राजेश बादल का ब्लॉग: पाक की सबसे बड़ी कूटनीतिक पराजय
By राजेश बादल | Published: February 27, 2019 06:21 AM2019-02-27T06:21:08+5:302019-02-27T06:21:08+5:30
भारत से भुगतान का संकट नहीं है. पाकिस्तान तो तेल की कीमत भी नहीं चुका सकता और उधार देने की स्थिति में सऊदी अरब नहीं है. उसने जो भी सहायता की है, वह उसका पूंजीनिवेश है.
भारतीय वायुसेना की कार्रवाई दरअसल पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में की गई है. इसका भारत को अधिकार है क्योंकि यह उसी का इलाका है. बालाकोट यद्यपि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से एकदम सटा हुआ है और हमारे विमानों ने पाक अधिकृत कश्मीर के आसमान में रहते हुए बालाकोट के जैश ठिकाने को नेस्तनाबूद किया है. वैसे भी इस तरह की कार्रवाई में आतंकवादी शिविर ही निशाने पर होते हैं. वे कहीं भी हों. एक मायने में बांग्लादेश की जंग के बाद यह हिंदुस्तान की सबसे बड़ी कूटनीतिक जीत है.
पुलवामा संहार का उत्तर देने के लिए भारत ने इसी कारण उस क्षेत्र को चुना, जो पाकिस्तान के कब्जे में है लेकिन पाकिस्तान का नहीं है. इस नाते उसे अपनी संप्रभुता के उल्लंघन का दावा करने तक का अधिकार नहीं मिलता. यह विशुद्ध आतंकवादी ठिकानों पर की गई कार्रवाई है और इसका समर्थन पूरा विश्व करता है. चीन तक इसकी आलोचना नहीं कर सकेगा.
पाकिस्तान के एक और मित्र सउदी अरब के पास पर्याप्त सैनिक शक्ति नहीं है. उसने अपने शाही परिवार की रक्षा तक का काम पाकिस्तानी फौज के सुपुर्द कर रखा है. समय समय पर पाकिस्तानी फौज की वहां जरूरत पड़ती रही है. दूसरा, भारत को उसका तेल निर्यात मुसीबत में पड़ जाएगा. यह उसकी अर्थव्यवस्था को संकट में डाल सकता है.
भारत से भुगतान का संकट नहीं है. पाकिस्तान तो तेल की कीमत भी नहीं चुका सकता और उधार देने की स्थिति में सऊदी अरब नहीं है. उसने जो भी सहायता की है, वह उसका पूंजीनिवेश है. पाक अधिकृत कश्मीर में पहले से ही पाकिस्तान विरोधी अनेक आंदोलन चल रहे हैं. अब वे और तेज हो जाएंगे. वहां के लोग पहले ही भारत में विलय या फिर आजादी की मांग उठाते रहे हैं. इसके अलावा पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत बलूचिस्तान में भी अलग होने के लिए आंदोलन तेज होगा. उसके पीछे ईरान की सीमा लगती है. पुलवामा हमले के एक दिन पहले ईरान अपने 27 सैनिकों के मारे जाने से बेहद नाराज है.
आतंकवादी गुट पीओके से भाग कर अफगान सीमा पर जाएंगे. वहां अमेरिकी और नॉटो फौज उन्हें नहीं छोड़ेगी. इससे पाकिस्तानी तालिबान की स्थिति अत्यंत खराब हो जाएगी. उस इलाके में इमरान खान की पार्टी पहले ही इन गुटों को समर्थन देती रही है पर बदली परिस्थितियों में इमरान खान के हाथ बंधे हैं. पाकिस्तानी अवाम खुलकर मसूद अजहर, हाफिज सईद, सलाहुद्दीन और हक्कानी नेटवर्कजैसों के खिलाफ अब खुलकर सामने आएगी. विरोध तो वह पहले से ही कर रही है. पाकिस्तान सांप-छछूंदर की स्थिति में है. इस हमले का विरोध भी नहीं कर सकता और पूर्ण युद्ध लड़ भी नहीं सकता.