स्मृति दिन विशेष: विकासपुरुष जवाहरलालजी दर्डा उर्फ बाबूजी- स्वाधीनता संग्राम से पत्रकारिता के शानदार सफर तक

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 25, 2022 09:31 AM2022-11-25T09:31:11+5:302022-11-25T09:31:11+5:30

आज ‘लोकमत’ का हर संस्करण प्रसार के मामले में नंबर एक है और ‘लोकमत’ महाराष्ट्र का प्रमुख समाचार पत्र बन गया है. ये बाबूजी के अथक प्रयासों का परिणाम है. इसीलिए उन्हें विकासपुरुष कहा जाना चाहिए.

Memorial Day Special: Jawaharlalji Darda aka Babuji - From Freedom Struggle to Glorious Journey of Journalism | स्मृति दिन विशेष: विकासपुरुष जवाहरलालजी दर्डा उर्फ बाबूजी- स्वाधीनता संग्राम से पत्रकारिता के शानदार सफर तक

विकासपुरुष जवाहरलालजी दर्डा उर्फ बाबूजी

कमलाकर धारप

स्वतंत्रता सेनानी जवाहरलालजी दर्डा उर्फ बाबूजी को विकास पुरुष की उपाधि देना उचित ही होगा. उन्हें गुजरे पच्चीस साल हो गए हैं. भागदौड़ भरी जिंदगी में समय को मानो पंख लग जाते हैं. लोग आते हैं, लोग चले जाते हैं लेकिन कुछ लोग काल के कपाल पर अपनी छाप छोड़ जाते हैं. जवाहरलालजी उनमें से एक थे. कभी-कभी लगता है वे अपने माथे पर अपनी नियति लिखवाकर इस दुनिया में आए थे, अन्यथा खेलने-कूदने की उम्र में ही स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने की ऊर्जा उनमें न होती. 

स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़ना और कारावास भोगना, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पत्रकारिता की पृष्ठभूमि न होने के बावजूद पत्रकार बनना, विदर्भ जैसे अपेक्षाकृत पिछड़े क्षेत्र से समाचार पत्र का प्रकाशन और उसे मुंबई, पुणे और दिल्ली जैसे प्रगतिशील शहरों में प्रसारित करने का साहस दिखाना, ये काम एक सामान्य व्यक्ति के लिए कर पाना नामुमकिन है. 

बाबूजी की जीवन यात्रा पर गौर करें तो महसूस होता है कि नियति ने उन्हें इन जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए इस दुनिया में भेजा और नियति ने निर्धारित कामों को पूरा होते ही अपने पास बुला लिया.

यह बाबूजी का जन्म शताब्दी वर्ष है और लोकमत के नागपुर संस्करण का स्वर्ण जयंती वर्ष भी. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता के दौर में बाबूजी ने साप्ताहिक ‘नवे जग’ प्रकाशित कर लोगों की उम्मीदों-आकांक्षाओं को आवाज दी. उन्होंने स्वयं गांव-गांव जाकर इसका प्रचार-प्रसार किया. उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी बापूजी अणे के बंद हो चुके साप्ताहिक ‘लोकमत’ को पुनर्जीवित करके महाराष्ट्र के दूसरे छोर पर नागपुर जैसे शहर से इसे दैनिक का स्वरूप देकर प्रकाशित करने का साहस दिखाया. ‘लोकमत’ प्रकाशित करने के पीछे उनकी मंशा थी कि उनका दैनिक ग्रामीण जनता की भावनाओं को प्रकट करने का माध्यम बने.

जिस दौर में सरकार ने ‘जहां गांव, वहां एसटी बस’ चलाते हुए गांव-गांव में सरकारी बस सेवा का जाल बिछाने का कार्य शुरू किया, ऐसे में बाबूजी को लगा कि ‘लोकमत’ के प्रचार-प्रसार के लिए इस तंत्र का इस्तेमाल किया जा सकता है और उन्होंने ‘जहां एसटी, वहां लोकमत’ की अवधारणा को पहली बार लागू किया. इससे महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों में ‘लोकमत’ का जाल फैलते देर नहीं लगी. 

