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प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: मध्य प्रदेश में भारी मतदान के मायने

By प्रमोद भार्गव | Updated: November 30, 2018 05:35 IST

इस चुनाव में वैसे तो ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में लगभग बराबर मतदान हुआ है, लेकिन किसानों ने जिस उत्साह से मतदान किया है, उससे लगता है कि उनका वोट निर्णायक साबित होगा.

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मध्य प्रदेश में मतदान के बड़े प्रतिशत ने इस बार अब तक के सारे मापदंड ध्वस्त कर दिए हैं. 2013 के विधानसभा चुनाव की तुलना में 6 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ है. इसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की उदार कार्यशैली का परिणाम कहा जाए या उनकी सरकार के विरुद्ध एंटी-इन्कम्बेंसी, इसकी वास्तविकता तो 11 दिसंबर को चुनाव नतीजे सामने आने के बाद पता लगेगी. इसके बावजूद मतों में जो उछाल देखने में आया है, वह आखिर में सरकार के प्रति असंतोष का पर्याय ही लग रहा है, क्योंकि चुनाव विश्लेषक भले ही कह रहे हों कि मतदाता मौन है, लेकिन ओपीनियन पोल में जिस तरह से कांग्रेस की बढ़त दिखाई जा रही है, उससे इस बात की पुष्टि होती है कि मतदाता खामोश नहीं है. 2003 में जब प्रदेश में दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार वजूद में थी, तब भी कुछ इसी तरह का उछाल दिखा था. 

दरअसल इस बार शिवराज सरकार के विरुद्ध जो नाराजगी है, वह उनके कार्यो से कहीं ज्यादा केंद्र सरकार की कार्ययोजनाओं के प्रति है, जिसका सीधा-सीधा फायदा कांग्रेस को मिलता दिख रहा है. हालांकि इस बार मतदान पर्ची की जो सुविधा निर्वाचन आयोग द्वारा प्रत्येक मतदाता को मिली है, वह भी  मत प्रतिशत बढ़ने का कारण रही है. इस बार वीवीपैट की सुविधा से मतदान में पारदर्शिता उजागर होने के साथ, ईवीएम से वोट डालने के प्रति विश्वास भी कायम हुआ है. इसलिए परिणाम जो भी निकले, ईवीएम पर संदेह जताना मुश्किल होगा. अब तक सत्तारूढ़ दल के खिलाफ व्यक्तिगत असंतुष्टि और व्यापक असंतोष के रूप में बड़ा मत प्रतिशत देखा जाता रहा है, लेकिन मतदाताओं में आई जागरूकता ने परिदृश्य बदला है, इसलिए इसे केवल नकारात्मकता के तराजू पर तौलना राजनीतिक प्रेक्षकों की भूल है. इसे सकारात्मक दृष्टि से भी देखने की जरूरत है. क्योंकि मतदान के जरिए सत्ता परिवर्तन का जो उपाय मतदाता की मुट्ठी में है, वह लोकतांत्रिक संवैधानिक व्यवस्था का परिणाम है. 

इस चुनाव में वैसे तो ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में लगभग बराबर मतदान हुआ है, लेकिन किसानों ने जिस उत्साह से मतदान किया है, उससे लगता है कि उनका वोट निर्णायक साबित होगा. इन सबके बावजूद मत प्रतिशत बढ़ने का सबसे अहम, सुखद व सकारात्मक पहलू है  कि यह अनिवार्य मतदान की जरूरत की पूर्ति कर रहा है. हालांकि फिलहाल हमारे देश में अनिवार्य मतदान की संवैधानिक बाध्यता नहीं है, लेकिन स्वैच्छिक तौर पर मतदाताओं का जागरूक होना अधिक महत्वपूर्ण है. 

 

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