ब्लॉग: परंपरा और आधुनिकता की मिसाल बनती डाक व्यवस्था

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: October 12, 2021 02:20 PM2021-10-12T14:20:18+5:302021-10-12T14:26:26+5:30

हमारे देश में डाक व्यवस्था आज से तकरीबन 725 वर्ष पूर्व यानी 1296 ई. में शुरू हुई थी. इसे पठान शासक अलाउद्दीन खिलजी ने सर्वप्रथम शुरू किया था. वर्तमान समय में हमारे देश की डाक व्यवस्था विश्व में विस्तृत रूप से विकसित है.

postal system example of tradition and modernity | ब्लॉग: परंपरा और आधुनिकता की मिसाल बनती डाक व्यवस्था

फाइल फोटो.

Highlightsहमारे देश में डाक व्यवस्था आज से तकरीबन 725 वर्ष पूर्व यानी 1296 ई. में शुरू हुई थी.सन् 1800 तक डाक सेवा का प्रचलन देश के लगभग सभी भागों में हो गया.हमारे देश में 1,55,000 से भी अधिक डाकघरों वाला यह तंत्र विश्व की सबसे बड़ी डाकप्रणाली है.

प्राचीन समय में संदेश और डाकपत्रों को लाने-ले जाने के लिए आज की तरह के साधन उपलब्ध नहीं थे. कम दूरी के संदेश और डाकपत्र पैदल, संदेशवाहक, बैलगाड़ी, रथ आदि से तथा लंबी दूरी के संदेश और पत्र घुड़सवार तथा ऊंटसवारों के माध्यम से भिजवाए जाते थे. कबूतरों के माध्यम से भी संदेश भिजवाने वाले संदर्भ इतिहास में मिलते हैं.

हमारे देश में डाक व्यवस्था आज से तकरीबन 725 वर्ष पूर्व यानी 1296 ई. में शुरू हुई थी. इसे पठान शासक अलाउद्दीन खिलजी ने सर्वप्रथम शुरू किया था.

इस व्यवस्था की शुरुआत सम्राट खिलजी ने अपनी सेना का समाचार पाने के लिए की थी और इसमें घोड़ों से तथा पैदल चलकर गंतव्य स्थल तक पहुंचने की व्यवस्था थी. 

यह व्यवस्था लगभग 240 वर्ष तक चली. इसके बाद 1541 में जब शेरशाह सम्राट बना, तब उसने उसमें सुधार किया. उसने संपूर्ण राज्य में घोड़ों द्वारा डाक लाने-ले-जाने की व्यवस्था की. इसके लिए उसने हर सराय पर दो घोड़े तैयार खड़े रहने की व्यवस्था की थी, जिससे डाक को जल्दी-से-जल्दी आगे ले जाने का काम सुलभ हो जाता. 

इसके बाद 1556 ई. में सम्राट अकबर के शासनकाल में घोड़ों के अलावा डाक सेवा में ऊंटों का भी इस्तेमाल किया गया. कारण यह था कि रेतीली जमीन पर घोड़ों द्वारा डाक ले जाने में काफी दिक्कत होती थी, इसलिए ऊंटों का प्रयोग कर इस समस्या का बादशाह अकबर ने सही हल ढूंढ़ निकाला था.

1548 को जब महाराजा भारमल आमेर राज्य की गद्दी पर आसीन हुए तो उन्होंने अपने शासनकाल में डाक व्यवस्था के भी पुख्ता प्रबंध किए. उस समय दिल्ली और आमेर राज्य की राजनीतिक स्थिति नाजुक दौर से गुरज रही थी. 

अत: उन्होंने दिल्ली दरबार तथा राज्य के परगनों, ठिकानों से दैनिक गतिविधियों की गुप्त एवं सुरक्षित जानकारी हेतु पत्रों के आदान-प्रदान हेतु पैदल, घुड़सवार एंव ऊंट सवारों की एक पूरी सेना गठित की. 