आज ‘लोकमत’ महाराष्ट्र के हर जिले में, जिले के हर गांव में पहुंच गया है, यह बाबूजी की दूरदृष्टि है. उन्होंने न केवल ग्रामीण क्षेत्रों के शिक्षकों को, बल्कि समाचार पत्र विक्रेताओं को भी गांव में होने वाली घटनाओं की जानकारी ‘लोकमत’ को भेजने के लिए प्रोत्साहित किया. ग्रामीण संवाददाता इन समाचार के लिफाफों को गांव में बस कंडक्टर को सौंप देते थे.  वाहक गंतव्य स्टेशन पर रखे ‘लोकमत’ बॉक्स में उस लिफाफे को छोड़ देता था. वहां से उस लिफाफे को लोकमत कार्यालय तक लाने की व्यवस्था लोकमत प्रशासन की होती थी. उन समाचारों को लोकमत कार्यालय के संपादकों द्वारा संपादित किया जाता था और लोकमत में उस गांव की खबरों को अच्छे ढंग में प्रकाशित किया जाता था. 

इन प्रयत्नों के कारण ‘लोकमत’ ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से फैल सका. आगे बाबूजी ने प्रत्येक जिले में लोकमत कार्यालय की स्थापना करके जिले के समाचारों को वहां तक पहुंचाने के लिए एक व्यवस्था बनाई. इस व्यवस्था के कारण हर जिले का एक अलग पृष्ठ प्रकाशित करने का कार्य तेज हुआ. लोकमत ने ‘हैलो नागपुर’ की तर्ज पर सबसे पहले प्रत्येक जिले के लिए ‘हैलो’ पेज प्रकाशित किया, ताकि उस जिले के निवासियों की खबरों की भूख को शांत किया जा सके. इसीलिए आम आदमी की खबरों को पहली बार समाचार पत्र में जगह मिलने लगी.

लोगों को विश्वास हो गया कि लोकमत में अपनी समस्याओं को उठाकर वे उनका समाधान पा सकते हैं. बाबूजी का लक्ष्य भी यही था. अधिकांश समाचार पत्र प्रमुख शहरों से प्रकाशित होते हैं और समय के साथ उनके संस्करण विभिन्न शहरों में प्रकाशित होते हैं, लेकिन ‘लोकमत’ ने इस परंपरा को तोड़ा और नागपुर से जलगांव, औरंगाबाद, नासिक से मुंबई और फिर दिल्ली तक कूच किया, इसके पीछे बाबूजी की विकासपरक सोच थी. 

उन्होंने पच्चीस साल बाद अखबारों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में सोचा था और पहले से ही उनका सामना करने की तैयारी कर ली थी. इसीलिए ‘लोकमत’ मराठी, अखबार जगत में उन्नत तकनीक लाने वाला पहला था और फिर अन्य अखबारों ने इसका अनुसरण किया. यदि ‘लोकमत’ वक्त से आगे रहने में सफल रहा, तो इसके पीछे बाबूजी की दूरदृष्टि ही है.

आज ‘लोकमत’ का हर संस्करण प्रसार के मामले में नंबर एक है और ‘लोकमत’ महाराष्ट्र का प्रमुख समाचार पत्र बन गया है. ये बाबूजी के अथक प्रयासों का परिणाम है. इसीलिए उन्हें विकासपुरुष कहा जाना चाहिए. ऐसे व्यक्ति स्वार्थ को दरकिनार कर आम आदमी की समस्याओं और विकास को प्राथमिकता देते हैं. उनके बताए रास्ते पर चलते हुए ‘लोकमत’ का सफर जारी है. इस यात्रा के माध्यम से ही उनकी स्मृतियां अमर रहेंगी. बाबूजी की सीख थी-अपने कार्यों से सदैव जीवित रहें. हम सभी को बाबूजी की पुण्यतिथि पर उनका स्मरण करते हुए उनकी सीख का पालन करने का संकल्प लेना चाहिए.

Web Title: Memorial Day Special: Jawaharlalji Darda aka Babuji - From Freedom Struggle to Glorious Journey of Journalism

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