एन. के. सिंह का ब्लॉग: कोरोना से भी लड़ें और ‘नया भारत’ भी बनाएं
By एनके सिंह | Published: April 27, 2020 08:55 PM2020-04-27T20:55:06+5:302020-04-27T20:55:06+5:30
मानव-सभ्यता के लगभग 3500 साल पुराने लिखित वैज्ञानिक तार्किक इतिहास में प्रलय का अस्तित्व वर्णित नहीं है लेकिन अगर विश्व की तमाम धार्मिक चिंतन-धाराओं को देखा जाए तो शायद प्रलय ऐसा ही होता होगा. लेकिन इस काली-अंधेरी सुरंग के उस पार देखें तो एक दीया टिमटिमा रहा है. हमें उसे देखकर सकारात्मक भाव रखते हुए आगे का मार्ग खोजना है और उसी दीये की रोशनी से दुनिया और भारत को फिर से जगमगाना है.
कोरोना संकट अभूतपूर्व है, अप्रत्याशित है और अभी तक अज्ञात है. चार माह बाद भी दुनिया के तथाकथित समुन्नत विज्ञान को न तो इसके आयामों का पता चल पा रहा है न ही संघातक क्षमता का. और तो और, इसके स्वरूप, प्रकृति और इसके अलग-अलग जगहों पर बदलते नस्ल पर भी शोधकर्ता एकमत नहीं हैं. जाहिर है ऐसे में कोई सर्व-सुगम या सर्वमान्य इलाज मिल पाना मुश्किल है तो वैक्सीन का आविष्कार तो और दुरूह रहेगा.
मानव-सभ्यता के लगभग 3500 साल पुराने लिखित वैज्ञानिक तार्किक इतिहास में प्रलय का अस्तित्व वर्णित नहीं है लेकिन अगर विश्व की तमाम धार्मिक चिंतन-धाराओं को देखा जाए तो शायद प्रलय ऐसा ही होता होगा. लेकिन इस काली-अंधेरी सुरंग के उस पार देखें तो एक दीया टिमटिमा रहा है. हमें उसे देखकर सकारात्मक भाव रखते हुए आगे का मार्ग खोजना है और उसी दीये की रोशनी से दुनिया और भारत को फिर से जगमगाना है.
हम हाथ पर हाथ धर कर अपने नंबर का इंतजार नहीं करेंगे और न ही दुनिया को फानी होते देखते रहेंगे, नवाज देवबंदी के इस शेर की तरह - ‘उसके कत्ल पे मैं भी चुप था, मेरा नंबर अब आया/ मेरे कत्ल पे आप भी चुप हैं, अगला नंबर आपका है’. इस संकट में भी कई सकारात्मक पहलू हैं अगर हम उस भाव से लड़ने का मानस बनाएं और पुनर्निर्माण में उसी शिद्दत से संलग्न हों.
इस सप्ताहांत में ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस के खिलाफ पहला वैक्सीन प्रायोगिक रूप से मानव पर टेस्ट किया है और उम्मीद कर रहे हैं कि बड़ी सफलता मिल सकेगी. उधर भारत सहित दुनिया के कई देशों ने फिलहाल प्लाज्मा थेरेपी शुरू कर दी है और इसके अच्छे परिणाम आने लगे हैं.
भारत में इस रोग की संघातक क्षमता बेहद कम रही है. अगर टेस्ट-धनात्मकता (पॉजिटिव) अनुपात के भारत और अमेरिका के बीच के आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन करें तो हमारे यहां यह अनुपात अमेरिका से 183 गुना कम है और कुछ अन्य देशों से 1100 गुना कम. करीब 139 करोड़ (अमेरिका से साढ़े चार गुना ज्यादा आबादी और एक-तिहाई भूभाग) वाले भारत में एक महीने से अधिक के पूर्ण लॉकडाउन में आशा की नई किरण है रोगियों की संख्या के दोगुना होने के समय में लगातार बढ़ोत्तरी.
