अभिलाष खांडेकर का ब्लॉग: विनेश फोगाट जैसी शख्सियतों का निर्विरोध हो चयन

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: September 14, 2024 09:38 AM2024-09-14T09:38:32+5:302024-09-14T09:40:03+5:30

Personalities like Vinesh Phogat should be selected unopposed | अभिलाष खांडेकर का ब्लॉग: विनेश फोगाट जैसी शख्सियतों का निर्विरोध हो चयन

अभिलाष खांडेकर का ब्लॉग: विनेश फोगाट जैसी शख्सियतों का निर्विरोध हो चयन

Highlightsओलंपिक खेलों में, यह पीटी उषा ही थीं जो 1984 में लॉस एंजिल्स खेलों में पदक जीतने से कुछ सेकेंड से चूक गई थीं.तब बहुत से भारतीय घरों में टीवी सेट नहीं थे और एथलेटिक्स के बारे में तो बहुत कम लोग जानते थे.हरियाणा भारतीय कुश्ती का बड़ा गढ़ है, जिस तरह पंजाब कई दशकों तक हॉकी का था, या मुंबई क्रिकेट का.

हरियाणा से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए विनेश फोगाट के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने पर भाजपा नेताओं की ओर से हाल ही में जो तीखी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की गईं, वह अनावश्यक थीं. विनेश को ओलंपिक स्वर्ण पदक भले न मिल पाया हो, लेकिन वे भारतीय खेल जगत का एक सर्वकालिक चमकता सितारा हैं, यह तथ्य किसी भी विवाद से परे है. 

यह विनेश और भारत का दुर्भाग्य ही था कि हमने पेरिस में अपने हक का एक पदक खो दिया. पूरा देश पेरिस में परिणाम का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. विनेश वैश्विक स्तर के मुकाबले को जीतने के लिए आवश्यक ताकत या कौशल की कमी के कारण नहीं हारीं. केवल 100 ग्राम के तकनीकी मुद्दे के कारण उन्हें अयोग्य ठहराए जाने पर उन सभी भारतीयों को भी भारी धक्का लगा जो किसी भी खेल से जुड़े हुए नहीं थे. 

लेकिन यूपी के विवादास्पद नेता बृजभूषण शरण सिंह को धक्का नहीं लगा. लेकिन भारतीय राजनीति के वर्तमान स्वरूप से क्या ही अपेक्षा की जा सकती है? चुनावी मैदान में उतरने के तुरंत बाद ही उस बेचारी लड़की की आलोचना हरियाणा और उत्तरप्रदेश के उन नेताओं ने की जो भारतीयता की कसमें खाते थकते नहीं हैं. विनेश की हार पर बृजभूषण शरण सिंह की स्पष्ट ‘खुशी’ उनके हालिया बयानों से साफ जाहिर थी.

एक राजनीतिक पार्टी में शामिल होकर या चुनावी मैदान में उतरने का फैसला करके उन्होंने क्या गलत किया? वह अचानक ‘भारत की बेटी’ क्यों और कैसे नहीं रहीं? क्या फोगाट पाकिस्तान में चुनाव लड़ रही हैं? असमानता और लैंगिक पूर्वाग्रह जैसे संघर्षों के बाद, विभिन्न खेल विधाओं में भाग लेकर पदक जीतने वाली महिलाओं का सभी को स्वागत करना चाहिए. 

ओलंपिक खेलों में, यह पीटी उषा ही थीं जो 1984 में लॉस एंजिल्स खेलों में पदक जीतने से कुछ सेकेंड से चूक गई थीं. तब बहुत से भारतीय घरों में टीवी सेट नहीं थे और एथलेटिक्स के बारे में तो बहुत कम लोग जानते थे. आज के हरियाणा की तरह केरल भी खेलों को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देता रहा है, खासकर महिलाओं के लिए. हरियाणा भारतीय कुश्ती का बड़ा गढ़ है, जिस तरह पंजाब कई दशकों तक हॉकी का था, या मुंबई क्रिकेट का. 

