रहीस सिंह का ब्लॉग: शक्ति संतुलन में कितनी अहम रहेगी ब्रिक्स की भूमिका?
By रहीस सिंह | Published: November 21, 2020 03:30 PM2020-11-21T15:30:50+5:302020-11-21T15:38:13+5:30
आज का दौर भू-रणनीतियों बदलावों और शक्ति केंद्रों के हस्तांतरण का है. इस स्थिति में वैश्विक संगठनों की भूमिका अहम और संवेदनशील हो जाती है.
गोल्डमैन सैच्स के जिम ओ नील, पाउलो लेमे, सैंड्रा लॉसन, वारेन पियर्सन आदि ने करीब दो दशक पहले ‘ड्रीमिंग विद ब्रिक्स : द पाथ टू 2050’ नाम से एक रिपोर्ट पेश की थी. इस रिपोर्ट के अनुसार ब्रिक्स देश आने वाले समय में ग्लोबल इकोनॉमिक सिस्टम में ही नहीं बल्कि नई विश्वव्यवस्था के निर्माण में आधारभूत भूमिका निभाने वाले थे.
ऐसा नहीं हुआ यह हम कम से कम उस दौर में तो नहीं कह सकते हैं जब दुनिया के नामी-गिरानी विचारक एवं अध्येता यह कहते हुए दिख रहे हों कि पश्चिमी ब्रांड की साख गिर रही है और वैश्विक संतुलन पश्चिम से पूरब की तरफ शिफ्ट कर सकता है. लेकिन अभी यह देखना है कि शक्ति संतुलन की शिफ्टिंग की इस प्रक्रिया में ब्रिक्स किस भूमिका में होगा?
मौजूदा परिस्थिति में वैश्विक संगठनों की भूमिका अहम
ब्रिक्स देश अब ‘इकोनॉमिक ग्रोथ फॉर एन इनोवेटिव फ्यूचर’ से आगे निकलकर ‘ब्रिक्स पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल स्टेबिलिटी, शेयर्ड सिक्योरिटी एंड इनोवेटिव ग्रोथ’ की ओर बढ़ने का निर्णय ले चुके हैं. दरअसल 12वीं समिट की यही थीम है. प्रधानमंत्री ने अपने सम्बोधन में यह बात स्वीकार भी की कि 12वीं समिट की यह थीम प्रासंगिक तो है ही, दूरदर्शी भी है. कारण यह कि विश्व में महत्वपूर्ण जियो-स्ट्रैटेजिक बदलाव आ रहे हैं जिनका प्रभाव स्थिरता, सुरक्षा और विकास पर पड़ता रहेगा और इन तीनों क्षेत्रों में ब्रिक्स की भूमिका अहम होगी.
यह सच है कि आज का दौर भू-रणनीतियों बदलावों और शक्ति केंद्रों के हस्तांतरण का है. इस स्थिति में वैश्विक संगठनों की भूमिका अहम और संवेदनशील हो जाती है. इसके लिए आवश्यक है कि दुनिया संक्रमण की ओर बढ़ने से रुके और यह तभी संभव है जब अर्थव्यवस्था केवल ग्रोथ नहीं, बल्कि सस्टेनेबिलिटी और हैप्पीनेस को हासिल करे. इसके लिए नवोन्मेष को अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ना बेहद जरूरी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके लिए ब्रिक्स मंच से कुछ सुझाव दिए थे जो ब्रिक्स मैकेनिज्म को और अधिक व्यावहारिक बनाने में उपयोगी थे. अपने सुझाव रखने से पहले प्रधानमंत्री ने कुल दो बातों पर फोकस किया था. पहली यह कि ब्रिक्स देश विश्व की आर्थिक वृद्धि के लिए आशा की किरण हैं. दूसरी- इनोवेशन और परिश्रम हमारी ऊर्जा का आधार हैं.
पीएम नरेंद्र मोदी ने दिए थे क्या सुझाव
इसे देखते हुए पीएम मोदी ने कुछ सुझाव दिए. पहला सुझाव था- अगले समिट तक 500 बिलियन डॉलर के इंट्रा-ब्रिक्स व्यापार का लक्ष्य हासिल करने के लिए ब्रिक्स बिजनेस काउंसिल को एक रोडमैप बनाना चाहिए ताकि हमारे बीच मौजूद आर्थिक पूरकताओं की पहचान का प्रयोग संभव हो सके. उनका दूसरा सुझाव था कि पांचों देशों में कई एग्रोटेक स्टार्ट-अप्स उभरे हैं. इस स्टार्ट-अप नेटवर्क की कनेक्टिविटी हमारे बड़े मार्केट्स के लिए उपयोगी साबित हो सकती है, जिनका फायदा उठाना चाहिए.
उन्होंने इस बात पर विशेष बल दिया था कि इन स्टार्ट-अप्स के जरिये कृषि में टेक्नोलॉजी और डाटा एनालिटिकल टूल्स के उपयोग को भी प्रोत्साहन मिल सकता है इसलिए यह रूरल इकोनॉमी में एक नया आयाम जोड़ सकता है. अपने तीसरे सुझाव में उन्होंने प्रॉस्पेरस ह्यूमन कैपिटल को केंद्र में रखा था. उनका कहना था कि यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज में आ रही चुनौतियों के समाधान के लिए, डिजिटल हेल्थ एप्लीकेशंस के इस्तेमाल पर ब्रिक्स काउंसिल को भारत में एक हैकाथन आयोजित करने पर विचार करना चाहिए.
कोविड-19 की चुनौतियों के बीच इन सुझावों के अनुसार ब्रिक्स देश कितना आगे बढ़ पाए हैं, यह आकलन करना अभी बेमानी होगा. ऐसा इसलिए कहा जा सकता है कि ब्राजील जैसे देश कोविड क्राइसिस मैनेजमेंट में काफी पीछे जाते दिखाई दिए और कोविड ने इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को गहरा धक्का दिया.
12वीं ब्रिक्स समिट की एक उपलब्धि के तौर ब्रिक्स काउंटर टेररिज्म स्ट्रेटजी को अंतिम रूप देने संबंधी प्रक्रिया को मान सकते हैं. आतंकवाद पर विराम लगना बेहद जरूरी है. लेकिन भारत जिस आतंकवाद से प्रभावित है उसका एपीसेंटर पाकिस्तान है और पाकिस्तान चीन का आल वेदर फ्रेंड है. इसलिए ब्रिक्स की इस मसले पर असली परीक्षा वाया बीजिंग ही होनी है.