तुम्हारी गोलियां सच्चाई की आवाज को खामोश नहीं कर सकतीं
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: May 6, 2025 07:13 IST2025-05-06T07:12:31+5:302025-05-06T07:13:55+5:30
तुम्हारा कुकृत्य इस विरासत के खिलाफ एक घिनौनी गद्दारी है. तुम इस्लाम या कश्मीर के लिए लड़ने का दावा करते हो.

तुम्हारी गोलियां सच्चाई की आवाज को खामोश नहीं कर सकतीं
माजिद पारेख
पहलगाम में जो भयानक और नासमझी भरा हिंसक हमला हुआ है, उसने सिर्फ देश की शांति नहीं तोड़ी बल्कि हर उस भारतीय मुसलमान की आत्मा को झकझोर दिया है, जो अब भी एकता, इंसानियत और न्याय में विश्वास रखता है. आतंकवादियों के नाम मैं यह खुला पत्र सिर्फ एक नागरिक के रूप में नहीं लिख रहा हूं, बल्कि एक टूटे हुए दिल वाले भारतीय मुसलमान के रूप में लिख रहा हूं-जिसकी आस्था हमेशा इस देश के प्रति प्रेम और शांति में बसी रही है. उसी शांति पर हमला हुआ है.
जब तुमने निर्दोष नागरिकों, पर्यटकों और बच्चों पर गोलियां चलाईं, तो सिर्फ एक जगह को निशाना नहीं बनाया-बल्कि भारत की आत्मा, उसकी साझा संस्कृति और उसके मूल्यों को चोट पहुंचाई है.
मैं उसी जमीन पर पैदा हुआ जिसे तुमने अपवित्र करने की कोशिश की. मैंने पहलगाम की शांति भरी वादियों को हमेशा महसूस किया है, उसकी ताजा हवा में लोगों को सांसें लेते हुए लोगों के बीच की अनकही सौहार्द्रता को महसूस किया है. मैंने भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर साझा किया है. और आज, उसी आत्मा को तुमने रौंदा है.
मगर यह जान लो-तुम्हारी गोलियां सच्चाई की आवाज को खामोश नहीं कर सकतीं. नफरत शांति का संदेश नहीं मिटा सकती.
पहलगाम सिर्फ नक्शे पर एक जगह नहीं है. यह भारत की विविधता, समावेशिता और अटूटता का जीता-जागता प्रतीक है. कुरान शरीफ के सूरह ताहा की आयत 55 में लिखा है कि अल्लाह ने इंसान को मिट्टी से बनाया. और आयत 53 में जमीन को पालन करने वाली मां बताया गया है. तो बताओ, कैसे तुम उस मिट्टी से गद्दारी कर सकते हो जिसने तुम्हें पाला? कैसे तुम इस्लाम के नाम पर वही उसूल तोड़ सकते हो, जो इसकी बुनियाद है? हम भारतीय मुसलमानों को हमेशा इज्जत और आजादी मिली है.
मैंने हमेशा खुद को पहले एक भारतीय समझा है—इस देश में मुझे मिली आजादी और इज्जत के लिए शुक्रगुजार रहा हूं. इसी विरासत से मैं तुमसे बात कर रहा हूं-और तुम्हारा कुकृत्य इस विरासत के खिलाफ एक घिनौनी गद्दारी है. तुम इस्लाम या कश्मीर के लिए लड़ने का दावा करते हो.
मगर हमारी समझ का अपमान मत करो. कुरान बताता है कि बिना राज्य की अनुमति और शांति संधियों की अवहेलना करते हुए किया गया जिहाद इस्लामिक नैतिकता के खिलाफ है. तुम न तो स्वतंत्रता सेनानी हो, न योद्धा, न शहीद. तुम कायर हो-मासूमों पर वार करने वाले, पवित्र आयतों को तोड़-मरोड़ कर हत्या को सही ठहराने वाले. तुमने आम इंसानों—पर्यटकों, महिलाओं, मासूम बच्चों, तीर्थयात्रियों, नवविवाहितों—को निशाना बनाया. और इस क्रूरता को तुम जिहाद कहते हो? शर्म आनी चाहिए तुमको.
जिहाद का अर्थ है ‘संघर्ष’-एक पवित्र शब्द जिसे तुम्हारी विकृत सोच ने कलंकित कर दिया है. तुम्हारा कृत्य जिहाद नहीं, पाप है. विश्वासघात है. इस्लाम की शिक्षाओं का अपमान है. पैगंबर मुहम्मद (स.अ.) ने कहा था, ‘‘जो किसी भी इंसान की हत्या करेगा, मैं कयामत के दिन उसके खिलाफ खड़ा रहूंगा.’’ इस हदीस से यह स्पष्ट होता है कि इस्लाम में गैर-मुसलमानों के प्रति सुरक्षा और सम्मान अत्यंत महत्वपूर्ण है.
कोई भी व्यक्ति जो इस सुरक्षा को तोड़ता है, वह गंभीर धार्मिक दंड का पात्र है. फिर भी तुम निर्दोषों का खून बहाते हो और खुद को इस्लाम का प्रतिनिधि कहते हो? तुमने न केवल खुद को बदनाम किया है बल्कि हर उस मुसलमान को शर्मसार किया है जो आज भी ईमानदारी से जी रहा है.