राजेश बादल का ब्लॉग: एक तीर से कई निशाने साधते अमेरिका और पाक
By राजेश बादल | Published: July 23, 2019 07:04 AM2019-07-23T07:04:25+5:302019-07-23T07:04:25+5:30
हिंदुस्तान से बेहतर संबंध-संतुलन के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान से दूरी बनाकर रखी. उसे आर्थिक मदद रोकी और हाफिज सईद को वैश्विक आतंकी घोषित कराने में साथ दिया.
इन दिनों अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति कमाल की है. कोई स्थायी सिद्धांत आधारित नीतियां नहीं रही हैं. तात्कालिक हितों को देखते हुए भी देश अपनी परदेसी पॉलिसी का मिजाज तय करने लगे हैं. हाल का घटनाक्रम कुछ ऐसी ही बानगी पेश करता है. अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्ते भी इसी तरह के हैं. जन्म से ही पाकिस्तान की परवरिश अमेरिका के संरक्षण में होती रही है. हाल के कुछ वर्षो में आतंकवाद को पालने-पोसने की खुली नीति और कुछ भारतीय दबाव के चलते पाकिस्तान अलग-थलग पड़ा हुआ है. दिवालिया होने की कगार पर खड़े इस पड़ोसी के सामने अस्तित्व का संकट है इसलिए यू-टर्न प्राइम मिनिस्टर इमरान खान ने न जाने कितने टर्न लेकर अमेरिकी शरण में जाने का फैसला किया है. 22 जुलाई को ट्रम्प-इमरान शिखर वार्ता के कुछ ऐसे ही संकेत हैं कि दोनों मुल्क एक दूसरे पर कई निशाने वाला तीर चला रहे हैं.
दरअसल डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी लेते ही चीन का रौब कम करना उनकी प्राथमिकताओं की सूची में था. इसके लिए एशियाई विराट देशों में हिंदुस्तान ही उनका सहयोगी हो सकता था. इधर नरेंद्र मोदी और भारत के लिए अमेरिकी आंखों के तारे पाकिस्तान की असलियत उजागर करना बेहद जरूरी था. इस नाते ट्रम्प-मोदी की स्वाभाविक निकटता के नतीजे दिखे. लेकिन भारत के लोकतांत्रिक संस्कार कभी भी किसी अन्य राष्ट्र का पिट्ठू बनने की इजाजत नहीं देते. वह एक सीमा तक ही अमेरिका के करीब जा सकता था. उधर अमेरिकी अपने संस्कारों से व्यापारिक चतुराई निकाल नहीं सकते थे. एक तरफ पवित्न प्रशासन शैली थी तो दूसरी ओर सिर्फ कारोबारी स्वार्थ साधने का लालच. इस नाते दोनों विशाल राष्ट्र गलबहियां तो डाल सकते थे, इससे आगे नहीं जा सकते थे. इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए वर्तमान घटनाक्र म समझना पड़ेगा.
हिंदुस्तान से बेहतर संबंध-संतुलन के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान से दूरी बनाकर रखी. उसे आर्थिक मदद रोकी और हाफिज सईद को वैश्विक आतंकी घोषित कराने में साथ दिया. मगर पहला कार्यकाल पूरा होने के करीब आते आते ट्रम्प प्रशासन के कारोबारी शुल्क लगाने तथा अफगानिस्तान व ईरान के मसले पर भारत के साथ असहमतियों के सुर निकलने लगे तो एक बार फिर अमेरिका अपना रंग बदल रहा है. उसका परंपरागत रूप हमारे सामने है. जाहिर है भारत के लिए राष्ट्रीय हितों को दरकिनार करके अमेरिका के संग जाना अत्यंत जोखिम भरा है. डोनाल्ड ट्रम्प चूंकि दूसरे कार्यकाल के लिए भी चुनाव मैदान में हैं इसलिए विरोधी मतों में सेंध लगाने के इरादे से अनेक मामलों में यू-टर्न लेते नजर आ रहे हैं. जापान में जी-20 सम्मेलन के बाद ही ट्रम्प ने इस रु ख में बदलाव के संकेत दे दिए थे. अब ट्रम्प अफगानिस्तान में अपनी फौज की उपस्थिति नहीं चाहते. बरसों से अपने सैनिकों की वहां मौजूदगी से अमेरिकी अवाम में नाराजगी है. सैनिक मारे जा रहे हैं, उनके परिवार दुखी हैं. ट्रम्प अगले चुनाव में उनकी सहानुभूति चाहते हैं.
तालिबान से जंग जीत नहीं पा रहे हैं. ऐसी सूरत में समझौते के सिवा कोई रास्ता नहीं दिखाई देता. भारत इसमें मदद नहीं दे सकता. तालिबानी कश्मीरी आतंकवादियों और पाक के साथ खड़े हैं. इस कारण अमेरिका एक साल से पाकिस्तान की सहायता से तालिबान के साथ गुपचुप वार्ताएं कर रहा है. निकट भविष्य में भी एक बैठक होने जा रही है. ट्रम्प-इमरान वार्ता का यह बड़ा मुद्दा है. जाहिर है अमेरिका पाकिस्तान के प्रति रवैया बदल रहा है. तालिबान-संधि प्रयासों के जरिये पाकिस्तान अमेरिका को एक तरह से उपकृत करेगा, दूसरी तरफ अपने लिए आर्थिक और रोकी गई सैन्य मदद को बहाल करने का प्लेटफॉर्म तैयार करेगा और तीसरी तरफ तालिबान को मुख्य धारा में लाकर भारत के अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण की कोशिश को झटका देगा. अमेरिका अगर पाकिस्तान की पीठ पर हाथ रखता है तो यह हिंदुस्तान के लिए एक कड़ा संदेश होगा, दूसरी ओर चीन के लिए भी एक झटका होगा और तीसरी तरफ मध्य-पूर्व की राजनीति में पाकिस्तान एक केंद्र के रूप में उभर सकता है. ईरान के मसले पर यदि कभी सैनिक कार्रवाई के लिए अमेरिका अपना अड्डा बनाना चाहे तो पाकिस्तान ही उसकी बरसों पुरानी मंशा पूरी कर सकता है.
हाफिज सईद की गिरफ्तारी के बाद डोनाल्ड ट्रम्प अपने मित्न देशों के सामने पाकिस्तान का पक्ष इस आधार पर रख सकते हैं कि पाकिस्तान अब अपने यहां सक्रिय आतंकवादी समूहों को पुरजोर तरीके से नष्ट कर रहा है. कोई आश्चर्य नहीं कि किसी दिन अमेरिकी फौजी यह दावा करें कि अंधेरे में ओसामा बिन लादेन की तरह हाफिज सईद मारा गया है. इसके बाद अमेरिका जनवरी 2018 से बंद सैनिक सहायता के दरवाजे खोल सकता है. अगर मित्न देशों पर इसका सकारात्मक असर पड़ा तो पाकिस्तान के पक्ष में एक और महत्वपूर्ण बात हो सकती है. 36 देशों वाले फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने पाक को अपनी ग्रे सूची में डाला है. उसे चेतावनी दी गई है कि अगर उसने अपनी धरती से आतंकवाद का पालन-पोषण बंद नहीं किया तो उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया जाएगा. इसके लिए पाकिस्तान को पहले जनवरी, फिर मई और अब अक्तूबर तक आखिरी मोहलत दी गई है. यदि इसमें पाकिस्तान नाकाम रहा तो दुनिया भर से आर्थिक मदद पर अलीगढ़ी ताला लग जाएगा. यानी भारत के लिए अमेरिकी व्यवहार एक चेतावनी भी है.