ब्लॉग: मीथेन उत्सर्जन रोकने के करने होंगे उपाय

By भरत झुनझुनवाला | Published: November 22, 2021 10:20 AM2021-11-22T10:20:21+5:302021-11-22T10:25:46+5:30

मीथेन के परमाणुओं में हलचल अधिक होती है इसलिए कार्बन डाईऑक्साइड की तुलना में मीथेन गैस से धरती का तापमान 28 से 80 गुना अधिक बढ़ता है. इसलिए हाल में संपन्न हुए कॉप-26 सम्मेलन में लगभग 100 देशों के बीच सहमति बनी है कि वे मीथेन के उत्सर्जन को कम करेंगे.

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ब्लॉग: मीथेन उत्सर्जन रोकने के करने होंगे उपाय

Highlightsसड़ते समय आसपास ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं, तो कार्बन-हाइड्रोजन मिलकर मीथेन गैस बनकर उत्सर्जित करते हैं.कार्बन डाईऑक्साइड की तुलना में मीथेन गैस से धरती का तापमान अधिक बढ़ता है.कार्बन डाईऑक्साइड की तुलना में मीथेन गैस से धरती का तापमान 28 से 80 गुना अधिक बढ़ता है.

सभी जीवित पदार्थों के जीवन में कार्बन तथा हाइड्रोजन तत्व रहते हैं और उनकी मृत्यु के बाद ये आर्गनिक पदार्थ सड़ने लगते हैं. यदि आसपास ऑक्सीजन उपलब्ध हुई तो शरीर का कार्बन, कार्बन डाईऑक्साइड बनकर उत्सर्जित होता है और पदार्थ में हाइड्रोजन, पानी बनकर समाप्त हो जाता है. 

लेकिन यदि सड़ते समय आसपास ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं हुई तो यही कार्बन और हाइड्रोजन आपस में मिलकर मीथेन गैस बनकर उत्सर्जित होती है. कार्बन डाईऑक्साइड की तुलना में मीथेन गैस से धरती का तापमान अधिक बढ़ता है. 

धरती से जो गर्मी की किरणें बाहर निकलती हैं यदि वे सीधे अंतरिक्ष में पहुंच सकें तो वे धरती के वायुमंडल से निकल जाती हैं और धरती का तापमान नहीं बढ़ता है. इसके विपरीत यदि वायुमंडल में ये किरणें रुक जाएं तो वायुमंडल गर्म हो जाता है और तदनुसार धरती का तापमान भी बढ़ता है.

जब ये किरणें वायुमंडल में जाती हैं तो वायु में उपलब्ध अणुओं के बीच हलचल पैदा करती हैं. जैसे कार्बन डाईऑक्साइड से कार्बन और ऑक्सीजन परमाणुओं के बीच में हलचल पैदा होती है. 

इससे उस अणु का तापमान बढ़ जाता है और वह गर्मी हमारे वायुमंडल में रुक जाती है और धरती का तापमान बढ़ाने लगती है. मीथेन के परमाणुओं में हलचल अधिक होती है इसलिए कार्बन डाईऑक्साइड की तुलना में मीथेन गैस से धरती का तापमान 28 से 80 गुना अधिक बढ़ता है. इसलिए हाल में संपन्न हुए कॉप-26 सम्मेलन में लगभग 100 देशों के बीच सहमति बनी है कि वे मीथेन के उत्सर्जन को कम करेंगे.

धान के खेतों से मीथेन भारी मात्रा में उत्सर्जित होती है. जब खेतों में लबालब पानी लंबे समय तक भरा रहता है तो भूमि की सतह पर पत्तियां और भूमि के अंदर के कीड़े सड़ने लगते हैं और सड़कर पहले पानी में उपलब्ध ऑक्सीजन को सोख लेते हैं. 

उसके बाद उनकी सड़न से मीथेन बनने लगती है. पशुओं की पाचन क्रिया में भी उनके पेट से मीथेन गैस उत्सर्जित होती है. मांसाहारी भोजन के उत्पादन में मीथेन गैस ज्यादा उत्पन्न होती है क्योंकि उसमें पशुओं को मारकर ही मांस पैदा किया जाता है. पशुओं के मलमूत्र और गोबर के सड़ने से भी मीथेन गैस बनती है. 

बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं के तालाबों में जो पीछे से पत्तियां और मृत पशुओं के शरीर बह कर आते हैं वे भी तालाब की तलहटी में स्थिर होकर सड़ने लगते हैं. तलहटी में उपस्थित ऑक्सीजन शीघ्र समाप्त हो जाती है और ये मीथेन उत्सर्जन करने लगते हैं. नेशनल एनवायरनमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट नागपुर ने पाया है कि टिहरी बांध से मीथेन उत्सर्जित हो रही है.

मीथेन के इस उत्सर्जन को रोकते हुए आर्थिक विकास को बढ़ाना संभव है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने कहा है कि मीथेन गैस के उत्सर्जन को कम करते हुए आर्थिक विकास को बढ़ाना संभव है. जैसे धान के खेत में यदि पानी लगातार न भरा जाए और कुछ दिन पानी भरने के बाद उसे 2-4 दिन के लिए निकाल दिया जाए और पुन: पानी भरा जाए तो नये पानी में ऑक्सीजन उपलब्ध हो जाती है और मीथेन का उत्सर्जन समाप्त हो जाता है. 

यदि हम शाकाहारी भोजन अपनाएं तो मीथेन उत्सर्जन सहज ही कम हो जाएगा क्योंकि पशुओं के मांस के उत्पादन के समय पशुओं द्वारा पाचन से अथवा उनके गोबर के सड़ने से जो मीथेन उत्सर्जित होती है वह समाप्त हो जाएगी. 

यदि हम गोबर से गैस बनाएं तो उत्सर्जित मीथेन से चूल्हा और बत्ती जला सकते हैं. तब वह मीथेन कार्बन डाईऑक्साइड के रूप में उत्सर्जित होगी और हमारे पर्यावरण को कम हानि पहुंचाएगी. जलविद्युत के स्थान पर यदि हम सोलर ऊर्जा को बढ़ावा दें जैसा कि सरकार कर भी रही है तो जल विद्युत परियोजनाओं के तालाबों से उत्सर्जित होने वाली मीथेन पर रोक लगाई जा सकती है.

इन आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद सुझावों को लागू करने के लिए सरकार को अपनी टैक्स पॉलिसी में सुधार करना होगा. धान के खेतों से उत्सर्जन कम करने के लिए पानी का मूल्य सिंचित क्षेत्र के स्थान पर आयतन के हिसाब से वसूल करना होगा. 

पशुओं की प्रजातियों पर रिसर्च के लिए सरकार को निवेश करना होगा. शाकाहारी भोजन को प्रोत्साहन देने के लिए मांस के उत्पादन में उपयोग किए गए कच्चे माल पर भारी टैक्स लगाएं तो मांस महंगा होगा और लोग शाकाहारी भोजन की ओर बढ़ेंगे. 
एलपीजी का दाम बढ़ाएं तो किसान के लिए गोबर गैस को बनाना लाभप्रद हो जाएगा. पूर्व में एलपीजी के उपलब्ध न होने से किसान गोबर गैस बनाते थे. लेकिन सस्ती एलपीजी उपलब्ध होने से अब गोबर गैस का उत्पादन शून्यप्राय हो गया है. जलविद्युत पर भी इसी प्रकार मीथेन टैक्स लगाना चाहिए.

Web Title: methane emissions cop26 climate change global warming

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