैं. संघ में किसी भी व्यक्ति की जाति, भाषा या धर्म नहीं पूछा जाता.

‘भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र बने’ इस सोच के साथ सबको जोड़ा जाता है. इससे समाज में सकारात्मक परिवर्तन होते हैं और वे स्पष्ट रूप से परिलक्षित भी होते हैं. यह काम सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं है, जंगलों व दूरदराज के गांवों में भी संघ के स्वयंसेवक लोगों से संपर्क करते हैं. संघ का उद्देश्य है कि हमारा पर्यावरण और जीवनशैली भी सर्वसमावेशी हों.

इसीलिए संघ इस दिशा में प्रयासरत है कि सामाजिक समरसता, पर्यावरण, पारिवारिक जागरण, स्वावलंबी व्यवस्था और नागरिक कर्तव्य जैसे पांच परिवर्तन-बिंदुओं के माध्यम से हर व्यक्ति को जिम्मेदार नागरिक बनाया जाए. संघ की भविष्य की योजनाएं देश को परमवैभव तक पहुंचाने पर केंद्रित रहेंगी और इन योजनाओं की मूल भावना सदैव सर्वसमावेशिता ही होगी.

 

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