नीतीश कुमार गुरिल्ला वॉर लड़ रहे हैं?
By विकास कुमार | Published: July 19, 2019 12:45 PM2019-07-19T12:45:51+5:302019-07-19T13:32:26+5:30
बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. केंद्र में बीजेपी की अप्रत्याशित वापसी ने बिहार में जेडीयू को असहज कर दिया है. ऐसा कहा जा रहा है कि अभी तक राज्य में बड़े भाई की भूमिका निभाने वाले जेडीयू के सामने बीजेपी बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रख सकती है और ज्यादा सीटें मिलने की स्थिति में मुख्यमंत्री पद पर भी दावा कर सकती है.
बिहार की राजनीति एक बार फिर से 2014 के पहले की स्थितियों की तपिश को महसूस कर रहा है. नीतीश कुमार की पार्टी और उनके नेता बीजेपी के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़ रहे हैं. सामने में सब कुछ अच्छा चल रहा है लेकिन पर्दे के पीछे दोनों पार्टियों में राजनीतिक तलवारें निकल चुकी हैं. एक दूसरे को राजनीतिक हैसियत बताने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है. मोदी मंत्रिमंडल में उचित भागीदारी नहीं मिलने की स्थिति में नीतीश कुमार ने सरकार में शामिल नहीं होने का फैसला किया था.
नीतीश कुमार भारतीय राजनीति के एक मात्र ऐसे नेता हैं जिन्होंने अपने दम पर कभी राज्य में सरकार नहीं बनायी लेकिन मीडिया और देश में उनकी छवि हमेशा एक अव्वल दर्जे के राष्ट्रीय नेता के रूप में रही है. सुशासन बाबू का तमगा और एक पिछड़े राज्य को विकास के मार्ग पर दौड़ाने के कारण बनी उनकी छवि ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया, जिसका इस्तेमाल उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में अपना दबदबा कायम रखने के लिए भरपूर किया.
मोदी-2.0 में बीजेपी की दमदार वापसी ने विपक्ष के साथ उन्हें भी चौंकाया है. बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जातीय समीकरण को साधने के लिए नीतीश कुमार मोदी मंत्रिमंडल में जेडीयू कोटे से तीन मंत्री पद चाह रहे थे लेकिन बम्पर सीटों के साथ सत्ता में लौटी इठलाती मोदी सरकार ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया. एक कैबिनेट मंत्री के प्रस्ताव को नीतीश ने भी अपने ट्रेडिशनल पॉलिटिकल स्टाइल में लेने से मना कर दिया.
वैचारिक कुनबे पर हमला
अब बदले की बारी थी. नीतीश कुमार ने भी राज्य सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार से बीजेपी को महरूम रखा. सब कुछ हाशिये पर होने के बाद भी सब ठीक होने का दावा जारी रहा. लेकिन इसी बीच ख़बरें आई कि बिहार पुलिस के स्पेशल ब्रांच ने एक आदेश जारी किया है जिसमें आरएसएस और उससे जुड़े 19 आनुषंगिक संगठनों के पदाधिकारियों की कुंडली खंगाली जाएगी. अभी तक सारे विवादों को अफवाह बताने वाली बीजेपी भी सकते में आ गई क्योंकि बात अब वैचारिक कुनबे तक पहुंच गई थी.
बिहार पुलिस के स्पेशल ब्रांच को नीतीश कुमार ने 14 वर्षों तक हेड किया है. मीडिया में मामला गरमाने के बाद उन्होंने बिहार पुलिस के टॉप ऑफिसियल से जवाब तलब किया और एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट सौंपने को कहा है. पुलिस ने आरएसएस के नेताओं को जान का खतरा बता कर मामले को ठंडा करने का प्रयास किया है. बीजेपी के नेता इस पर आधिकारिक रूप से बोलने से बच रहे हैं लेकिन कई नेता नीतीश कुमार से नाराज बताये जा रहे हैं. बिहार विधानसभा में संजय मयूख ने इस मुद्दे को उठाया जिन्हें अमित शाह का करीबी माना जाता है.
बड़े भाई की भूमिका के लिए सांकेतिक लड़ाई
बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. केंद्र में बीजेपी की अप्रत्याशित वापसी ने बिहार में जेडीयू को असहज कर दिया है. ऐसा कहा जा रहा है कि अभी तक राज्य में बड़े भाई की भूमिका निभाने वाले जेडीयू के सामने बीजेपी बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रख सकती है और ज्यादा सीटें मिलने की स्थिति में मुख्यमंत्री पद पर भी दावा कर सकती है. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, जेडीयू को इस स्थिति का आभास हो चुका है इसलिए रुक-रुक कर गुरिल्ला वॉर की स्थिति सामने आ रही है.