एन. के. सिंह का ब्लॉग: पत्रकारिता के कई अनछुए पहलू सिखाए जेटली ने
By एनके सिंह | Published: August 25, 2019 10:10 AM2019-08-25T10:10:23+5:302019-08-25T10:10:23+5:30
पत्रकार के रूप में और खासकर दशकों तक भारतीय जनता पार्टी कवर करने वाले रिपोर्टर के रूप में मेरा यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि मैंने पत्नकारिता के कुछ अनछुए पहलू अरुण जेटली से सीखे. यह भी कहना गलत न होगा कि अंग्रेजी भाषा के मेरे जैसे करीब एक दर्जन पत्नकार भी इस बात की तस्दीक करेंगे.
उनकी अद्भुत तर्क-शक्ति, यूरोपियन व अमेरिकी संसद का गहन अध्ययन और केवल अध्ययन ही नहीं, उस काल में दुनिया के राजपुरुषों के सदन में किस्से और वक्तव्य से वर्तमान की घटनाओं में सदृश्यता पैदा करना हम पत्नकारों के लिए ‘इंट्रो’ लिखने का ‘पावरफुल टूल’ बन जाता था.
यही कारण है कि आज देश के बड़े अखबारों में शीर्ष पर बैठे तमाम पत्नकार शायद अनौपचारिक रूप से उन्हें अपना गुरु ही नहीं मानते बल्कि अपने वर्तमान मुकाम के लिए उनके ऋणी भी होंगे. वह पार्टी में मीडिया के प्रभारी रहे हों या किसी भी मंत्नालय में मंत्नी, शाम चार बजे की ‘डीब्रीफिंग’ पत्नकार वहीं से लेते थे. कई बार अपनी ही पार्टी की वे खबरें जो अगले दिन ‘लीड’ स्टोरी बनती थीं, इसी अनौपचारिक संस्था ‘जेटलीजी की डीब्रीफिंग’ से मिलती थीं.
बस शर्त एक ही रहती थी, ‘कहानी’ में उनका नाम न आए, बल्कि जरूरत हो तो ‘सोर्सेज’ का नाम लिया जाए. जाहिर है हम रेगुलर रिपोर्टर्स इस शर्त को संविधान मान कर कभी भी इसका उल्लंघन नहीं करते थे. लेकिन प्रोफेशनल लाभ हटा भी दिया जाए तो जेटलीजी देश-दुनिया के जटिल से जटिल राजनीतिक-आर्थिक व कानूनी मुद्दों पर जितनी आसानी से मीडिया के लोगों को समझाते थे वह सलाहियत शायद गीता के ‘संशयरहित स्थिरबुद्धि’, ‘ज्ञानी’ की अवस्था हासिल होने के बाद ही मिलती होगी.
एक बार का किस्सा है. मैं उनसे कुछ राजनीतिक हालात पर पूछने के लिए गया तो उन्होंने कहा, ‘‘गाड़ी में बात करते चलते हैं और तुम्हें दिल्ली क्रिकेट एसोसिएशन द्वारा आयोजित और फिरोजशाह कोटला पर चल रहे क्रिकेट के वल्र्ड जूनियर मैच का क्वार्टर-फाइनल भी दिखाते हैं’. मेरी क्रिकेट में कोई दिलचस्पी नहीं थी लेकिन लगा कि जेटलीजी का यह नया अवतार देखा जाए (वह उस समय इस संगठन के अध्यक्ष हुआ करते थे).
हम मैच देखने लगे. फाइव स्टार स्वागत हुआ ‘मेरा’ (क्योंकि जेटलीजी उस समय भी बाहर कुछ नहीं खाते थे). मैच के दौरान एक फोन आया. उन्होंने फोन करने वाले को पूरा सम्मान दिया लेकिन साथ ही कहा, ‘‘यह संभव नहीं है और भी खिलाड़ी हैं जिनका ट्रैक रिकॉर्ड उससे बेहतर है. मैं उन्हें नजरंदाज नहीं कर सकता’’. इसके बाद उन्होंने चेहरे पर नाराजगी का भाव लाकर फोन काट दिया. वैसे मुङो पूछना नहीं चाहिए था लेकिन मैं यह भी जानता था कि अगर पूछूंगा तो वह न तो तथ्य छिपाएंगे, न ही गलत बताएंगे. ‘‘कौन था?’’ मैंने पूछा.
उन्होंने कहा ‘‘अरे, जरा भी नैतिकता नहीं है. एक विपक्षी पार्टी के बड़े नेता हैं (उन्होंने मुङो नाम भी बताया जो मैं यहां पर नहीं लिख रहा हूं) अपने बेटे को भारतीय जूनियर टीम में खिलाने के लिए रोज दबाव डाल रहे हैं.’’
जीएसटी को सहज भाषा में समझना हो या राम मंदिर की कानूनी अड़चन की कानूनी व्याख्या करनी हो या फिर न्यायपालिका और विधायिका को लेकर संविधान निर्माताओं द्वारा बैठाए गए संतुलन के सिद्धांत की अमेरिकी संविधान निर्माताओं खासकर जेम्स मेडिसन की अवधारणा से तुलना करनी हो, मैंने आज तक इतनी गहरी, तार्किक और स्पष्ट सोच भारत के किसी अन्य सार्वजनिक जीवन में रहने वाले व्यक्ति में नहीं पाई है.