पाक को निर्णायक सबक सिखाना जरूरी?, हमने सैन्य कार्रवाई रोकी, समाप्त नहीं की

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 16, 2025 05:39 IST2025-05-16T05:38:42+5:302025-05-16T05:39:46+5:30

जवाबी कार्रवाई की चेतावनी जिसे पड़ोसी देश कभी नहीं भूलेगा. इसलिए जब जवाबी कार्रवाई के रूप में प्रशंसनीय ‘ऑपरेशन सिंदूर’ आरंभ हुआ तो निर्दोष भारतीयों और उन परिवारजनों ने उत्सुकता से कार्रवाई पर नजर रखी.

pakistan necessary teach Pakistan decisive lesson stopped military action not ended it blog Abhilash Khandekar | पाक को निर्णायक सबक सिखाना जरूरी?, हमने सैन्य कार्रवाई रोकी, समाप्त नहीं की

file photo

Highlightsभयानक था कि एक मजबूत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उस दुष्ट देश को अभूतपूर्व चेतावनी देनी पड़ी. सशस्त्र आतंकियों के अमानवीय हमलों में अपने परिजन खो दिए थे. वे एक ‘निर्णायक युद्ध’ की उम्मीद कर रहे थे.1971 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व को छोड़ दिया जाए तो बाकी सरकारें पाकिस्तान का सामना करने में बहुत कमजोर रही हैं.

अब परिस्थितियां पहले जैसी नहीं रहीं. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा और नया भारत है, जो कमजोर और चुप रहने वाला नहीं. दो युद्धरत देशों के बीच अचानक युद्धविराम अप्रत्याशित था. इस विराम से सशस्त्र बलों और सरकारी अधिकारियों सहित सभी आश्चर्यचकित हो गए. भारतीय जनता पार्टी के कट्टर समर्थकों की तो बात ही छोड़िए. पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों की उकसावे के बिना की गई घटना के बाद जो संघर्ष शुरू हुआ, वह इतना भयानक था कि एक मजबूत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उस दुष्ट देश को अभूतपूर्व चेतावनी देनी पड़ी.

ऐसी जवाबी कार्रवाई की चेतावनी जिसे पड़ोसी देश कभी नहीं भूलेगा. इसलिए जब जवाबी कार्रवाई के रूप में प्रशंसनीय ‘ऑपरेशन सिंदूर’ आरंभ हुआ तो निर्दोष भारतीयों और उन परिवारजनों ने उत्सुकता से कार्रवाई पर नजर रखी, जिन्होंने सशस्त्र आतंकियों के अमानवीय हमलों में अपने परिजन खो दिए थे. वे एक ‘निर्णायक युद्ध’ की उम्मीद कर रहे थे.

जनता को लगने लगा था कि 1971 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व को छोड़ दिया जाए तो बाकी सरकारें पाकिस्तान का सामना करने में बहुत कमजोर रही हैं. अब परिस्थितियां पहले जैसी नहीं रहीं. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा और नया भारत है, जो कमजोर और चुप रहने वाला नहीं. हालांकि हर युद्ध अर्थव्यवस्था को पंगु कर देता है और उसमें भारी मानवीय क्षति के साथ कई अन्य नुकसान होते हैं,

फिर भी देशभर में एक आम भावना यह थी कि इस बार अंतिम जीत भारत की ही होगी. पाकिस्तान को ऐसे गंभीर परिणाम झेलने होंगे जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी. बिहार में एक जनसभा में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण ने देशवासियों की भावनाओं को और भड़का दिया था. भारतीय सशस्त्र बल हमेशा से पाकिस्तान से कहीं अधिक सक्षम रहे हैं,

लेकिन पहले उनके साथ वह राजनीतिक दृढ़ता नहीं थी जो पहलगाम जैसी घटनाओं के बाद जरूरी होती है. भारत पहले ही उड़ी और बालाकोट जैसी कार्रवाइयों में अपनी मजबूत नीति का उदाहरण पेश कर चुका था. नागरिकों ने इस राजनीतिक रुख की सराहना की थी. कहने की जरूरत नहीं कि आम भारतीयों के मन में पाकिस्तान के प्रति गहरी नफरत है.

