ब्लॉग: खनिज नीलामी की नीति पर पुनर्विचार की जरूरत
By भूपेश कुमार शुक्ला | Published: November 3, 2021 01:01 PM2021-11-03T13:01:26+5:302021-11-03T13:05:15+5:30
केंद्र सरकार खनिज रियायतों की मंजूरी की पिछली (नीलामी पूर्व व्यवस्था) प्रणाली से संतुष्ट नहीं थी. केंद्र सरकार का मानना था कि राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर मंजूरी देने वाले प्राधिकरण खनिज रियायतें देने में पारदर्शी नहीं हैं.
2015 से पहले, राज्य सरकार की यह परंपरा थी कि वह आम जनता से खनिज रियायतें प्रदान करने के लिए आवेदन आमंत्रित करती थी. ऐसे आवेदनों की जांच और प्रत्येक आवेदक को सुनवाई का अवसर देने के बाद, राज्य सरकारें सभी आवेदकों के मेरिट और डी-मेरिट वाले तुलनात्मक चार्ट के साथ, चयनित आवेदक के चयन के कारणों का हवाला देते हुए, केंद्र सरकार को उनमें से सबसे योग्य आवेदक के नाम की सिफारिश करती हैं, जिन्होंने खनिज रियायत की मंजूरी के लिए आवेदन किया है.
राज्य सरकार को केंद्र सरकार के अनुमोदन के बाद ही आवेदक के पक्ष में खनन पट्टा प्रदान करने का आदेश जारी करने के लिए अधिकृत किया गया था.
कोई भी आवेदक, यदि फिर भी राज्य सरकार के चयन से संतुष्ट नहीं है, तो अंतत: निवारण के लिए न्यायालय जाने से पहले, आक्षेपित आदेश को रद्द करने के लिए केंद्र सरकार के समक्ष पुनरीक्षण की मांग करने का अधिकार रखता था.
लेकिन केंद्र सरकार खनिज रियायतों की मंजूरी की पिछली (नीलामी पूर्व व्यवस्था) प्रणाली से संतुष्ट नहीं थी. केंद्र सरकार का मानना था कि राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर मंजूरी देने वाले प्राधिकरण खनिज रियायतें देने में पारदर्शी नहीं हैं.
मंजूरी देने वाले अधिकारी भी अपनी विवेकाधीन शक्ति का दुरुपयोग कर रहे थे और खनिज ब्लॉकों के आवंटन में विलंब करने की युक्ति अपना रहे थे.
इन समस्याओं को दूर करने के लिए और खनन पट्टा धारक द्वारा बेचे गए खनिज की बिक्री में राज्य सरकार की हिस्सेदारी को और बढ़ाने के लिए, केंद्र सरकार ने भविष्य में सभी खनिज ब्लॉक नीलामी के माध्यम से आवंटित करने का निर्णय लिया.
लेकिन 7 वर्षो की अवधि के बाद भी, केंद्र सरकार किसी भी उद्देश्य (जिसके लिए खनिज ब्लॉकों की नीलामी की प्रणाली लागू की गई थी) को प्राप्त करने में पूरी तरह से विफल रही, जो निम्नलिखित बातों से स्पष्ट है:
(1) पारदर्शिता बढ़ाने के लिए और खनिज रियायतें देने में ‘प्राधिकारियों की विवेकाधीन शक्ति को खत्म करने’के लिए : एमएमडीआर अधिनियम के प्रावधानों के तहत अधिकतम खनन पट्टा क्षेत्र 10 वर्ग किलोमीटर दिया जा सकता है. लेकिन अधिकारियों ने अपनी विवेकाधीन शक्ति का दुरुपयोग (?) करते हुए भारत की कुछ प्रभावशाली ‘इस्पात निर्माण कंपनियों’ को 59 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में खनन के पट्टे प्रदान किए.
(2) प्रशासन की ओर से देरी को समाप्त करने के लिए ताकि देश के खनिज संसाधनों का सवरेत्कृष्ट उपयोग हो सके : 12 जनवरी 2015 को, मंजूरी देने से संबंधित लंबित आवेदनों को संसाधित करने में प्रशासन की असामान्य देरी / विफलता के कारण केंद्र सरकार द्वारा खनिज रियायतों की मंजूरी के लिए लंबित 66,477 आवेदनों को अपात्र घोषित किया गया था.
(3) सरकार के लिए खनिज संसाधनों के बिक्री मूल्य में ज्यादा हिस्सेदारी प्राप्त करने के लिए : खनन पट्टों के धारक पहले से ही राज्य सरकार के साथ खनिज के बिक्री मूल्य की पर्याप्त मात्र को ‘अधिनियम की धारा-9 के तहत खनिज रॉयल्टी’ के रूप में साझा कर रहे हैं. केंद्र सरकार ने जिला खनिज फाउंडेशन टैक्स और नेशनल मिनरल एक्सप्लोरेशन ट्रस्ट टैक्स के माध्यम से खनिज की बिक्री के 33.83 प्रतिशत तक राज्य सरकार की हिस्सेदारी को बढ़ा दिया है. (इसमें खनिज रॉयल्टी की राशि पर
18} जीएसटी शामिल नहीं है). जैसे कि यह पर्याप्त नहीं था, केंद्र सरकार ने नीलामी की बोली के माध्यम से बेचे गए खनिज में राज्य सरकार की हिस्सेदारी को और बढ़ाने का फैसला किया.
(4) अनुदान की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए ताकि खनिज उत्पादन जल्द से जल्द शुरू किया जा सके.
2006-2019 के दौरान 2754 खनन पट्टों का निष्पादन किया गया और 2010-14 के दौरान 494 खनन पट्टे निष्पादित किए गए, जिनमें से अधिकांश ग्रीनफील्ड थे, लेकिन नीलामी व्यवस्था के बाद केवल 28 ब्राउनफील्ड खनन पट्टों को निष्पादित किया गया है, जहां खनन कार्य शुरू करने के लिए आवश्यक सभी मंजूरी कानून के प्रासंगिक प्रावधानों के संशोधन द्वारा स्वचालित रूप से बोलीदाताओं के पक्ष में स्थानांतरित कर दी गई थी.
नीलामी के लिए उपलब्ध शेष 126 खनिज ब्लॉकों में से एक भी खनन पट्टा निष्पादित/संचालित नहीं किया गया है. सस्ते आयातित खनिज की उपलब्धता के कारण घरेलू खनिज उत्पादन घट रहा है और खनिज का आयात दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है. (स्नोत : खान मंत्रलय /भारतीय खनिज उद्योग संघ)
नीलामी के माध्यम से खनिज ब्लॉकों का आवंटन करके केंद्र सरकार न केवल घरेलू खनिज उत्पादन को बढ़ाने में विफल रही है, बल्कि विवेकाधीन शक्तियों के बिना दुरुपयोग के और सरकार की ओर से देरी के बिना, खनिज ब्लॉकों को पारदर्शी रूप से आवंटित करने में भी विफल रही है. ऐसी परिस्थितियों में केंद्र सरकार को खनिज और राष्ट्र के विकास के हित में ‘नीलामी नीति’पर पुनर्विचार करना चाहिए.