पवन के. वर्मा का ब्लॉग: आचार संहिता का सख्ती से पालन कराए चुनाव आयोग
By पवन के वर्मा | Published: April 8, 2019 07:16 AM2019-04-08T07:16:48+5:302019-04-08T07:16:48+5:30
चुनाव आयोग संविधान में एक स्पष्ट प्रावधान से अपनी शक्ति प्राप्त करता है. अनुच्छेद 324 इसे चुनावों के ‘संचालन’ की शक्ति देता है. चुनाव आयोग सभी पार्टियों और उम्मीदवारों पर एक आदर्श आचार संहिता लागू करता है.
चुनाव आयोग को अगर सम्मान की नजरों से देखा जाता है तो यह उचित ही है. बीते वर्षो में उसने चुनावों के आयोजन के जरिये यह प्रतिष्ठा हासिल की है. आमतौर पर, चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल नहीं उठाया गया है और एक संस्था के रूप में इसकी स्वायत्तता संदेह के परे है. लेकिन अब चुनाव आयोग की प्रभावशीलता सवालों के घेरे में है. यह अच्छे इरादों की कमी की वजह से नहीं है, बल्कि इसलिए कि कारण जो भी हो, आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों पर चुनाव आयोग त्वरित और निर्णायक तरीके से कार्रवाई करने से कतराता सा लग रहा है.
इस चुप्पी का कारण क्या है? क्या चुनाव आयोग के पास इसके लिए पर्याप्त शक्तियों का अभाव है, या जरूरत पड़ने पर भी वह इन शक्तियों का पूरी तरह से उपयोग नहीं करना चाहता है? बुनियादी रूप से यह एक महत्वपूर्ण सवाल है, क्योंकि संसदीय चुनाव होने जा रहे हैं और यह जरूरी है कि लोगों का यह विश्वास बना रहे कि चुनाव आयोग द्वारा इन चुनावों का संचालन और पर्यवेक्षण प्रभावी ढंग से और निष्पक्ष तरीके से किया जाता है.
चुनाव आयोग संविधान में एक स्पष्ट प्रावधान से अपनी शक्ति प्राप्त करता है. अनुच्छेद 324 इसे चुनावों के ‘संचालन’ की शक्ति देता है. चुनाव आयोग सभी पार्टियों और उम्मीदवारों पर एक आदर्श आचार संहिता लागू करता है. इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि कोई भी पार्टी ऐसी किसी गतिविधि में शामिल नहीं होगी जिससे अलग-अलग जाति, समुदाय, धार्मिक या भाषायी समूहों के बीच तनाव पैदा हो. इसमें यह भी कहा गया है कि अन्य बातों के साथ वोट हासिल करने के लिए जाति या सांप्रदायिक भावना के आधार पर कोई अपील नहीं की जाएगी. ये असंदिग्ध निषेधाज्ञाएं हैं.
फिर चुनाव आयोग राजनीतिक वर्ग द्वारा इन निषेधाज्ञाओं के खुलेआम उल्लंघन पर कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा है? हालिया उदाहरण योगी आदित्यनाथ का ‘मोदीजी की सेना’ वाक्यांश के जरिए सशस्त्र बलों के राजनीतिकरण की कोशिश पर चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया का है. चुनाव आयोग ने इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई करने के बजाय सिर्फ उन्हें एक नोटिस जारी किया और फिर केवल इतना कहा कि वे ‘सावधानी’ बरतें तथा आगे अपने चुनाव अभियान के दौरान भाषणों में सशस्त्र बलों का संदर्भ देते समय ‘ज्यादा सतर्क’ रहें.
इस मामूली कार्रवाई का ही असर है कि सरकार में एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने इस वाक्यांश का फिर से उपयोग किया. एक अन्य उदाहरण राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह का है. एक वीडियो टेप में वे खुले तौर पर कहते सुने गए कि वे भाजपा समर्थक हैं और उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के लिए वोट करने को प्रेरित किया.
तथ्य यह है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव आयोग को अपनी भूमिका में बदलाव करने की जरूरत है. यदि चुनावों के संचालन में चुनाव आयोग खुद सक्रिय होकर कार्य नहीं करता है तो उसकी भूमिका कमजोर हो जाती है और उसके निर्देश निष्प्रभावी हो जाते हैं.