ब्लॉग: लड़कियों की शिक्षा पर ग्रामीण क्षेत्र से सकारात्मक संकेत
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 11, 2023 09:51 AM2023-08-11T09:51:15+5:302023-08-11T09:53:26+5:30
इस अध्ययन में यह बात सामने आई कि 78 फीसदी लड़कियों और 82 फीसदी लड़कों के अभिभावक अपने बच्चों को स्नातक या उससे ऊपर के स्तर तक पढ़ाना चाहते हैं।
ग्रामीण भारत से समावेशी वातावरण की दिशा में प्रगति की एक उम्मीद जगाने वाला संकेत मिला है। डेवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट (डीआईयू) के एक अखिल भारतीय सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण समुदाय के अभिभावकों का दृढ़ विश्वास है कि लड़का हो या लड़की, उनकी शैक्षिक आकांक्षाओं में बाधा नहीं बनना चाहिए।
इस अध्ययन में यह बात सामने आई कि 78 फीसदी लड़कियों और 82 फीसदी लड़कों के अभिभावक अपने बच्चों को स्नातक या उससे ऊपर के स्तर तक पढ़ाना चाहते हैं। यह स्टडी भारत के 20 राज्यों के ग्रामीण समुदायों में 6 से 14 वर्ष के बच्चों पर आधारित थी।
इस बेहद सकारात्मक संकेत के आधार पर ग्रामीण क्षेत्र में शैक्षिक विकास को और मजबूत किया जा सकता है। किसी भी देश के विकास के लिए यह आवश्यक है कि उसके सभी नागरिक समान रूप से शिक्षित हों। चाहे वह शहरी क्षेत्र से हों या ग्रामीण, पुरुष हों या महिला। शिक्षा के मामले में किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए। अच्छी बात है कि पूरे देश में महिलाओं में शिक्षा को लेकर काफी जागरूकता आई है।
और जब लड़कियों के अभिभावक बेटियों की शिक्षा के प्रति रुचि लेने लगते हैं, तो वे सकारात्मक परिवर्तन भी सुनिश्चित करते हैं। उक्त अध्ययन से ऐसा लगता है कि अब बेटियों की शिक्षा के प्रति पितृसत्तात्मक समाज की उदासीनता कम हो रही है। बेटे और बेटी के बीच अंतर कम हो रहा है। दरअसल, यह अंतर शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिला और पुरुष साक्षरता दर में भी बड़ा अंतर है।
लड़कों की तुलना में कम लड़कियां स्कूलों में जाती हैं। उच्च शिक्षा तो दूर की बात है। वहीं लड़कियों में ड्राॅप आउट की संख्या भी बहुत अधिक है। हालांकि, भारत सरकार से लेकर सभी राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर बालिकाओं में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कार्यक्रम चला रही हैं, लेकिन जब तक अभिभावकों के स्तर पर यह जागरूकता नहीं आएगी, तब तक बेटियों का भला नहीं हो सकता।
वैसे, शहरों की ही तरह ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियां भी पढ़ने में लड़कों से आगे रहती हैं। विभिन्न परीक्षाओं के नतीजे बताते हैं कि लड़कियां अधिक जिम्मेदारी और मेहनत से पढ़ाई करती हैं।
बावजूद सामाजिक रीति-रिवाजों और दहेज जैसी कुप्रथा की वजह से माता-पिता को उनकी उच्च शिक्षा से अधिक शादी की चिंता सताती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि नीति निर्माता और शैक्षणिक संस्थान मिलकर ग्रामीण क्षेत्रों की आम जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करते हुए एक ऐसा वातावरण तैयार करेंगे कि हर बच्चे के विकास की राह सुनिश्चित हो सके।