हरियाणा की लड़कियों- मुख्य रूप से फोगाट वंश- द्वारा दिखाया गया धैर्य और दृढ़ता आश्चर्यजनक है, खासकर तब जब खेल पर लंबे समय से पुरुष पहलवानों का वर्चस्व रहा है. भारत में जो सामाजिक संरचना है, उसमें किसी भी महिला पहलवान के लिए अखाड़े में प्रवेश करना कभी भी आसान नहीं था. फिर भी उन्होंने ऐसा किया, और पेरिस में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया. 

हमारी महिला खिलाड़ियों की विरासत को देखें: बछेंद्री पाल, मैरी कॉम, सानिया मिर्जा, अंजलि भागवत, दीपा करमाकर, बबिता-गीता फोगाट, पी.वी. सिंधु, साइना नेहवाल, मिताली राज, कर्णम मल्लेश्वरी और तैराक बुला चौधरी...ये कुछ नाम हैं जिन्होंने भारत को हमेशा गौरवान्वित किया है. बुला ने बंगाल से वामपंथी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता था. 

मुझे याद नहीं है कि तब कोई ऐसा विवाद हुआ हो. वैसे तो भाजपा ने भी कई खिलाड़ियों को चुनावी मैदान में पहले उतारा है. जब फोगाट डब्ल्यूएफआई को नियंत्रित करने वाले तत्वों के खिलाफ लड़ रही थीं, तो न्याय के लिए उनकी लड़ाई को ऐसे समझा गया जैसे ‘पहलवान’ सत्ताधारी दल  पर हमला कर रहे हों. 

जब पहलवानों द्वारा पहली बार छेड़छाड़ के आरोप लगाए गए थे, तो बृजभूषण शरण  सिंह को तुरंत कुश्ती महासंघ से खुद को अलग कर लेना चाहिए था. निष्पक्ष पुलिस जांच सुनिश्चित की जानी चाहिए थी. यहां तक कि खेल मंत्रालय और पीटी उषा के नेतृत्व वाले भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) को भी आंदोलनरत पहलवानों के मुद्दों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए था.

अगर भाजपा ने बृजभूषण का साथ देने के बजाय महासंघ के निहित स्वार्थी तत्वों के खिलाफ न्यायोचित लड़ाई में विनेश फोगाट के साथ सहानुभूति दिखाई होती तो शायद आज वह अलग स्थिति में होतीं. वह पेरिस में पदक जीत सकती थीं. सब जानते हैं कि पेरिस के लिए रवाना होने से पहले वह किस तरह की भयानक मानसिक पीड़ा के बीच अभ्यास कर रही थीं. 

यह कठिन परिस्थितियां सिंह और उनके जैसे विचार रखने वाले अन्य लोगों द्वारा निर्मित की गई थीं. लेकिन विनेश को कहीं से कोई समर्थन नहीं मिला. आज देश इसी बात पर अफसोस जता रहा है. अगर उनके साथ बेहतर व्यवहार किया गया होता जब उन्हें इसकी जरूरत थी, तो शायद फोगाट को कांग्रेस में शामिल होने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता. 

कौन जानता है, अगर उनके साथ न्यायोचित व्यवहार किया गया होता तो वे भाजपा में भी शामिल हो सकती थीं! महिलाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने की बातें लगातार करने वाली भाजपा के लिए अब एक मौका है कि वह विनेश को निर्विरोध जितवाए. भाजपा ही नहीं अन्य किसी भी दल को  विनेश के खिलाफ कोई उम्मीदवार न उतारकर भारतीय राजनीति में शुचिता का उदाहरण पेश करना चाहिए. 

तमाम राजनीतिक दलों को विनेश के मामले में भारतीय लोकतंत्र की पवित्रता और मजबूती दुनिया के सामने पेश करनी चाहिए. राजनीति के वर्तमान स्वरूप से दु:खी जनता का दिल जीतने का यह स्वर्णिम अवसर है.

Web Title: Personalities like Vinesh Phogat should be selected unopposed

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