प्रमोद भार्गव का ब्लॉगः सिर्फ पक्षी ही नहीं, टिड्डी और अन्य कीट भी करते हैं प्रवास
By प्रमोद भार्गव | Published: July 3, 2020 03:54 PM2020-07-03T15:54:04+5:302020-07-03T15:54:04+5:30
पक्षियों की तुलना में इनकी उम्र कम होती है, इसलिए इनमें से ज्यादातर कीट गंतव्य से लौटकर अपने पुराने ठिकानों पर नहीं पहुंच पाते. इस कारण अनेक दिग्गज वैज्ञानिकों में मतभेद है कि टिड्डी एवं कीड़े-मकोड़ों की इन यात्नाओं को प्रवास यात्ना कहा जाए या नहीं.
अब तक सुना था कि पक्षी ही प्रवास पर सारी सीमाओं का उल्लंघन कर निकलते हैं, पर नए वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता चला है कि टिड्डी एवं अन्य कीट-पतंगे भी पक्षियों की तरह समूहों में प्रवास करते हैं.
हालांकि इनमें टिड्डियों को छोड़ ज्यादातर कीटों की यात्नाएं पक्षियों की तरह लंबी नहीं होती हैं. क्योंकि पक्षियों की तुलना में इनकी उम्र कम होती है, इसलिए इनमें से ज्यादातर कीट गंतव्य से लौटकर अपने पुराने ठिकानों पर नहीं पहुंच पाते. इस कारण अनेक दिग्गज वैज्ञानिकों में मतभेद है कि टिड्डी एवं कीड़े-मकोड़ों की इन यात्नाओं को प्रवास यात्ना कहा जाए या नहीं.
टिड्डी भी बड़े समूहों में प्रवास यात्ना पर निकलते हैं. जैसा कि हम वर्तमान में आधे से ज्यादा भारत में इन बिनबुलाए मेहमान के संकट से दो-चार हो रहे हैं. टिड्डी अपनी यात्नाओं से लौटती नहीं हैं. यात्ना में निकली टिड्डियां आखिर में मृत्यु को प्राप्त हो जाती हैं.
यूरोप व एशियाई देशों की प्रवास यात्नाओं पर निकलती हैं
टिड्डी की अनेक प्रजातियां पाई जाती हैं. इनमें भी सबसे ज्यादा अफ्रीका में हैं. वहीं से ये यूरोप व एशियाई देशों की प्रवास यात्नाओं पर निकलती हैं. टिड्डी आमतौर से अकेले रहने की आदी होती हैं, परंतु प्राकृतिक प्रकोप के कारण जब भोजन का अभाव हो जाता है तो ये एक स्थान पर एकत्रित होने लगती हैं.
ये ऐसे स्थानों पर इकट्ठा होती हैं, जहां पानी के स्नेत अथवा नमी होती है. यहीं ये प्रजनन क्रिया संपन्न करती हैं और मादाएं अंडों की दो-तीन थैलियां जनती हैं. एक थैली में 70-80 अंडे होते हैं. इन अंडों से बच्चे निकलने के बाद टिड्डियों का समूह बहुत बड़ा हो जाता है और इन्हें आवास व आहार का अभाव खटकने लगता है.
इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए ये दल समूहों में प्रवास पर निकल पड़ते हैं. इनके झुंड कई वर्ग किमी क्षेत्न में उड़ान भरते हैं. ऐसे में यदि ये दिन में उड़ान भर रहे हैं तो धूप जमीन तक नहीं पहुंच पाती और धरती पर बड़े क्षेत्न में अंधेरा छा जाता है. आराम के लिए जहां ये रात में उतरती हैं, वहां कयामत आ जाती है.
ये खेतों की पूरी फसल रातों-रात चट कर डालती हैं
ये खेतों की पूरी फसल रातों-रात चट कर डालती हैं. खेतों में टिड्डियों का उतरना किसी मायने में प्राकृतिक प्रकोप से कम नहीं है. हमारे देश में पश्चिमी-उत्तरी कोने से इनका आगमन होता है. इनके आगमन का अभिशाप राजस्थान के ग्रामीणों को सबसे ज्यादा ङोलना पड़ता है.
यह टिड्डी दल वापस नहीं लौटते और जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, ये मृत्यु को प्राप्त होते चले जाते हैं. इस तरह से और भी अनेक कीट-पतंगे हैं, जो प्रवास पर निकलते हैं. मनुष्य के इर्द-गिर्द घूमते रहने वाले इन कीड़े-मकोड़ों की पूरी दुनिया में सात लाख प्रजातियां पाई जाती हैं.
इनमें जल, थल और वायु में विचरण करने वाले सभी कीड़े-मकोड़े हैं. यह भी औसत निकाल लिया गया है कि दुनिया में जितने जीव-जंतु हैं, उनमें से तीन चौथाई अथवा 75 प्रतिशत कीड़े-मकोड़े ही हैं. टिड्डी इसी संख्या में शामिल है. व्यर्थ से दिखने वाले इन कीड़ों का भी अपना महत्व है.
पर्यावरणीय प्रदूषण को दूर करने में ये कीड़े-मकोड़े अहम भूमिका निभाते हैं
पर्यावरणीय प्रदूषण को दूर करने में ये कीड़े-मकोड़े अहम भूमिका निभाते हैं. मनुष्य या अन्य बड़े जानवरों द्वारा फैलाई गंदगी को आहार बनाकर सफाचट यही कीड़े-मकोड़े करते हैं. जो जीव-जंतु जल और थल में मर जाते हैं. उनके शरीर को आहार बनाकर भी ये सफाई का काम करते हैं. बड़े कीड़े-मकोड़े छोटे कीड़ों को आहार बनाकर प्रकृति का संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
कुछ नए शोधों के बाद मनुष्य ने इन कीड़ों को अपने हित साधने के लिए पालना भी शुरू कर दिया है. मकड़ियों पर ऐसे प्रयोग किए गए हैं. इन मकड़ियों को खेतों में पालकर छोड़ा गया. इन्होंने खेतों में ऐसे कीड़ों को आहार बनाया जो फसलों को नष्ट कर देते थे. अब इस दिशा में और प्रयोग चल रहे हैं.
प्रवास पर निकले कीड़े-मकोड़ों इनमें से अधिकांश का जीवन कुछेक महीनों का ही होता है, इसलिए इनकी जो पीढ़ी प्रवास पर निकलती है, वह वापस नहीं लौट नहीं पातीं, मगर इनकी दूसरी और तीसरी पीढ़ी के वंशज जरूर लौटकर अपने पुरखों के मूल निवास स्थानों पर पहुंच जाते हैं.
यह समझ इनकी प्राकृतिक विलक्षणता का अनूठा उदाहरण है. चींटी भी प्रवास यात्ना पर निकलती हैं. लेकिन इनकी यात्नाएं लंबी नहीं होती हैं. भोजन का अभाव होने पर ये तीन से पांच सौ फुट तक की दूरी की प्रवास यात्नाओं पर निकलती हैं.