लाइव न्यूज़ :

पीयूष पांडे का ब्लॉग: जाते साल को चरण स्पर्श बनाम नए साल का जश्न

By पीयूष पाण्डेय | Updated: December 26, 2020 12:42 IST

नए साल की पहली तारीख में जागने का आनंद अलग होता है. वरना, आजकल एक तारीख को लोग खुश कम दुखी ज्यादा होते हैं. पहली तारीख को खाते में वेतन आने का एसएमएस देखकर बंदा नाचे-गाए, उससे पहले घर कर्ज की ईएमआई खाते से निकल जाने का एसएमएस टों-टों कर जाता है.

Open in App

पिछले साल तक लोग नए साल आने का जश्न मनाते थे. इस साल जाने वाले साल को साष्टांग चरण स्पर्श कर विदा करने को बेताब हैं. जिस तरह डकैती पड़ने के बाद डकैतों के चंगुल से सही-सलामत बचे लोग लुटे माल का दर्द भूलकर इस बात की खुशी मनाते हैं कि जान बची तो लाखों पाए, उसी तरह 2020 में जान बचाकर नए साल में पहुंच रहे लोग भी 31 दिसंबर को पुराने साल की विदाई का जश्न मनाने को बेताब हैं.

नए साल की पहली तारीख में जागने का आनंद अलग होता है. वरना, आजकल एक तारीख को लोग खुश कम दुखी ज्यादा होते हैं. पहली तारीख को खाते में वेतन आने का एसएमएस देखकर बंदा नाचे-गाए, उससे पहले घर कर्ज की ईएमआई खाते से निकल जाने का एसएमएस टों-टों कर जाता है. बंदा सांस छोड़े, उससे पहले कार की ईएमआई कट जाती है. जालिम जमाने में बंदे ने एक-दो पर्सनल लोन न ले रखे हों, ऐसा हो नहीं सकता क्योंकि बिना कर्ज लिए बंदे को बाजार अपना दुश्मन मानता है.

इसके बाद व्यक्ति बच्चों की स्कूल फीस, ट्यूशन फीस, बीमे का प्रीमियम और आलू-प्याज-पेट्रोल वगैरह के दाम याद कर पहली तारीख की शाम होते-होते वेतन का पोस्टमार्टम कर ब्लड प्रेशर बढ़ा लेता है. आदमी जैसे-तैसे महीना काटकर 30-31 तारीख तक आता है कि फिर पहली तारीख आ जाती है. यह उसी तरह है कि खिलाड़ी हांफते-गिरते जैसे-तैसे मैराथन पूरा करे लेकिन फिनिशिंग लाइन पर पहुंचकर ऐलान हो जाए कि फिर मैराथन में हिस्सा लेना है. नए साल की पहली तारीख उम्मीदों की तारीख है.

लोग तरह-तरह के प्रण लेते हैं. लेकिन, ध्यान रखिए, कोरोना वायरस अभी गया नहीं है. जिस तरह नेता रूप बदल-बदल कर मतदाताओं को उल्लू बनाते हैं, उसी तरह कोरोना रूप बदल-बदल कर शिकार के लिए आ रहा है. फिर, वक्त किसी के चाहने से कहां ठीक या खराब होता है?

वक्त ईश्वर की उस नौकरी में है, जिसमें उसे दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति भी न निलंबित कर सकता है, न नौकरी से निकाल सकता है. जिस तरह आत्मा को न जलाया जा सकता है, न तलवार से काटा जा सकता है, वैसे ही वक्त का हाल है. वक्त सिर्फ गुजरता है. गुजरते-गुजरते कोरोना काल का वक्त भी नए साल की दहलीज पर आ गया है. आप पार्टी जरूर मनाइए, लेकिन जान पर खेलकर नहीं. क्योंकि जान है तो कई नए साल हैं. कई पार्टियां हैं.

टॅग्स :न्यू ईयर
Open in App

संबंधित खबरें

भारतRepublic Day 2025: 10,000 विशेष अतिथि?, सरपंच, पैरालंपिक दल, हथकरघा कारीगर और वन-वन्यजीव संरक्षण कार्यकर्ता को न्योता

भारतRecord Tourist Influx in Goa: गोवा में रिकॉर्ड तोड़ पर्यटकों का पहुंचना जारी, आंकड़ों का हुआ खुलासा; चीन का दावा खारिज

भारतब्लॉग: उपहारों की निरर्थकता को सार्थकता में बदलने की चुनौती

कारोबारNew Year 2025: आखिर क्यों नए साल में पर्यटक गोवा नहीं पहुंचे?, घटती पर्यटन संख्या पर बहस को हवा, देखें वीडियो

भारतअभिलाष खांडेकर ब्लॉग: नये साल के नवसंकल्पों का समय!

भारत अधिक खबरें

भारतIndiGo Crisis: इंडिगो ने 5वें दिन की सैकड़ों उड़ानें की रद्द, दिल्ली-मुंबई समेत कई शहरों में हवाई यात्रा प्रभावित

भारतKyrgyzstan: किर्गिस्तान में फंसे पीलीभीत के 12 मजदूर, यूपी गृह विभाग को भेजी गई रिपोर्ट

भारतMahaparinirvan Diwas 2025: कहां से आया 'जय भीम' का नारा? जिसने दलित समाज में भरा नया जोश

भारतMahaparinirvan Diwas 2025: आज भी मिलिंद कॉलेज में संरक्षित है आंबेडकर की विरासत, जानें

भारतडॉ. आंबेडकर की पुण्यतिथि आज, पीएम मोदी समेत नेताओं ने दी श्रद्धांजलि