ब्लॉगः प्रधानमंत्री मोदी छिपी प्रतिभाओं की तलाश में रहते हैं हमेशा, मंत्रिमंडल के कई सहयोगी हैं ऐसे, आखिर क्या है मामला

By हरीश गुप्ता | Published: June 2, 2022 04:32 PM2022-06-02T16:32:02+5:302022-06-02T16:33:00+5:30

केंद्र सरकारः मंत्रिमंडल में भी एस जयशंकर, आरके सिंह, हरदीप पुरी, अश्विनी वैष्णव जैसे कई मंत्री हैं जो राजनीति में सक्रिय नहीं थे. लेकिन मोदी बिना किसी मकसद के कुछ नहीं करते और तत्काल यह समझना मुश्किल है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया.

pm narendra modi Jaishankar, Rk Singh, Hardeep Puri, Ashwini Vaishnav keeps search talents Padma Awards blog harish gupta | ब्लॉगः प्रधानमंत्री मोदी छिपी प्रतिभाओं की तलाश में रहते हैं हमेशा, मंत्रिमंडल के कई सहयोगी हैं ऐसे, आखिर क्या है मामला

भाजपा ने गुजरात में कड़े मुकाबले में चुनाव जीता और अतिरिक्त दलित वोटों के जरिये लोकसभा में भी जीत हासिल की.

Highlights जुलाई 2022 के चुनावों में भारत का अगला राष्ट्रपति कौन होगा.आरएसएस-भाजपा के अग्रणी नेता थे और न ही एक प्रमुख दलित नेता थे.2019 के लोकसभा चुनावों में दलित वोटों को लुभाना चाहते थे.

सभी प्रधानमंत्री अपनी सरकारों को बेहतर प्रदर्शन करने में मदद करने के लिए प्रतिभा खोज का सहारा लेते हैं और विषय विशेषज्ञों को लाते हैं. नेहरू अखिल भारतीय सेवाओं के बाहर नौकरशाही में लेटरल एंट्री की अवधारणा लेकर आए. इंदिरा गांधी भी पीछे नहीं थीं.

राजीव गांधी ने दस तकनीकी मिशन स्थापित किए और भारत को 21वीं सदी में ले जाने के लिए इनमें से कुछ मिशनों का नेतृत्व करने के लिए बाहर से प्रतिभाओं को लाए. उनके उत्तराधिकारियों ने भी प्रतिभाओं की खोज की लेकिन सत्ता बचाए रखने की जद्दोजहद में बहुत अधिक फंस गए या विवादों अथवा वैश्विक चुनौतियों का सामना करना पड़ा.

लेकिन प्रधानमंत्री मोदी अलग ही मिट्टी के बने हैं और हमेशा छिपी प्रतिभाओं की तलाश में रहते हैं. उनकी प्रतिभा की खोज पद्म पुरस्कार देने में देखी जा सकती है और अब वे सभी सरकारी पुरस्कारों के लिए प्रतिभा खोज की खातिर एक केंद्रीकृत इकाई चाहते हैं. वे विवरणों में जाने के लिए व्यक्तिगत रूप से बहुत समय देते हैं, कभी भी जल्दबाजी में नहीं होते हैं और सही समय की प्रतीक्षा करते हैं.

वे एक कदम पीछे हटने से भी गुरेज नहीं करते. उदाहरण के लिए, वे मनमोहन सिंह सरकार द्वारा पेश किए गए आधार कार्ड के आलोचक थे. लेकिन उनका मन तब पलटा जब उनकी मुलाकात टेक्नोक्रेट नंदन नीलकेणि से हुई, जिन्होंने आधार का आविष्कार किया और उसके पीछे अपनी पूरी ताकत लगा दी.

मोदी ने अब सरकार से बाहर की प्रतिभाओं को प्रमुख संस्थानों, निगमों और यहां तक कि सचिव स्तर के अधिकारियों तक के पदों पर अनुबंध के आधार पर लाने के लिए द्वार खोल दिए हैं. उनके मंत्रिमंडल में भी एस.जयशंकर, आरके सिंह, हरदीप पुरी, अश्विनी वैष्णव जैसे कई मंत्री हैं जो राजनीति में सक्रिय नहीं थे. लेकिन मोदी बिना किसी मकसद के कुछ नहीं करते और तत्काल यह समझना मुश्किल है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया.

गणेशी लाल के बारे में सुना है !

