पवन के. वर्मा का ब्लॉग: लॉकडाउन के बीच गरीबों के मुद्दे पर भी ध्यान देना जरूरी

By पवन के वर्मा | Published: April 5, 2020 09:52 AM2020-04-05T09:52:24+5:302020-04-05T09:52:24+5:30

सरकार ने गरीबों की मदद के लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा की है. लेकिन संकट की भयावहता को देखते हुए यह बेहद अपर्याप्त है. मोटे तौर पर घोषित 1.7 लाख करोड़ रु. में से 70 हजार करोड़ मौजूदा आवंटन का ही हिस्सा है. इस प्रकार अतिरिक्त आवंटन केवल एक लाख करोड़ रु. ही है जो कि सरकार के बजट के एक प्रतिशत से भी कम है. जबकि अन्य देशों, जैसे अमेरिका ने जरूरतमंदों की मदद के लिए सरकार के बजट का दस प्रतिशत आवंटित किया है.

Pawan K. Varma blog: It is also important to pay attention to the issue of poor amid lockdown | पवन के. वर्मा का ब्लॉग: लॉकडाउन के बीच गरीबों के मुद्दे पर भी ध्यान देना जरूरी

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (Image Source: Pixabay)

प्रधानमंत्री नरेंद्री मोदी के आह्वान पर आज रात नौ बजे बहुत से भारतीय अपने घरों की बिजली बंद करके मोमबत्ती, दीया या टॉर्च नौ मिनट तक जलाकर कोरोना महामारी के खिलाफ राष्ट्र के संघर्ष के लिए एकजुटता का प्रदर्शन करेंगे. राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए इस आह्वान का प्रतीकात्मक महत्व है और कोई संदेह नहीं कि यह बहुत से नागरिकों के भीतर आशा और विश्वास की भावना को बल देती है. लेकिन यह भी याद रखा जाना चाहिए कि बहुत से नागरिक अपने घरों में नहीं होंगे. वे पर्याप्त भोजन की व्यवस्था के बिना सड़क पर या अस्थायी आश्रयों में हो सकते हैं और हो सकता है उनके पास मोमबत्ती खरीदने के लिए भी पैसे न हों. वे मध्यमवर्गीय और समृद्ध भारत के लिए मूकदर्शक बने रहेंगे, लेकिन अपने चारों ओर घिरने वाले अंधेरे के बीच इस चिंता में पड़े होंगे कि आने वाले दिन में वे कैसे अपने आपको बचाकर रखेंगे.

सरकार के ताजा बाल श्रम सर्वेक्षण के अनुसार ऐसे करोड़ों लोग स्व-रोजगार में हैं, दिहाड़ी मजदूर हैं या असंगठित क्षेत्र के कामगार हैं जिन्हें कोई सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध नहीं है. लॉकडाउन की घोषणा होने के बाद, वे जहां थे, वहीं रह गए और अपने मूल घरों को नहीं लौट सके, जहां वे जाना चाहते थे. वे जहां रुके थे, वहीं रह जाते तो भूखों मरते. अपने मूल घरों को लौटना चाहते थे, लेकिन कोई साधन नहीं था, ट्रेनें, बसें ठप थीं और पुलिस की नाकाबंदी ने उन्हें पैदल जाने से भी रोक दिया.

ऐसे लोग हमारी सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के सबसे कमजोर बिंदु हैं. लॉकडाउन लागू किए जाने के केवल चार घंटे पहले प्रधानमंत्री ने इसकी घोषणा की. यह सच है कि असाधारण समय में विकल्प आसान नहीं होते हैं. प्रधानमंत्री ने तीन सप्ताह के लॉकडाउन जैसा निर्णायक कदम उठाया. लेकिन इसके देश पर पड़ने वाले अपरिहार्य परिणामों के लिए बेहतर तैयारी रखी जानी चाहिए थी. लॉकडाउन के बाद अपने घरों की ओर लौटने वाले लाखों प्रवासी मजदूरों का सड़कों पर तांता लगा था, जिससे लॉकडाउन के उद्देश्य का ही उपहास हो रहा था.

सरकार ने गरीबों की मदद के लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा की है. लेकिन संकट की भयावहता को देखते हुए यह बेहद अपर्याप्त है. मोटे तौर पर घोषित 1.7 लाख करोड़ रु. में से 70 हजार करोड़ मौजूदा आवंटन का ही हिस्सा है. इस प्रकार अतिरिक्त आवंटन केवल एक लाख करोड़ रु. ही है जो कि सरकार के बजट के एक प्रतिशत से भी कम है. जबकि अन्य देशों, जैसे अमेरिका ने जरूरतमंदों की मदद के लिए सरकार के बजट का दस प्रतिशत आवंटित किया है. इस मदद के गरीबों तक पहुंचने का सवाल भी है. खातों में सीधे राशि हस्तांतरित करने में जनधन खातों से मदद मिलेगी, लेकिन अभी भी लगभग 19 करोड़ भारतीय ऐसे हैं जिनके पास बैंक खाता नहीं है. इसके अलावा राशन का अतिरिक्त आवंटन लाभार्थियों तक कैसे पहुंचेगा, क्योंकि परिवहन व्यवस्था ठप है.

राज्य सरकारों को पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने का सवाल भी है, क्योंकि इस चुनौती से अंतत: तो पूरे देश को मिलकर ही निपटना होगा. लेकिन कई मुख्यमंत्रियों ने शिकायत की है कि - अन्य देय राशियों के अलावा - उनका जीएसटी भुगतान तक बकाया है, और यह उनके राहत प्रयासों में बाधा है.

यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री प्रतीकों के जरिये राष्ट्रीय एकजुटता पैदा कर रहे हैं. इस अभूतपूर्व चुनौती का सामना करने के लिए यह महत्वपूर्ण है. लेकिन उन्हें गरीबों के मुद्दों पर भी ध्यान देना चाहिए.

Web Title: Pawan K. Varma blog: It is also important to pay attention to the issue of poor amid lockdown

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