क्या विपक्षी दल एकजुट होकर भाजपा सरकार को हटाने में होगी कामयाब?, वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग
By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 14, 2021 02:53 PM2021-08-14T14:53:46+5:302021-08-14T14:53:46+5:30
भाजपा का राज 40 प्रतिशत से भी कम वोटों पर चल रहा है और भाजपा का भी कांग्रेसीकरण हो चुका है.
हमारे विपक्षी दल एकजुट होने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं. अब कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 20 अगस्त को विपक्षी दलों के शीर्ष नेताओं की बैठक बुलाई है.
इसके पहले कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने अपने घर पर विपक्षी नेताओं का प्रीति-भोज रखा था, जिसमें लगभग सभी दलों के नेता थे, सिवाय सोनिया गांधी और राहुल गांधी के. उसके पहले ममता बनर्जी और शरद पवार ने भी विरोधी दलों को एक करने की कवायद की थी.
पूर्व प्रधानमंत्नी देवगौड़ा भी विरोधी नेताओं से बराबर मिल रहे हैं. संसद के दोनों सदनों को ठप करने में विपक्षी नेताओं ने जिस एकजुटता का प्रदर्शन किया है, वह अपूर्व है लेकिन इन सब का नतीजा क्या निकलेगा? इस बात में कोई शक नहीं कि विपक्षी दल जिन मुद्दों को उठा रहे हैं, उनका जवाब देने में सरकार कतरा रही है और उसका बर्ताव लोकतांत्रिक बिल्कुल नहीं है.
यदि उसमें लचीलापन होता तो वह पेगासस-जासूसी और किसान समस्या पर विपक्ष के साथ बैठकर नम्रतापूर्वक सारे मामले को सुलझा सकती थी. लेकिन पक्ष और विपक्ष दोनों ही अड़े हुए हैं. असली सवाल यह है कि क्या विपक्ष एकजुट हो पाएगा और क्या वह भाजपा सरकार को हटा सकता है?
पहली बात तो यह कि देश के कई राज्यों में विपक्षी दल आपस में ही एक-दूसरे से भिड़े हुए हैं. जैसे उप्र में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बसपा में तथा केरल में कम्युनिस्ट पार्टी और कांग्रेस में सीधी टक्कर है. कुछ अन्य राज्यों में विरोधी दल ताकतवर हैं लेकिन वे तटस्थ हैं. दूसरा, विरोधी दलों के हाथ कोई ऐसा मुद्दा नहीं लग रहा है, जो सरकार के खिलाफ जनमत तैयार कर विरोधी दलों को एक कर सके.
तीसरा, इस समय विरोधी दलों के पास कोई जयप्रकाश नारायण जैसे सर्वस्वत्यागी नेता नहीं हैं. उनके पास विश्वनाथ प्रताप सिंह की तरह भाजपा में कोई बागी नेता भी नहीं है. विरोधी दलों के पास अटलबिहारी वाजपेयी की तरह सर्व-स्वीकार्य उदार पुरुष भी कोई नहीं है.
उनके पास चंद्रशेखर या लालकृष्ण आडवाणी की तरह भारत-यात्ना करनेवाला भी कोई नही हैं. यह ठीक है कि भाजपा का राज 40 प्रतिशत से भी कम वोटों पर चल रहा है और भाजपा का भी कांग्रेसीकरण हो चुका है. लेकिन 60 प्रतिशत वोटों वाले विपक्षी दल ऐसे लगते हैं, जैसे कई कमजोर लोग मिलकर किसी पहलवान को पटखनी देने की कोशिश कर रहे हों.