ब्लॉग: उपयोगी बहस और सार्थक कामकाज के लिए हो संसद का उपयोग
By विश्वनाथ सचदेव | Published: May 24, 2023 02:55 PM2023-05-24T14:55:26+5:302023-05-24T14:57:30+5:30
लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण संसद-भवन नहीं संसद-भवन के भीतर होने वाली कार्यवाही है. कौन नहीं जानता कि पिछले कुछ सालों में हमारी संसदीय कार्यवाही में लगातार गिरावट आई है?
बहुचर्चित नया संसद परिसर लगभग बनकर तैयार है और अब इसे देश को लोकार्पित किया जाना है. लोकसभा के स्पीकर ने उद्घाटन करने के लिए प्रधानमंत्री को निमंत्रित किया है. विपक्ष का कहना है कि यह कार्य देश के प्रथम नागरिक अर्थात राष्ट्रपति के हाथों होना चाहिए. उधर प्रधानमंत्री के हाथों उद्घाटन कराने के पक्षधरों का कहना है कि प्रधानमंत्री देश का सर्वोच्च निर्वाचित नेता होता है और यह नया संसद परिसर तो प्रधानमंत्री मोदी की प्रिय परियोजना है.
कोरोना-काल में जब देश के सारे निर्माण-कार्य ठप पड़ गए थे, इस परिसर का काम नहीं रोका गया था, और निर्माण कार्य के दौरान प्रधानमंत्री लगातार इसकी निगरानी कर रहे थे. क्या बुरा है यदि उद्घाटन भी उन्हीं के हाथों हो?
पहले भी पूर्व प्रधानमंत्री संसद से जुड़े संस्थानों के उद्घाटन करते रहे हैं. ‘दूरदर्शन’ ने तो राजीव गांधी के हाथों होने वाले ऐसे उद्घाटन की फिल्म भी देश के सामने रख दी है. सच पूछा जाए तो यह विवाद का विषय है ही नहीं. होना ही नहीं चाहिए. पर जिस तरह की राजनीति आज देश में हो रही है उसमें अनावश्यक मुद्दे हथियार बनाए जा रहे हैं.
महत्वपूर्ण संसद-भवन नहीं संसद-भवन के भीतर होने वाली कार्यवाही है. कौन नहीं जानता कि पिछले कुछ सालों में हमारी संसदीय कार्यवाही में लगातार गिरावट आई है? संसद के भीतर होने वाली बहस का स्तर तो गिरा ही है, अक्सर हमने देखा है कि संसद का बहुमूल्य समय बेमतलब के विवादों की बलि चढ़ता रहा है. संसद के हर सत्र के बाद इस तरह के आंकड़े प्रस्तुत किए जाते हैं जो यह बताते हैं कि संसद का कितना समय शोर-शराबे और बहिर्गमन और काम में व्यवधान डालने में बर्बाद होता है.
यह एक संयोग ही है कि जब नए संसद-भवन के उद्घाटन को लेकर देश में विवाद चल रहा है तो देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ केरल विधानसभा भवन के रजत-जयंती समारोह में संसद और विधानसभा सदनों में काम-काज में रुकावट डालने को राजनीतिक रणनीति का हथियार बनाने की प्रवृत्ति के खिलाफ देश को आगाह कर रहे थे. उन्होंने सदनों के अध्यक्षों को आगाह किया कि वे इस बारे में राष्ट्रीय सहमति बनाने का काम करें कि जनतंत्र के मंदिरों का उपयोग उपयोगी बहस और सार्थक कामकाज के लिए ही हो.
अब जब हम नए संसद-परिसर के उद्घाटन समारोह के साक्षी बन रहे हैं, इस बात का भी ध्यान रखा जाना जरूरी है कि जनतंत्र का हमारा मंदिर जनतांत्रिक मूल्यों-आदर्शों के अनुरूप कार्य का उदाहरण बने. यह बात महत्वपूर्ण नहीं है कि उद्घाटन किसके हाथों हो, महत्वपूर्ण यह है कि उद्घाटन के बाद वहां काम कैसा हो रहा है.