आज 10.3 दिन में रोगी दूने हो रहे हैं जबकि एक माह पहले मात्न तीन दिन में हो रहे थे. यानी रोग के प्रसार में कमी आ रही है. जाहिर है इसका श्रेय देश की सरकार और उसके मुखिया प्रधानमंत्नी को जाता है. जहां एक ओर दुनिया के सबसे समृद्ध, ताकतवर और 241 साल पुराने प्रजातांत्रिक मुल्क अमेरिका में राष्ट्रपति और तमाम गवर्नरों के बीच द्वंद्व चल रहा है और लोग लॉकडाउन के खिलाफ सड़कों पर हैं वहीं भारत में लोगों ने लॉकडाउन को व्यक्तिगत स्वातंत्र्य के खिलाफ नहीं माना बल्कि सरकार के आदेश से पैदा हुए तमाम कष्टों को खुशी से झेल लिया. सोचिए, चीन से तीन गुना, अमेरिका से 13 गुना और ऑस्ट्रेलिया से 113 गुना आबादी-घनत्व वाले इस देश में जहां प्रति एक लाख आबादी पर मात्न 150 पुलिसमैन हों, क्या जबरदस्ती लॉकडाउन संभव होता?
भारत के पास अवसाद से बाहर आने और हौसला बढ़ाने के तीन बड़े और पुष्ट कारण हैं. ‘पहला, कोरोना की संघातक क्षमता भारत में काफी कम है; दूसरा, लॉकडाउन का सकारात्मक असर अब मरीजों की संख्या के ग्राफ में दिखने लगा है और तीसरा, साल भर देश को खिलाने भर का अनाज है और नई बुवाई का रकबा भी बढ़ा है, बारिश यथेष्ट होने का अनुमान है.
आज सबसे उत्साहवर्धक तथ्य है हमारे भंडारों में अगले साल भर तक का खाद्यान्न उपलब्ध होना. हमें प्रति वर्ष करीब 200 मिलियन टन अनाज की जरूरत होती है जबकि हमारी सालाना पैदावार 290 मिलियन टन के करीब है. मौसम विभाग की रिपोर्ट के अनुसार आने वाले समय में बारिश यथेष्ट होगी. लिहाजा किसानों ने अद्भुत हौसला दिखाते हुए आगामी फसलों की बुवाई के लिए रकबा (कृषि क्षेत्न) भी बढ़ा दिया है. सरकार ने भी वर्ष 2020-21 का अनाज के उत्पादन का लक्ष्य दो फीसदी बढ़ाते हुए लगभग 300 मिलियन टन कर दिया है. एशिया और अफ्रीका में कोरोना संकट के कारण अनाज की जबरदस्त जरूरत होगी और भारत उन्हें अनाज का निर्यात कर सकेगा जिससे विश्व में उसकी बढ़ती भूमिका पर मुहर लगेगी.
प्रधानमंत्नी एक तरफ इस बीमारी के बाद बदली दुनिया में भारत के लिए एक अवसर देखना चाहते हैं लेकिन अगर डिलीवरी मशीनरी पूर्ववत भ्रष्ट रहेगी तो कोरोना से गरीब मरे या बच जाए भुखमरी से शायद ही बच पाएगा. उधर सरकारी तंत्न मरने वाले को मानसिक रूप से बीमार दिखा देगा. केंद्र सरकार को नियम में कठोरता बरतते हुए मुख्यमंत्रियों को ताकीद करनी होगी कि आकस्मिक चेकिंग के जरिए किसानों और गरीबों को मिलने वाली मदद की जांच हो.
अगर लॉकडाउन तोड़ने वालों पर कुछ राज्य सरकारें एनएसए जैसा सख्त कानून लगा सकती हैं तो सामान की डिलीवरी में चोरी करने वाले सरकारी कर्मचारी और ठेकेदार को जेल भेज कर उसके फोटो मीडिया में जारी करने में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए. संभ्रांत वर्ग कोरोना में अपने को पृथक कर सकता है पर गांव की झोपड़ी में बूढ़े मां-बाप और चार बच्चों को लेकर रहने वाला खेतिहर मजदूर या मुंबई के धारावी में 10 बाय 10 फुट के कमरे में रहने वाले और सामूहिक शौचालय का इस्तेमाल करने वाले दस-दस मजदूर नहीं. फिर उन्हें घंटों लाइन में राशन के लिए भी खड़ा होना है.
कोरोना से युद्ध का अगला अपरिहार्य चरण है : डिलीवरी से भ्रष्टाचार खत्म करना. निराश न हों. अंधेरी सुरंग के उस पार एक दीया टिमटिमा रहा है.