एन. के. सिंह का ब्लॉग: गांधी-नेहरू की कांग्रेस का जन-तिरस्कार क्यों?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 21, 2019 06:59 AM2019-08-21T06:59:38+5:302019-08-21T06:59:38+5:30

नेहरू की नीतियां गलत नहीं थीं. राजनीतिशास्त्न का सामान्य विद्यार्थी भी कह सकता है कि न तो धर्मनिरपेक्षता गलत थी, न ही एक ऐसा संविधान देना जिसमें अल्पसंख्यकों की सांस्कृतिक व धार्मिक पहचान बनी रहे.

N. K. Singh's blog: Why Gandhi-Nehru's Congress is a public scorn | एन. के. सिंह का ब्लॉग: गांधी-नेहरू की कांग्रेस का जन-तिरस्कार क्यों?

एन. के. सिंह का ब्लॉग: गांधी-नेहरू की कांग्रेस का जन-तिरस्कार क्यों?

अगर कोई पार्टी 55 साल के अपने लगभग निर्बाध शासन-काल में समाज की सोच को वैज्ञानिक, तार्किक और धर्मनिरपेक्ष न बना पाए बल्कि स्वयं ऐसा वातावरण तैयार करे कि पहले जातिवाद और फिर संप्रदायवाद सिर चढ़ कर बोले तो गलती किसकी है? 

अगर धर्म-निरपेक्षता केवल तुष्टिकरण तक महदूद रहे और उसकी परिभाषा गांधी-नेहरू  के सिद्धांतों और जीवन-दर्शन से न लेकर किसी दिग्विजय सिंह, किसी मणिशंकर अय्यर या फिर किसी अधीर रंजन चौधरी से लेना पड़े तो इस 130 साल पुरानी पार्टी की नियति क्या होगी, यह समझना मुश्किल नहीं है. 

कुछ दशक पहले तक कोई सोच भी नहीं सकता था कि इस 130 साल पुरानी पार्टी में समझ इतनी कुंठित हो जाएगी कि न तो नेताओं को मुद्दों की समझ रहेगी न ही उन पर स्थिति देखते हुए प्रतिक्रिया की जाएगी. 

72 वर्षीय सोनिया गांधी को कांग्रेस की कमान एक बार फिर से देना भले ही एक थका हुआ फैसला हो लेकिन इस समय इससे बेहतर फैसला भी नहीं हो सकता था. बदलते दौर में लगातार हार भी शायद इस पार्टी के तथाकथित नेताओं को झकझोर नहीं सकी है. न जाने कौन सी सत्ता के लिए कांग्रेस कार्यसमिति में नेता के चुनाव को लेकर युवा बनाम बुजुर्ग का झगड़ा शुरू हुआ लिहाजा मतैक्य नहीं हो पाया. 

जो पार्टी जन-स्वीकार्यता में लगातार हाशिये पर आती जा रही हो उसमें चिंतन इस बात पर होना चाहिए था कि क्या बदलते राजनीतिक परिदृश्य में 130 साल पुरानी पार्टी अपनी उपादेयता खो रही है. अगर यह सच है तो उसका कारण क्या नीतियों का अभाव, दिशा-हीनता, नेतृत्व  में जुझारूपन की कमी या समाज में संकीर्ण सोच का पनपना या पनपाया जाना है. 

नेहरू की नीतियां गलत नहीं थीं. राजनीतिशास्त्न का सामान्य विद्यार्थी भी कह सकता है कि न तो धर्मनिरपेक्षता गलत थी, न ही एक ऐसा संविधान देना जिसमें अल्पसंख्यकों की सांस्कृतिक व धार्मिक पहचान बनी रहे. लेकिन स्वयं पार्टी शासनकर्ताओं ने समाज की सोच बदलने की कोशिश तो दूर, उसे और हवा दी. धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तुष्टिकरण किया. इन सब की काट के रूप में बहुसंख्यक संप्रदायवाद का एक आक्रामक स्वरूप उभरा. कांग्रेस का नेतृत्व यह सब कुछ चुपचाप देखता रहा. न नदी की धारा में बहने की कोशिश की, न धारा के खिलाफ जाकर समाज में वैज्ञानिक-तार्किक सोच विकसित करने की कोशिश की. 
 
आज सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका तीनों को मिलकर पार्टी के आदर्शो, विचारधारा और नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा ताकि इस संगठन में नए रक्त का संचार किया जा सके जो समाज की सोच बदलने की ताकत रखे.

Web Title: N. K. Singh's blog: Why Gandhi-Nehru's Congress is a public scorn

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे