पाक के आत्मघाती बयानों पर दुनिया चुप क्यों ?
By राजेश बादल | Updated: April 30, 2025 06:19 IST2025-04-30T06:19:19+5:302025-04-30T06:19:19+5:30
उन्होंने वाशिंगटन में अमेरिका के शांति प्रतिष्ठान में अपना भाषण दिया था

पाक के आत्मघाती बयानों पर दुनिया चुप क्यों ?
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के एक बयान ने सारे संसार में भारत के इस पड़ोसी का क्रूर और स्याह चेहरा एक बार फिर उजागर कर दिया है. यह ताज्जुब की बात है कि जब समूची मानवता आतंकवाद को कलंक मान उससे तौबा कर रही है, तब एक मुल्क छाती ठोंक कर बेशर्मी से कहता है कि हां! हमने आतंकवाद को पाला-पोसा है. वह भी साल-दो साल नहीं, बल्कि दशकों तक. यूरोप और पश्चिमी देशों का यह कैसा रवैया है कि वे इस कबूलनामे के बाद भी न पाकिस्तान से संपर्क तोड़ रहे हैं और न उसे अलग-थलग कर रहे हैं.
चार-पांच दिन पहले बरतानवी अखबार द स्काई को ख्वाजा आसिफ ने साफ-साफ कहा कि उनका राष्ट्र अमेरिका तथा पश्चिमी देशों के लिए यह गंदा धंधा करता आया है. इन देशों ने अपने स्वार्थों के चलते पाकिस्तान का इस्तेमाल किया है. उग्रवाद को समर्थन देना या आतंकवादियों को प्रशिक्षण देना पाकिस्तान की भयंकर भूल थी. इस भूल का दंड आज पाकिस्तान भुगत रहा है. एक परमाणु संपन्न देश के रक्षा मंत्री का यह खुलासा कोई नया नहीं है.
चौंकाने वाली बात तो यह है कि अमेरिका और अन्य गोरे देशों ने पाकिस्तान का उपयोग आतंकवाद को पालने-पोसने के लिए किया है, उसको मोहरा बनाया है इसलिए यह सारे मुल्क आज चुप बैठे हैं. उनकी दोहरी विदेश नीति की कलई खुल गई है. भारत के लिए निश्चित रूप से ऐसी नीतियां बड़े झटके से कम नहीं हैं.
मगर, यह कोई पहली बार नहीं है, जब इस शैतानी देश ने खुल्लम-खुल्ला स्वीकार किया है कि आतंकवाद को समर्थन देना उसकी सरकारी नीति रही है और रहेगी. जो करना हो सो कर लो. आपको याद होगा कि करीब छह साल पहले 24 जुलाई 2019 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अमेरिका में यही हकीकत बयान की थी. उन्होंने वाशिंगटन में अमेरिका के शांति प्रतिष्ठान में अपना भाषण दिया था. इसमें उन्होंने मंजूर किया था कि पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी समूह जम्मू-कश्मीर में हमले करते रहे हैं.
उन्होंने कहा था कि पाकिस्तानी आतंकवादी समूह जैश-ए-मोहम्मद भारत के खिलाफ काम कर रहा है. ये आतंकवादी प्रशिक्षित हैं. उन्हें कश्मीर में हमले करने का अनुभव है, इसलिए पाकिस्तान पुलिस उन्हें संभाल नहीं सकती. इमरान खान ने कहा था, “भारत के पुलवामा में हमले से पहले ही हमने फैसला लिया था कि हम पाकिस्तान में सभी आतंकवादी समूहों को निरस्त्र और अलग-थलग कर देंगे. यह पाकिस्तान के हित में होगा. मैं दोहराता हूं कि यह हमारे हित में है क्योंकि पाकिस्तान आतंकवादी समूहों से तंग आ चुका है.’’ उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान में 40 आतंकवादी समूह सक्रिय थे.
खान ने कहा, ‘‘हम आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका की लड़ाई लड़ रहे थे. पाकिस्तान का 9/11 से कुछ लेना-देना नहीं था. अल-कायदा अफगानिस्तान में था. पाकिस्तान में कोई तालिबानी आतंकी नहीं था. लेकिन हम अमेरिका की लड़ाई में शामिल हुए. दुर्भाग्यवश जब चीजें गलत हुईं तो हमने अमेरिका को कभी जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं कराया. इसके लिए मैं अपनी सरकार को जिम्मेदार ठहराता हूं.’’
कुछ और पीछे चलते हैं. प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार के खिलाफ तख्तापलट कर फौजी तानाशाही कायम करने वाले जनरल परवेज मुशर्रफ ने भी इमरान खान के बयान से पहले ही खुल्लमखुल्ला कहा था कि उनके कार्यकाल के दौरान भारत में हमले के लिए जैश-ए-मोहम्मद का इस्तेमाल पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों ने किया था. इतना ही नहीं मुशर्रफ ने यह भी स्वीकार किया था कि जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा कश्मीर में हिंसा और सीमा पर तनाव का केंद्रबिंदु हैं.
कौन नहीं जानता कि कारगिल का छद्म युद्ध परवेज मुशर्रफ के दिमाग की उपज था. अब पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के कथन की चर्चा करते हैं. उन्होंने एक साक्षात्कार में स्पष्ट स्वीकार किया था कि कारगिल युद्ध उस परवेज मुशर्रफ की देन थी, जिसे उन्होंने ही सेनाध्यक्ष बनाया था. पाकिस्तान की इंटेलिजेंस हमेशा से ही भारत के विरुद्ध काम करती रही है.
2001 में अमेरिकी विदेश मंत्री कॉलिन पॉवेल ने मुशर्रफ को धमकाया था कि पाकिस्तान या तो हमारे साथ होगा या हमारे खिलाफ. इसके बाद मुशर्रफ ने खुलासा किया था कि एक अन्य अमेरिकी अधिकारी ने धमकी दी थी कि अगर पाकिस्तान दूसरा विकल्प चुनता है तो वे उसे वापस पाषाण युग में ले जाएंगे.
पाकिस्तान के फौजी और सियासी लीडरों की तरफ से इस तरह के बयान और भी पहले आते रहे हैं. जनरल याह्या खान, जनरल जिया उल हक, जुल्फिकार अली भुट्टो से लेकर बेनजीर भुट्टो तक सभी अलग-अलग स्थितियों में इस तरह की स्वीकारोक्ति करते रहे हैं. पर, अपने देश में आतंकवाद की फसल पर पाबंदी लगाने की दिशा में किसी ने पहल नहीं की.
वे कर भी नहीं सकते थे क्योंकि वे सेना के दबाव में काम करते रहे. सिर्फ इमरान खान इसका अपवाद इसलिए हैं कि उन्हें सत्ता में लाई तो फौज ही थी, पर जब उनकी फौज से ठन गई तो फिर उन्होंने मोर्चा खोल लिया. अब तक सेना इमरान को झुका नहीं पाई है. तो पाकिस्तानी स्वीकारोक्तियां अब चौंकाती नहीं हैं. अब विकसित गोरे राष्ट्रों पर आश्चर्य होता है.
अमेरिका पर ताज्जुब होता है कि वह पाकिस्तान को ऐसे बयानों पर फटकारता नहीं है. वह उसे पुचकारता रहता है, जिससे चीन और रूस के खिलाफ सैनिक अड्डा बनाने की उसकी संभावनाएं बनी रहें. हिंदुस्तान के लिए इस रवैये में चेतावनी छिपी है.