पवन के वर्मा का ब्लॉग: नेताओं के बिगड़ैल बच्चों पर लगे लगाम
By पवन के वर्मा | Published: October 21, 2018 07:46 PM2018-10-21T19:46:16+5:302018-10-21T19:46:16+5:30
जब रॉकी ने आखिरकार उस कार को ओवरटेक कर लिया तो उसने अपनी बंदूक निकाली और आदित्य को गोली मार दी। सौभाग्य से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा कि अपराधी उनकी अपनी ही पार्टी की विधायक का बेटा था।
सात मई 2016 को जदयू विधायक मनोरमा देवी का बेटा रॉकी यादव बोधगया से गया की ओर जा रहा था। वह गुस्से में था कि उसके सामने वाली कार उसे रास्ता नहीं दे रही थी। सामने वाली कार 12वीं कक्षा का छात्र आदित्य सचदेवा चला रहा था।
जब रॉकी ने आखिरकार उस कार को ओवरटेक कर लिया तो उसने अपनी बंदूक निकाली और आदित्य को गोली मार दी। सौभाग्य से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा कि अपराधी उनकी अपनी ही पार्टी की विधायक का बेटा था।
यादव के खिलाफ मामला पूरी कठोरता के साथ चलाया गया। प्रमुख गवाहों के मुकर जाने के बावजूद रॉकी, उसका चचेरा भाई, उसकी मां का एक अंगरक्षक दोषी साबित हुए - सभी घटना के समय कार में थे - और उन्हें उम्रकैद की सजा दी गई। रॉकी के पिता को भी पांच साल की सजा सुनाई गई, क्योंकि उन्होंने अपने बेटे को पुलिस से छिपाने की कोशिश की थी।
इसी तरह की वीवीआईपी निरंकुशता पिछले हफ्ते एक बार फिर देखने को मिली, जब एक पूर्व बसपा सांसद के बेटे आशीष पांडे ने नई दिल्ली के पांच सितारा होटल हयात रीजेंसी में 16 अक्तूबर की रात पिस्तौल के बल पर धौंस जमाने की कोशिश की। आशीष के साथ कुछ दोस्त भी थे जिसमें तीन विदेशी लड़कियां शामिल थीं। उनकी एक जोड़े से तकरार हो गई।
जब वे होटल के पोर्च में थे, आशीष ने अपनी बीएमडब्ल्यू कार से पिस्तौल निकाली और अपशब्द कहते हुए उन्हें धमकाया। उसकी उंगलियां पिस्तौल के ट्रिगर पर थीं। सौभाग्य से होटल के स्टाफ ने बीच बचाव किया और दोनों पक्षों को अलग करने में कामयाब रहे।
यह पूरी घटना वीडियो कैमरे में दर्ज हो गई और सोशल मीडिया में वायरल हो गई। कई दिन तक फरार रहने के बाद आशीष पांडे को आखिरकार आत्मसमर्पण करना पड़ा और उसकी बीएमडब्ल्यू कार बरामद कर ली गई।
हमारे देश में शक्तिशाली घरों के लोग इतना अपमानजनक व्यवहार क्यों करते हैं? जवाब स्पष्ट है : वे मानते हैं कि उन्हें ऐसा करने का अधिकार है। कानून से ऊपर होने की भावना उन्हें विरासत में मिलती है। वे ऐसे माहौल में पले-बढ़े होते हैं, जहां कानून को शायद ही कभी प्राथमिकता मिलती है।
हमारे देश में - कुछ अपवादों के साथ - राजनीति भ्रष्ट है और सफल राजनीति तो और भी भ्रष्ट है। रॉकी यादव और आशीष पांडे जैसे लोग आमतौर पर ऐसे माहौल में बड़े हुए होंगे जहां चुनावी ‘जीत’ ही सब कुछ होती है और सत्ता की दौड़ नैतिकता का दम घोंट देती है।
उन्होंने यह भी देखा होगा कि कैसे कानून व्यवस्था लागू करने वाली एजेंसियां- जिसमें पुलिस भी शामिल है- सत्ता के खुलेआम दुरुपयोग के आगे सिर झुकाती हैं। उनमें यह विश्वास दृढ़ होने लगता है कि वे कानून से ऊपर हैं।
चिंता की बात यह है कि नेताओं के इन बिगड़ैल बच्चों में से कई अपने अभिभावकों के पदचिह्नें पर चलते हुए राजनीति में आएंगे और दुष्चक्र चलता रहेगा। समय आ गया है कि इस अपराधीकरण को रोका जाए, लेकिन ऐसा तभी हो सकता है जब आम जनता कहे कि बस, अब बहुत हो चुका!