एन. के. सिंह का ब्लॉग: बदहाली से जूझते बिहार में भ्रष्टाचार का नया आयाम
By एनके सिंह | Published: September 4, 2019 09:58 AM2019-09-04T09:58:33+5:302019-09-04T09:58:33+5:30
भ्रष्टाचार और उसके उन्मूलन पर विशेषज्ञता रखने वाले दुनिया के समाजशास्त्रियों के लिए बिहार एक पहेली बन गया है. यहां की ताजा दो घटनाएं देखें. गरीबी, अभाव और अ-विकास से जूझते गोपालगंज जिले में जल-संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता के अपने सरकारी घर पर ठेके पर काम करने के एवज में बकाया एक करोड़ की राशि के पेमेंट के लिए एक ठेकेदार आया था. भुगतान के लिए 25 लाख रु पए और घूस देने की इस अभियंता की शर्त पर ठेकेदार ने ऐतराज किया तो उसने ठेकेदार पर पेट्रोल डाल कर आग लगा दी.
लपटों में भागते ठेकेदार ने कॉलोनी के अन्य घरों से निकले लोगों को सब कुछ बताया. इलाज के लिए 125 किमी दूर गोरखपुर मेडिकल कॉलेज (उत्तर प्रदेश) लाते वक्त रास्ते में उसकी मृत्यु हो गई. पता चला कि राजस्व विभाग द्वारा मारे गए छापे में इस अभियंता के घर से काफी मात्ना में नकदी और जेवर बरामद हुआ. अगले 24 घंटों में इस घूस में संलिप्तता का एक वीडियो भी वायरल हुआ. दूसरी घटना में सुरेश राम नाम का एक व्यक्ति पिछले 31 साल से इस राज्य के दो विभागों के तीन पदों पर अलग-अलग जिलों में पदों पर ही नहीं बना रहा बल्कि प्रोन्नति भी पाता रहा और अगर पकड़ा न गया होता तो चार साल बाद तीनों जगहों से पेंशन भी ले रहा होता.
भला हो केंद्र सरकार की देश भर के हर सरकारी कर्मचारियों को (केंद्र और राज्य सरकारों के ) आधार से जोड़ने की योजना का. सुरेश राम का राज खुला. वह फरार है. एल्विन टोफ्लर सरीखे विद्वानों ने ही नहीं भारत में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग सहित दुनिया की तमाम संस्थाओं, आयोगों और समितियों ने भी भ्रष्टाचार के अभी तक दो स्वरूप बताए थे. भारत में 1970 के पहले सत्ता का भय दिखा कर जबर्दस्ती पैसे ऐंठना अर्थात् कोएर्सिव किस्म का भ्रष्टाचार.
पुलिस धमका कर किसी रात में ड्यूटी से लौटने वाले मजदूर से पैसा ऐंठ लेती थी या हत्या के जुर्म में किसी अपराधी को फंसाने का डर दिखा कर भयादोहन करती थी. लेकिन 20 साल के प्रजातंत्न में जब जन-प्रतिनिधियों का शासन में बोलबाला बढ़ा और विकास कार्यो के लिए बजट में पैसे का अच्छा-खासा प्रावधान होने लगा तो नेताओं और भ्रष्ट अफसरों ने देखा कि इस पैसे को लूटना ज्यादा सहज है क्योंकि इसमें कोई व्यक्ति नहीं बल्कि समाज (जो अमूर्त होता है) शिकार बनता है.
लिहाजा इंजीनियर-विधायक-ठेकदार एक सहमति पर आ गए. पुल, सड़कें, भवन बनाने लगे लेकिन एक बाढ़ में सड़क गायब होने या दो दशक में पुल ढहने की घटनाएं आम हो गईं. विद्वानों ने इसे कोल्युसिव करप्शन (मिलजुल कर भ्रष्टाचार) का नाम दिया. लेकिन अपने सरकारी घर में ही ठेकेदार को पेट्रोल डाल आग लगा कर मार देना हिंदी पट्टी के सात राज्यों में व्याप्त भ्रष्टाचार का एक नया आयाम है. यह उपरोक्त दोनों किस्म के भ्रष्टाचार का मिलाजुला स्वरूप है.