राजेश बादल का ब्लॉग: कांग्रेस में शामिल होंगे प्रशांत किशोर! लेकिन व्यक्ति ही नहीं, जमीनी स्तर पर संगठन भी जरूरी
By राजेश बादल | Published: April 26, 2022 08:06 AM2022-04-26T08:06:52+5:302022-04-26T08:09:47+5:30
प्रशांत किशोर और कांग्रेस के अंदर चल रही माथापच्ची इन दिनों सुर्खियों में है. देखा जा रहा है कि पार्टी के दिग्गज अब प्रशांत किशोर के इर्द-गिर्द मंडराने लगे हैं.
संसार की सबसे बुजुर्ग पार्टियों में से एक कांग्रेस इन दिनों अपना घर ठीक करने में लगी है, जो हालिया वर्षों में बिखरता सा नजर आ रहा है. बीते दशक में अनेक पार्टी कार्यकर्ता और नेता इस घर को छोड़ कर अपनी नई दुनिया बसा चुके हैं. अब इस घर को नए सदस्यों की तलाश है.
इस कड़ी में इन दिनों मोटी फीस लेकर राजनीतिक समन्वय का काम करने वाले महत्वाकांक्षी नौजवान प्रशांत किशोर के पार्टी में प्रवेश की चर्चा सुर्खियों में है. प्रशांत किशोर ने बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद ऐलान कर दिया था कि वे अब सियासी पार्टियों से पैसे लेकर चुनावी रणनीति बनाने का काम नहीं करेंगे, बल्कि खुद सत्ता के गलियारों में अपनी किस्मत आजमाएंगे. संभवतया उनके अवचेतन में यह धारणा बन गई है कि वे इतनी प्रतिभा रखते हैं कि दूसरी पार्टियों को अपने हुनर से सरकार में बिठा सकते हैं तो इस प्रतिभा का उपयोग अपना हित साधने में क्यों न करें?
एक लोकतांत्रिक प्रणाली में किसी को भी भारतीय राजनीति की मुख्यधारा में आने से रोका नहीं जा सकता. ऐसे में प्रशांत किशोर की कांग्रेस में आमद कोई असाधारण घटना नहीं मानी जानी चाहिए. उन्हें एक सामान्य कार्यकर्ता की तरह ही दल में प्रवेश करना चाहिए. पर खेदजनक यह है कि उन्हें एक वीआईपी बना दिया गया है. वे सियासत में समन्वय का काम बेहतर ढंग से करते रहे होंगे, चुनाव के दिनों में प्रचार का आधुनिकतम तंत्र विकसित करते रहे होंगे, मगर यही राजनीति नहीं है.
यह सियासत का छोटा सा पुर्जा है. संपूर्ण राजनेता बनने के नजरिये से प्रशांत किशोर अभी नौसिखिए ही हैं. लेकिन, अपने प्रशिक्षु-काल में उन्हें जिस तरह महत्वपूर्ण बनाया जा रहा है, वह पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं है. देखा जा रहा है कि पार्टी के दिग्गज अब प्रशांत किशोर के इर्द-गिर्द मंडराने लगे हैं. पार्टी में एक कार्यकर्ता का प्रवेश उचित है मगर शिखर नेतृत्व के समानांतर महत्व शायद ही कोई पसंद करे. भारतीय जनता पार्टी से आयातित नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने पंजाब में अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली.
दशकों से कांग्रेस का संगठन ढांचा दरक रहा है. दक्षिण भारत में उसका व्यापक जनाधार होता था. धीरे धीरे वह खिसकता गया. इसके बाद पूरब तथा उत्तर के राज्यों में संगठन निरंतर बारीक और महीन होता गया. बिहार और उत्तर प्रदेश में तो जिला और तहसील स्तर तक संगठन बिखर गया. आज भी कमोबेश यही स्थिति है. कांग्रेस दुर्बल हो रही अपनी इस काया से परिचित है, पर उसके प्रथम श्रेणी के नेताओं का रवैया दूसरी और तीसरी कतार को प्रोत्साहित करने वाला नहीं रहा.
नतीजा यह कि आज पार्टी अपनी वैचारिक पृष्ठभूमि के समर्पित कार्यकर्ताओं को खोती जा रही है. अब आयातित नेता कांग्रेस का जनाधार कितना मजबूत कर सकेंगे, यह यक्ष प्रश्न है. प्रशांत किशोर अपना भविष्य या करियर बनाने के लिए अगर कांग्रेस में आए हैं तो उनका लाभ पार्टी को नहीं मिलने वाला है. लेकिन वे यदि भारतीय लोकतंत्र में विपक्ष को मजबूत करने और लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को संरक्षित करने के इरादे से कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं तो शायद उनका प्रवेश सार्थक हो सकता है. हालांकि अभी तक उन्होंने किसी वैचारिक निरंतरता का कोई सबूत नहीं दिया है. अपनी पेशेवर पारी में उन्होंने धुर विरोधी दलों के साथ काम किया है.
दरअसल प्रशांत किशोर किसी भी दल के लिए संपत्ति साबित हो सकते हैं और अभिशाप भी. उन्हें अपनी टीम के जरिये सिर्फ अपनी छवि को चमकाने का काम आता है. इस हुनर का इस्तेमाल वे कांग्रेस पार्टी की छवि चमकाने में करेंगे - कहना मुश्किल है. इसे देखते हुए कांग्रेस में उनका दाखिला पार्टी के लिए बड़ा जुआ हो सकता है. अगले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले क्या यह बुजुर्ग पार्टी इस नौजवान पर अपने बारह करोड़ मत दांव पर लगाएगी?