इस बार इसमें महिलाएं भी शामिल हो गईं क्योंकि एक ही दिन में कई महिलाएं विधवा हो गईं. लोगों का गुस्सा चरम पर था. पहलगाम हमले में मारे गए लोगों के परिजन को टीवी पर यह कहते हुए सुना गया, ‘इस बार पाकिस्तान को कुचल देना चाहिए.’ मोदी ने तुरंत गुस्से को भांप लिया. सशस्त्र बलों के प्रमुखों, एनएसए अजीत डोभाल, विदेश मंत्रालय के अधिकारियों और अन्य लोगों के साथ लंबी बातचीत हुई.

जल्द ही एक भावनात्मक ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का जन्म हुआ. मुझे याद है कि जब कारगिल युद्ध शुरू हुआ और भारतीय सशस्त्र बलों ने अपने वाहनों और टैंकों को अलग-अलग स्थानों से सीमा की ओर ले जाना शुरू किया, तो लोग सड़कों पर कतारों में खड़े होकर उन पर फूल चढ़ा रहे थे, युद्ध में सफलता की कामना कर रहे थे जो अभी शुरू होना बाकी था. यही भारत है.

लेकिन आतंकवाद को शह देने वाले मुस्लिम राष्ट्र को एक मजबूत इच्छाशक्ति वाली भारत सरकार से सजा दिलाने की जो उम्मीद आम लोगों को थी, वह बहुत जल्दी टूट गई. हर कोई यही सोच रहा है कि क्या भारत अमेरिकी दबाव के आगे झुक गया? इसका एक कारण यह भी है कि भारतीय मिसाइलों और ड्रोन हमलों ने पाकिस्तान के कई वायुसेना अड्डों को भारी नुकसान पहुंचाया था.

वहां के आतंकवादी शिविरों को रणनीतिक योजना के तहत पूरी तरह तबाह कर दिया गया था. 22 अप्रैल को पहलगाम हमले और मई के पहले सप्ताह में आतंकवादी ठिकानों पर आधी रात को किए गए सटीक हमलों के बीच भारत ने जो तैयारियां की थीं, उनका असर साफ दिखाई दिया. यह ‘होमवर्क’ रंग लाया. युद्ध बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा था.

अधिकांश रिपोर्ट से पता चला कि तीन दिनों तक हवाई अभियान में भारत का पलड़ा भारी था, जिसमें पाकिस्तानी आतंकवादी मारे गए थे. जिस अनुच्छेद 370 को कांग्रेस सरकारों के दौर में असंभव माना जाता था, उसे मोदी-शाह की जोड़ी ने हटा दिया. यह स्पष्ट संकेत था कि कश्मीर के मामलों में राजनीतिक इच्छाशक्ति अब बेहद मजबूत हो चुकी है.

जब पहलगाम हमले के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कठोर कार्रवाई का वादा किया, तो जनता को पूरा भरोसा था कि इस बार जवाब बहुत मजबूत और निर्णायक होगा. मैं जानता हूं कि सरकारें और शीर्ष स्तर के निर्णयकर्ताओं की अपनी सीमाएं होती हैं, उन्हें भावनाओं में नहीं बहना चाहिए. फिर भी पहलगाम में अपने पति को गंवाने वाली महिलाओं के साथ जो हुआ, उसका उत्तर नहीं मिला.

क्या उन्हें न्याय मिला? उनके लिए ही ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया गया. संघर्षविराम के बाद अब प्रधानमंत्री मोदी ने देश को बताया है कि भारतीय सैन्य कार्रवाई रोकी गई है, समाप्त नहीं हुई है. उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि भारत किसी भी हालत में परमाणु धमकी को स्वीकार नहीं करेगा.

अब हमारे पास कोई विकल्प नहीं है सिवाय इसके कि हम पाकिस्तान के विरुद्ध होने वाली आगे की राजनयिक, सैन्य और राजनीतिक कार्रवाइयों का इंतजार करें. पहलगाम को कभी नहीं भुलाया जाना चाहिए. पाकिस्तान को एक ठोस सबक सिखाना जरूरी है.

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