एन. के. सिंह का ब्लॉग: भारत में कृषि क्षेत्र ने दिखाई अभूतपूर्व क्षमता

By एनके सिंह | Published: May 28, 2020 05:14 AM2020-05-28T05:14:18+5:302020-05-28T05:14:18+5:30

भारत में आने वाले दिनों में अर्थ-व्यवस्था के तीनों सेक्टर्स कैसे उभरेंगे, यह अर्थशास्त्री अभी समझने की स्थिति में नहीं है.

N. K. Singh's blog: Agriculture sector shows unprecedented potential | एन. के. सिंह का ब्लॉग: भारत में कृषि क्षेत्र ने दिखाई अभूतपूर्व क्षमता

सांकेतिक तस्वीर

15वें वित्त-आयोग की ताजा रिपोर्ट ने देश की भावी आर्थिक स्थिति की बहुत ही दयनीय तस्वीर पेश की है. आयोग की राजकोषीय समेकन समिति की इस रिपोर्ट के अनुसार के अनुसार भारत की सकल घरेलू उत्पाद विकास दर -6 प्रतिशत से 1 प्रतिशत के बीच रह सकती है. दरअसल यह रिपोर्ट भी अपने-आप में वही भ्रमद्वंद्व प्रदर्शित करती है जो भविष्य को लेकर पूरी दुनिया के अर्थशास्त्रियों में और सरकारों में है. भारत में आने वाले दिनों में अर्थ-व्यवस्था के तीनों सेक्टर्स कैसे उभरेंगे, यह अर्थशास्त्री अभी समझने की स्थिति में नहीं है.

यही वजह है कि रिपोर्ट में विकास दर की रेंज इतनी व्यापक पाई गई  है. इस रिपोर्ट के मात्र 24 घंटे में ही रिजर्व बैंक के गवर्नर ने एक प्रेस कांफ्रेंस करके विकास दर के नकारात्मक होने की तस्दीक की और कुछ राहत पैकेज भी घोषित किए हालांकि स्टॉक मार्केट इससे बहुत खुश नहीं दिखाई दिया और सेंसेक्स अचानक 200 अंक का गोता लगा गया. लेकिन संतोष यह है कि यही स्थिति दुनिया के सभी देशों की है लिहाजा भारत को अलग से चिंतित होने की जरूरत नहीं है.

जो सबसे उत्साहवर्धक तथ्य इस रिपोर्ट में बताया गया वह यह कि जहां अर्थव्यवस्था के अन्य दो सेक्टर्स -उद्योग और सेवा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए है और नकारात्मक दर पर चले गए हैं वहीं कृषि क्षेत्र ने अभूतपूर्व क्षमता दिखाते हुए 3.7 प्रतिशत की विकास दर हासिल की है.

आशा की जा रही है कि चालू वित्तीय साल में भी कृषि विकास दर काफी अच्छी रहेगी क्योंकि धान की रोपाई में आशातीत वृद्धि हुई है और मानसून के भरपूर रहने की उम्मीद है.

लगभग ऐसी ही निराशा का भाव व्यक्त करते हुए भारत के संदर्भ में अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन और अभिजीत बनर्जी  से लेकर रघुराम राजन और थॉमस पिकेटी तक मानते हैं कि कोरोना से थर्राई अर्थव्यवस्था में गरीब और गरीब होगा. स्वयं भारत सरकार के एनएसएसओ के 75वें चक्र  (2017-18) के परिणाम में कहा गया कि सन 2012-18 के बीच एक ग्रामीण का खर्च 1430 रुपए से घट कर 1304 हो गया जबकि एक शहरी का 2630 रु. से बढ़ कर 3155 रुपए.

अर्थशास्त्र के सामान्य सिद्धांत से यह सही है कि ऐसे संकट कमजोर तबके को ज्यादा प्रभावित करते हैं. लेकिन पिछले दो महीनों की कृषि और सम्बद्ध गतिविधियों का आकलन करने से लगता है कि देश को वर्तमान संकट से केवल कृषि क्षेत्र ही निकाल सकता है. खाद्यान्न का संकट भारत में नहीं होगा क्योंकि पहले से ही जरूरत से आठ करोड़ टन ज्यादा अनाज पैदा हो रहा है.

दूसरी ओर प्रवासी मजदूरों के अपने घरों में पहुंचने से खेती में उनका श्रम भरपूर तौर पर मिल रहा है. यही कारण है कि चालू खरीब सीजन में धान का रकबा काफी बढ़ गया है और बारिश से जलाशयों और भूगर्भ जल का स्तर बढ़ने के कारण फसल के बम्पर होने के आसार हैं.

Web Title: N. K. Singh's blog: Agriculture sector shows unprecedented potential

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