ब्लॉगः निर्वाचित प्रतिनिधियों का अपमान उचित नहीं
By राजेश बादल | Published: November 25, 2021 09:52 AM2021-11-25T09:52:23+5:302021-11-25T09:53:50+5:30
अरविंद केजरीवाल अपने चुनावी दौरे पर पंजाब गए थे। लुधियाना में ऑटोरिक्शा चालकों के साथ बैठक में उन्होंने निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को अपमानित करते हुए एक ऊटपटांग बयान दिया।
जब कोई राजनेता लोकप्रियता के हजार घोड़ों पर सवार होकर सत्ता में आता है तो उसका अहंकार भी कई गुना बढ़ जाता है। जिस संविधान की वह शपथ लेता है, उसकी धज्जियां उड़ाने का अवसर भी नहीं छोड़ता। यदि वह राजनेता ग्रामीण पृष्ठभूमि से आता हो और उसका शैक्षणिक आधार कमजोर हो तो उसे एक बार माफ किया जा सकता है, लेकिन जब वह उच्चतम शिक्षा हासिल करके सियासत में आता है तो उससे न्यूनतम लोकतांत्रिक मर्यादाओं की अपेक्षा गलत नहीं है। एक बार लोकसभा और विधानसभा के लिए मतदाताओं की ओर से चुनकर भेज देने के बाद यह उम्मीद की जाती है कि वह भारतीय संविधान के अनुसार आचरण करेगा। इस मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मुल्क के जिम्मेदार नागरिकों को निराश किया है।
अरविंद केजरीवाल अपने चुनावी दौरे पर पंजाब गए थे। लुधियाना में ऑटोरिक्शा चालकों के साथ बैठक में उन्होंने निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को अपमानित करते हुए एक ऊटपटांग बयान दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के 25 विधायक और दो-तीन सांसद उनके संपर्क में हैं, वे कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल होना चाहते हैं। गर्व से फूले नहीं समा रहे केजरीवाल ने कहा कि वे चाहें तो शाम तक उन निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को अपनी पार्टी में शामिल कर सकते हैं, मगर ऐसा नहीं करना चाहते। वे कांग्रेस का कचरा नहीं लेना चाहते।
इस तथ्य को कोई झुठला नहीं सकता कि दिल्ली की सत्ता से कांग्रेस की शर्मनाक पराजय अरविंद केजरीवाल की नवोदित आम आदमी पार्टी के हाथों ही हुई थी। यही नहीं, जब भारतीय मतदाता भारतीय जनता पार्टी के लोकप्रिय चेहरे नरेंद्र मोदी पर अपनी मुहर लगा रहा था तो लोकप्रियता के शिखर दौर में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में भाजपा को लगातार तीन बार करारी मात दी और राजनीतिक पंडितों को विश्लेषण के नए पैमाने दिए। उनकी करिश्माई जीत के अनेक अर्थ लगाए जाते हैं। यहां तक कि एक बड़ा वर्ग उन्हें भाजपा की बी टीम का कप्तान भी बताता रहा है। इस अद्भुत जीत के नशे में केजरीवाल भूल गए कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों को कचरा बताना उनका सामूहिक अपमान तो है ही, यह संवैधानिक मर्यादा का भी उल्लंघन है। इस संविधान के तहत अवाम ने अपने मत का अधिकार इस्तेमाल करते हुए उनकी पार्टी को भी संसद और विधानसभा के लिए पात्र माना है। हम आशा करें कि लोकतंत्र के इन सर्वोच्च मंदिरों के लिए कचरा चुनने का काम उन्होंने नहीं किया है। यदि इन स्थानों के लिए निर्वाचित सदस्य कचरा हैं, तो स्वयं अरविंद केजरीवाल भी उसी कचरे के ढेर का हिस्सा हैं। इस नजरिये से उनका यह बयान निंदनीय है और सार्वजनिक माफी की मांग करता है अन्यथा कानूनी कार्रवाई की तलवार तो उन पर लटकी ही है।
केजरीवाल ने अपने कथन में एक अपराध और किया है, जिसकी ओर भी उनका ध्यान नहीं गया है। भारतीय संसद दल-बदल विरोधी कानून दशकों पहले बना चुकी है। शायद इस कानून की जानकारी उन्हें नहीं है। इस कानून के तहत उन पर खुल्लमखुल्ला दल-बदल को प्रेरित और प्रोत्साहित करने का मामला बनता है। जब वे कहते हैं कि अमुक सांसद और विधायक उनके संपर्क में हैं और वे आम आदमी पार्टी में आना चाहते हैं तो वे भले ही उस कचरे को नहीं लेने वाली बात कह चुके हों, लेकिन वे यह भी स्पष्ट नहीं करते कि भारत का दल-बदल विरोधी कानून इसकी अनुमति नहीं देता। वे उसे छिपा जाते हैं। वे अन्य निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को यह राजमार्ग दिखा रहे हैं कि वे चाहें तो दल-बदल करा सकते हैं बशर्ते कि उनकी दृष्टि में वे कचरे से बेहतर हों। इस तरह संविधान की ओर उनका हिकारत भरा नजरिया स्पष्ट होता है। वैसे तो मौजूदा दौर में कमोबेश सारी पार्टियां इस सामूहिक जुर्म के लिए अपराधी मानी जा सकती हैं। पिछले कई चुनावों से देखा जा रहा है कि चुनाव का मौसम आते ही हर राजनीतिक दल नेताओं की खरीद-फरोख्त मंडी में उतर जाता है। पर, वह अरविंद केजरीवाल की तरह उन्हें कचरा नहीं बताता। वह तो इस तथाकथित कचरे का मोल करोड़ों में लगाता है। कांग्रेस के इस कथित कचरे का भारतीय जनता पार्टी ने भरपूर इस्तेमाल किया है। अब तृणमूल कांग्रेस इस अभियान में लगी हुई है। इस तरह कुछ वर्षो से दल-बदल का धंधा फलफूल रहा है।