पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: किस उम्मीद तले करें 2020 का स्वागत

By पुण्य प्रसून बाजपेयी | Published: December 31, 2019 05:52 AM2019-12-31T05:52:25+5:302019-12-31T05:52:25+5:30

आजादी के 72 बरस बाद भी संविधान को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं तो बहुतेरे सवाल लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर हैं.

Punya Prasoon Vajpayee's blog: welcome 2020 | पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: किस उम्मीद तले करें 2020 का स्वागत

पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: किस उम्मीद तले करें 2020 का स्वागत

Highlightsभाषा-संस्कृति से जुड़े सवाल भी नागरिकों के वजूद से जा जुड़े हैं. दस बरस पहले तक 2020 में महाशक्ति बनने का ख्वाब संजोये भारत अब एक असमंजस की स्थिति में 2020 में कदम रखने को तैयार है. 

21वीं सदी का दूसरा दशक भी बीत रहा है. 2019 को पीछे छोड़ दुनिया 2020 में कदम रखने को तैयार है.
लेकिन हम बीतते बरस के साथ आगे नहीं पीछे देखने को तैयार हैं. देश की सामाजिक-आर्थिक स्थितियां आगे की जगह पीछे लौट रही हैं. नागरिकता का सवाल 1947 के जख्मों को कुरेद रहा है तो डावांडोल अर्थव्यवस्था 1991 के हालात की याद दिला रही है.

आजादी के 72 बरस बाद भी संविधान को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं तो बहुतेरे सवाल लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर हैं. भाषा-संस्कृति से जुड़े सवाल भी नागरिकों के वजूद से जा जुड़े हैं. दस बरस पहले तक 2020 में महाशक्ति बनने का ख्वाब संजोये भारत अब एक असमंजस की स्थिति में 2020 में कदम रखने को तैयार है. 

हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना तले नागरिकता का सवाल मुसलमानों को डरा रहा है जिन्हें अपने वजूद को साबित करने के लिए अपनी जड़ों को खोजने का काम दिया गया है. हिंदुओं के सामने धर्म और भूख की लड़ाई में से किसी एक को चुनने की राजनीतिक चुनौती है. 

आदिवासी-दलित जिंदगी के उन अनछुए रास्तों से गुजरने के लिए तैयार हैं जहां उनके हक को संविधान का जामा पहना कर विकास के मार्ग को बनाने के लिए उन्हें उनकी जमीन से ही बेदखल किया जा रहा है. किसान-मजदूर के सामने अपनी उपज की कीमत भी मिल न पाने का सवाल है तो शहरी डिग्रीधारियों के सामने रोजगार न मिलने के सवाल हैं.  
तो क्या भारत 21वीं सदी में पिछड़ रहा है या फिर तीन से पांच ट्रिलियन की इकोनॉमी का सपना हर मुश्किल हालात पर रेड कार्पेट डालने को तैयार है और एक सुनहरे युग की तरफ भारत 2020 में बढ़ जाएगा. 

खासकर तब जब दुनिया पूंजी की गुलाम है और भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है. लेकिन पहली बार बीतते बरस की आहट के बीच सबसे बड़ा सवाल यही हो चला है कि कहीं आजाद भारत की अर्थव्यवस्था सबसे बड़े संकट में तो नहीं फंस चुकी है? टैक्स, जीएसटी, डिसइनवेस्टमेंट तक में जो टारगेट था वह भी रकम आ नहीं पा रही है. तो सरकार अब क्या करे. 

मौजूदा वित्तीय वर्ष में डिसइनवेस्टमेंट का टारगेट 1.05 लाख करोड़ का था लेकिन दिसंबर तक सिर्फ 17,364 करोड़ ही आ पाए हैं. राज्यों को जीएसटी का हिस्सा अभी तक दिया नहीं जा सका है. तो 2020 का स्वागत किया कैसे जाए? 2019 से आगे देश देखना बंद कर दुबारा अपने अतीत को ही निहारना शुरू कर दे क्योंकि जिन नागरिकों की न्यूनतम जरूरतों को भी पूरा करने में राज्य सक्षम हो नहीं पा रहा है वहां नागरिक को नागरिक होने के प्रमाण पत्न में फंसा देने से क्या रास्ता निकल आएगा?  शायद पहली बार 2019 के आखिर में लोगों के सामने ये सवाल है कि वो किस उम्मीद और भरोसे से 2020 का स्वागत करें.

Web Title: Punya Prasoon Vajpayee's blog: welcome 2020

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