शशिधर खान का ब्लॉगः आरटीआई, पारदर्शिता को लेकर भ्रामक दावे
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: October 19, 2019 07:15 AM2019-10-19T07:15:00+5:302019-10-19T07:15:00+5:30
आरटीआई एक्ट संशोधन बिल के निशाने पर सीधे केंद्रीय सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का पद था. सरकार को सिर्फ सीआईसी के वेतन, भत्ते, अवकाश की उम्र और फिक्स कार्यकाल वाले प्रावधानों में ऐसा संशोधन करना था ताकि सीआईसी स्वतंत्र रूप से काम न कर सके. तात्पर्य ये कि केंद्रीय सूचना आयोग बिल्कुल सरकारी संस्था की तरह काम करे.
शशिधर खान
केंद्रीय सूचना आयोग के 14वें वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘पारदर्शिता’ की ऐसी व्यवस्था निर्मित कर दी कि आरटीआई एक्ट इस्तेमाल की जरूरत कम हो गई है. गृह मंत्री ने दावा किया कि जनता को आरटीआई, सूचना अधिकार आवदेन देकर सूचना मांगने की आवश्यकता ही नहीं पड़ रही है, क्योंकि प्रधानमंत्री ने बिल्कुल पारदर्शिता और खुलेपन की नीति अपनाई है.
यह वक्तव्य सुनने में ऐसा लगता है, मानो केंद्रीय सूचना आयोग का अच्छा भविष्य है और अब इसका बोझ कम हो गया हो. जैसा केंद्रीय गृह मंत्री ने दावा किया उसके मुताबिक जब सारी सूचनाएं जनता को बिन मांगे मिल रही हैं और सरकार ने हर विभाग को ‘खुली किताब’ बना दिया, तब तो आम जनता के साथ-साथ सीआईसी को भी काफी राहत मिली होगी!
लेकिन असलियत जानने के लिए थोड़ा सा पीछे भी देखिए. उसके बाद तय करना कठिन हो जाएगा कि भाजपा गठजोड़ सरकार सीआईसी को कैसी संस्था बनाना चाहती है और आरटीआई अधिकार वास्तव में कितना दमदार रह गया है?
आरटीआई एक्ट संशोधन बिल के निशाने पर सीधे केंद्रीय सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का पद था. सरकार को सिर्फ सीआईसी के वेतन, भत्ते, अवकाश की उम्र और फिक्स कार्यकाल वाले प्रावधानों में ऐसा संशोधन करना था ताकि सीआईसी स्वतंत्र रूप से काम न कर सके. तात्पर्य ये कि केंद्रीय सूचना आयोग बिल्कुल सरकारी संस्था की तरह काम करे.
12 अक्तूबर को आयोजित केंद्रीय सूचना आयोग के वार्षिक सम्मेलन के अवसर पर एक विचार गोष्ठी का भी आयोजन किया गया था जिसका विषय था - ‘गांधी के विचार और सूचना अधिकार’. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठजोड़ के सबसे महत्वपूर्ण घटक जद (यू) के राष्ट्रीय महासचिव पवन कुमार वर्मा ने इसी संशोधन पर सीधा हमला किया. उन्होंने कहा कि आरटीआई एक्ट में संशोधन से इसके पंख कतर दिए गए हैं, अब सूचना आयोग के पास वो अधिकार नहीं रहा, जिसकी बदौलत आम लोग सूचना अधिकार का इस्तेमाल करते आ रहे थे.
सीआईसी वार्षिक समारोह ऐसे समय में आयोजित हुआ, जब इस संस्था के वर्तमान और भविष्य को लेकर देश भर में सूचना अधिकार कार्यकर्ता चिंतित हैं. वे लगातार संशोधन का विरोध कर रहे हैं कि इससे तो आरटीआई का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा. वास्तविकता ये है कि अब सीआईसी किसी सरकारी विभाग को ऐसी कोई सूचना देने का आदेश दे ही नहीं सकते जो सरकार न देना चाहे. जबकि पहले ऐसा नहीं था.