अगर कोई जानना चाहता है कि जुलाई 2022 के चुनावों में भारत का अगला राष्ट्रपति कौन होगा तो उसे गणेशी लाल की कहानी जाननी चाहिए. जब मोदी ने 2017 में राष्ट्रपति पद के लिए रामनाथ कोविंद को चुना तो किसी ने भी उनके बारे में नहीं सोचा था क्योंकि वे न तो आरएसएस-भाजपा के अग्रणी नेता थे और न ही एक प्रमुख दलित नेता थे.

लेकिन वे उस समय प्रचलित मोदी के राजनीतिक मानदंडों से मेल खाते थे. मोदी की गुजरात चुनावों पर नजर थी और वे 2019 के लोकसभा चुनावों में दलित वोटों को लुभाना चाहते थे. मोदी की पसंद सही साबित हुई, भाजपा ने गुजरात में कड़े मुकाबले में चुनाव जीता और अतिरिक्त दलित वोटों के जरिये लोकसभा में भी जीत हासिल की. मायावती हाशिये पर आ गईं.

इसलिए, महत्वपूर्ण पदों पर मोदी द्वारा लोगों के चयन पर हमेशा करीब से नजर रखने की जरूरत है. ऐसा ही एक उदाहरण गणेशी लाल हैं. मई 2018 में उन्हें ओडिशा का राज्यपाल नियुक्त किए जाने तक कोई भी उन्हें नहीं जानता था. वे हरियाणा में एचवीपी-भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री बंसीलाल के अधीन एक संक्षिप्त अवधि के लिए मंत्री थे और राजनीतिक गुमनामी में चले गए थे.

मोदी मई 2014 में दिल्ली में सत्ता में आए लेकिन गणेशी लाल के लिए कुछ भी नहीं बदला और न ही उनसे कोई संपर्क किया गया. लेकिन मोदी उन्हें भूले नहीं क्योंकि 90 के दशक में जब मोदी राज्य में आरएसएस-भाजपा के आधार का विस्तार करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे, तब सिरसा में भाजपा की एकमात्र आवाज गणेशी लाल थे.

गणेशी लाल का अकादमिक करियर भी शानदार रहा और वे आरएसएस के एक समर्पित कार्यकर्ता थे तथा 76 साल के हो गए थे. एक दिन वे अपने सिरसा स्थित घर में  सो रहे थे, तभी उनका फोन बज उठा. पदभार संभालने के चार साल बाद पीएम खुद लाइन पर थे. अगले दिन, गणेशी लाल दिल्ली में थे और ओडिशा के राज्यपाल बने.

गणेशी लाल का राष्ट्रपति पद को लेकर कोई संदर्भ नहीं है, लेकिन कहानी का सार यह है कि मोदी भूलते नहीं हैं और सही व्यक्ति को चुनने के लिए सही समय का इंतजार करते हैं. कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मोदी उन्हें प्रमुख पदों से नवाजेंगे. दिलचस्प बात यह है कि गणेशी लाल के अपने कई समकक्षों के विपरीत ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के साथ सबसे अच्छे संबंध हैं.

अगला राष्ट्रपति कौन?

राष्ट्रपति पद के लिए संभावित नामों के बजाय यह देखना चाहिए कि देश के सामने मुद्दे क्या हैं और मोदी को उनसे कैसे मदद मिलेगी, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की ताकत को और मजबूत करना चाहते हैं. 10 जून को होने वाले राज्यसभा चुनाव के लिए भाजपा ने जिन 21 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है.

 उन पर करीब से नजर डालने से पता चलता है कि उनमें से अधिकांश ओबीसी और कमजोर वर्ग के हैं. ओबीसी का नाम वर्ष 2022 में चर्चा में है. जाति जनगणना की मांग को लेकर नीतीश कुमार और अन्य मुख्यमंत्रियों ने पहले ही कदम बढ़ा दिए हैं. भाजपा ने शुरू में प्रतिरोध की कोशिश की, लेकिन अब वह भी पक्ष में हो गई है.

ओबीसी फैक्टर फिर से महत्वपूर्ण हो चला है. यह इंगित करता है कि अगला राष्ट्रपति कमजोर वर्ग से होगा, शायद पिछड़े वर्ग से और यदि संभव हो तो दक्षिण भारत से. अगर मोदी को दक्षिण भारत की एक पिछड़ा वर्ग की महिला मिल सकती है तो यह फायदे का सौदा है. 2017 में, दलित वर्ग की चर्चा थी क्योंकि भाजपा दलितों को संदेश भेजना चाहती थी.

 

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