राजधानी के रास्तों पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर चौकियों का निर्माण किया और वहां पत्रवाहक तैनात कर एक-दूसरे की मदद से राज्य के एक कोने से दूसरे कोने तक डाक पहुंचाने की व्यवस्था की. इन पत्रवाहकों की एक निर्धारित पोशाक होती थी तथा उनके शरीर पर घंटियां बंधी होती थीं, जिससे अगले मुकाम का पत्रवाहक उन्हें पहचान लेता था.

सुरक्षा की दृष्टि से हाथ में रंगा हुआ भाला होता था. रास्ते में बाधा पहुंचाने वाले को जान से मारने का अधिकार भी पत्रवाहक को होता था. पत्रवाहकों की सुरक्षा, भोजन एवं विश्राम आदि के लिए जगह-जगह विश्रमघर और सराय का भी निर्माण किया गया था.  डाक संग्रहकर्ताओं में राजा भारमल की यह डाक व्यवस्था महाजनी डाक व्यवस्था के नाम से जानी जाती थी.

1672 ई. में डाक सेवा में प्रांत स्तर पर एक और सुधार हुआ. तत्कालीन मैसूर के राजा चिक्कदेव ने अपने राज्य के सभी भागों में नियमित डाक सेवा की व्यवस्था की. 

अब तक भारत के कुछ राज्यों के शहरों जैसे मुंबई, कलकत्ता, मद्रास आदि में ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रभाव फैल चुका था. डाक सेवा सुचारु रूप से चले, इसके लिए कंपनी ने सुधार का कदम उठाया. फलस्वरूप चिट्ठियों को नियमित रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने के लिए मुंबई और मद्रास में बड़े-बड़े डाकखाने और अन्य शहरों में छोटे-छोटे डाकखाने खोले गए. 

लार्ड क्लाइव ने 1766 में इसमें और सुधार किया. इससे पूर्व यह सेवा केवल सरकारी काम के लिए थी. सन् 1774 से इसका लाभ कुछ शहरों के सर्व-साधारण लोगों को मिलने लगा. अब लोग अपने परिजनों का इस माध्यम से समाचार जानने लगे.

सन् 1800 तक डाक सेवा का प्रचलन देश के लगभग सभी भागों में हो गया. 1837 ई. में पहला पोस्ट ऑफिस अधिनियम लागू हुआ. 1848 में लॉर्ड डलहौजी द्वारा डाक सेवा में बहुत बड़ा परिवर्तन किया गया. डाक सेवा को आधुनिक और सुचारु रूप दिया गया.

वर्तमान समय में हमारे देश की डाक व्यवस्था विश्व में विस्तृत रूप से विकसित है. 1,55,000 से भी अधिक डाकघरों वाला यह तंत्र विश्व की सबसे बड़ी डाकप्रणाली और नि:संदेह देश में सबसे बड़ा रिटेल नेटवर्क है.

आज ग्राहकों की उभरती हुई आवश्यकताओं को पूरा करने एवं ई-गवर्नेस सुविधा प्रदान करने के लिए ई-सेवाओं जैसे ई-पोस्ट, स्पीड पोस्ट, बिजनेस पोस्ट की क्षमता को कम्प्यूटरीकरण के माध्यम से बढ़ाया गया है तथा उदारीकरण के इस इंटरनेट, व्हाट्सएप्प, ई-मेल के युग में वाणिज्यिक, प्रतिस्पर्धात्मक महौल की चुनौतियों का सामना करते हुए डाकघरों को डाक सेवा के साथ ही बैंकिंग में उतारा गया है और देश के गांव-गांव में इसकी वित्तीय सेवा का विस्तार हो रहा है.

सामाजिक बदलाव को गति प्रदान करने की भूमिका अदा करता हुआ वर्तमान भारतीय डाक विभाग परंपरा और आधुनिकता की मिसाल कायम करते हुए अपनी बेहतरीन सेवा प्रदान कर रहा है.

Web Title: postal system example of tradition and modernity

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे