सांठगांठ का ये आरोप बड़ा गंभीर है

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 23, 2025 06:54 AM2025-01-23T06:54:52+5:302025-01-23T06:55:30+5:30

सरकार को अपने स्तर पर ऐसी कोई प्रणाली विकसित करनी पड़ेगी जिससे कि कीमतों पर लगाम लगाई जा सके.

Nitin Gadkari said This allegation of collusion is very serious | सांठगांठ का ये आरोप बड़ा गंभीर है

सांठगांठ का ये आरोप बड़ा गंभीर है

इस्पात और सीमेंट के भाव को लेकर सवाल पहले भी उठते रहे हैं कि इन पर किसी का नियंत्रण है भी या नहीं? इसका जवाब अमूमन यही रहा है कि ये दोनों सेक्टर निजी क्षेत्रों के हवाले हैं और भाव नियंत्रित करने की कोई प्रभावशाली व्यवस्था अभी तक नहीं बन पाई है. लेकिन केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने यह कह कर सबको चौंका दिया है कि इस्पात और सीमेंट उद्योग के बीच की सांठगांठ देश के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए बड़ी समस्या है. सीमेंट उत्पादन पर निजी कंपनियों का दबदबा है और 90 प्रतिशत उत्पादन वही करते हैं.

सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी महज 10 प्रतिशत है. इसी तरह इस्पात उत्पादन करीब 75 से 80 फीसदी निजी क्षेत्रों के हवाले है. जाहिर सी बात है कि जब उत्पादन पर निजी क्षेत्र का दबदबा होगा तो वह अपने हिसाब से भाव भी तय करेगा. कंपनियां जब भी सीमेंट या इस्पात के भाव तय करती हैं तो कहा यह जाता है कि कच्चे माल की कीमतों में उछाल के कारण ऐसा करना पड़ रहा है लेकिन क्या यह बात हमेशा सही होती है?

अनेक बार यह देखने में आया है कि जब कच्चे माल की कीमतों में कमी हुई तब भी सीमेंट कंपनियों ने सीमेंट के भाव कम नहीं किए बल्कि कई बार तो बढ़ाए भी हैं. यह बिल्कुल सही बात है कि सीमेंट और इस्पात ऐसी दो महत्वपूर्ण चीजें हैं जिनके बगैर न सामान्य व्यक्ति का काम चल सकता है न उद्योग क्षेत्र का और न ही आधारभूत संरचना क्षेत्र का काम चल सकता है.

क्या आपने गौर किया है कि यदि सीमेंट की एक बोरी की कीमत 40 रुपए बढ़ जाए तो केवल हजार वर्गफुट का छोटा सा घर बनाने की कीमत कितनी बढ़ जाएगी? यह माना जाता है कि एक हजार वर्गफुट का मकान बनाने में औसतन 400 बोरी सीमेंट का उपयोग होता है.

40 रुपए प्रति बोरी का मतलब है सोलह हजार रुपए का खर्च बढ़ जाना. इस्पात की कीमतों में वृद्धि भी घर बनाने की लागत बढ़ा देती है. यह तो सामान्य लोगों की बात हुई. चाहे पुल बनाने हों, कारखाने तैयार करने हों या फिर सीमेंट की सड़कें बनानी हों, हर जगह इसका असर होता है. कारखाना खड़ा करने की लागत बढ़ेगी तो उत्पाद की कीमतें भी बढ़ेंगी. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि सीमेंट और इस्पात के भाव पर नियंत्रण होना चाहिए. अब सवाल है कि नियंत्रण करेगा कौन? जब केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ही सांठगांठ का सवाल खड़ा कर रहे हैं तो इसका मतलब है कि सरकार के स्तर पर भी कहीं बेबसी नजर आती है.

सवाल यह भी है कि औद्योगिक आजादी के नाम पर क्या कीमतों में अनाप-शनाप वृद्धि की इजाजत दी जा सकती है? ध्यान देने वाली बात है कि इस्पात और सीमेट सेक्टर की करीब-करीब सभी कंपनियों का मुनाफा लगातार बढ़ता रहा है क्योंकि इन दोनों ही वस्तुओं की डिमांड बढ़ती रही है. सरकार को अपने स्तर पर ऐसी कोई प्रणाली विकसित करनी पड़ेगी जिससे कि कीमतों पर लगाम लगाई जा सके.

और यह बात केवल सीमेंट और इस्पात सेक्टर पर ही लागू नहीं होती है. दवाइयों के बाजार में तो और भी बड़ी लूट मची हुई है. जेनेरिक दवाइयों के कारण थोड़ी राहत मिली है लेकिन मधुमेह के रोगियों को इंसुलिन की कई किस्मों के लिए ज्यादा भुगतान करना पड़ रहा है क्योंकि उनकी कीमतें बढ़ती जा रही हैं. कारण यही है कि वह इंसुलिन केवल एक कंपनी बनाती है. मोनोपॉली खत्म नहीं होगी तो कीमतें कैसे कम होंगी?

Web Title: Nitin Gadkari said This allegation of collusion is very serious

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