भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: हर साल आने वाली विनाशकारी बाढ़ को हम ही कर रहे हैं आमंत्रित
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 11, 2020 02:52 PM2020-08-11T14:52:04+5:302020-08-11T14:52:04+5:30
बाढ़ की विनाशलीला अब लगभग हर साल की तय तस्वीर बन गई है. चिंताजनक बात ये भी है कि ये स्वरूप और आक्रामक होता जा रहा है. आखिर क्यों ऐसा हो रहा है, और हम इंसान भी क्यों इसके लिए जिम्मेदार हैं? पढ़िए
बिहार समेत संपूर्ण पूर्वी भारत में बाढ़ से हालात बिगड़ते जा रहे हैं. हर वर्ष बाढ़ का स्वरूप अधिक आक्रामक होता जा रहा है. इसका मूल कारण यह है कि हम नदियों को केवल पानी लाने वाली एक व्यवस्था के रूप में देखते हैं और नदियों के द्वारा लाई जाने वाली गाद को नजरंदाज करते हैं.
हमें याद रखना चाहिए कि हरिद्वार से कोलकाता तक देश का जो समतल भूखंड है, वह हिमालय से लाई गई गाद से ही निर्मित हुआ है. गंगा हिमालय से गाद लाती है और उसे बाढ़ के रूप में जमीन पर फैलाती है जिससे हमारा भूखंड ऊंचा होता जाता है. साथ साथ वह अपने मुख्य चैनल में हर साल कुछ न कुछ गाद को जमा करती जाती है.
भविष्य में पांच-दस साल बाद जब भारी बाढ़ आती है तो वह अपने चैनल में जमा गाद को अपने वेग से ढकेल कर समुद्र तक ले जाती है. ढकेली गई गाद का भी देश के भूखंड को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान होता है. जैसे पूर्व में किसी समय हमारा भूखंड कानपुर तक रहा होगा. समय क्रम में गंगा की बड़ी बाढ़ ने उस गाद को ढकेला और उस गाद से प्रयागराज तक का भूखंड बना, फिर पटना बना और फिर सुंदरबन तक बना.
गंगा की इस पावन व्यवस्था में हमने दो प्रकार से छेड़छाड़ की है. पहली यह कि हमने टिहरी बांध बना कर भारी मात्ना में गाद को बांध के तालाब में रोक लिया है. दूसरा परिवर्तन यह किया है कि भीमगोड़ा और नरोरा बराज में बरसात के समय गंगा के पानी को सिंचाई के लिए निकालकर गाद का आगे जाना कम कर दिया है.
इससे दो परस्पर विरोधी प्रभाव हुए. पहला यह कि गाद आगे कम जाने से गंगा का पानी जब फैलता है तो उसमें गाद की मात्ना कम होती है और गंगा के पेटे में गाद का एकत्नीकरण कम होता है. दूसरा प्रभाव यह हुआ है कि हमने टिहरी में भागीरथी के पानी को रोक लिया और मानसून के समय भीमगोड़ा और नरोरा में गंगा के कुछ पानी को निगल लिया.
इसलिए वेग से आने वाली बड़ी बाढ़ का आना बंद हो गया है. इन्ही कारणों से कम मात्ना में आई हुई गाद अब नदी के पेटे में जमा होती जा रही है और बड़ी बाढ़ के अभाव में वह अब समुद्र तक नहीं ढकेली जा रही है. फलस्वरूप बरसात के समय कम गति से आने वाला पानी पेटे में जमा गाद को ढकेल कर समुद्र तक नहीं पहुंचा पा रहा है. गाद नदी के पेटे में ही पड़ी रह जाती है भले ही वह कम मात्ना में ही क्यों न हो.
इसका परिणाम यह हो रहा है कि नदी का चैनल उथला होता जा रहा है. जितना बाढ़ का प्रकोप पहले बड़ी बाढ़ में होता था उतना ही प्रकोप अब छोटी बाढ़ में होने लगा है और प्रति वर्ष जनजीवन अस्त-व्यस्त होने लगा है. जैसे यदि खेत की नाली में मिट्टी भर दी जाए तो नाली के उथला हो जाने के कारण थोड़ा पानी भी अगल-बगल ज्यादा बिखरता है.
गाद के समुद्र तक न ढकेले जाने के कारण हमारी धरती का भूखंड बढ़ने के स्थान पर अब घटने लगा है. समुद्र की गाद के लिए एक स्वाभाविक भूख होती है. जैसे आपको और हमको रोटी खाने की इच्छा होती है वैसे ही समुद्र को गाद खाने की इच्छा होती है. जब उसे नदी से गाद मिलना बंद हो जाती है तो वह हमारे तटीय क्षेत्नों को खाने लगता है.
पूर्व में गंगा भारी मात्ना में गाद लाती थी उससे वह भूखंड का निर्माण करती थी और समुद्र की भूख को भी पूरा कर देती थी और हमारा भूखंड भी बढ़ रहा था. अब गाद कम आने से समुद्र की भूख पूरी नहीं हो रही है, समुद्र की भूख का शमन नहीं हो रहा है और आज समुद्र सुंदरबन को काटने लगा है. इस प्रकार हम कह सकते हैं कि टिहरी, भीमगोड़ा और नरोरा द्वारा गाद को रोकने और बाढ़ को रोकने के कारण हमारे देश का भूखंड कट रहा है.
ऐसा कहा जा सकता है कि अप्रत्यक्ष रूप से टिहरी, भीमगोड़ा और नरोरा द्वारा देश की भूमि का भक्षण किया जा रहा है.
इस समस्या के पीछे फरक्का बराज की भी बड़ी भूमिका है. वैज्ञानिक बताते हैं कि नदी पर एक पुल बनाने मात्न से ही नदी के प्रवाह के वेग में कमी आ जाती है. अत: यदि फरक्का बराज के सब गेट खोल दिए जाएं तो भी गंगा का वेग कम ही होगा. वेग कम होने से गंगा द्वारा जो कम मात्ना में गाद लाई जा रही है, वह रास्ते में ही ठहर जाती है.
पहले हमने बड़ी बाढ़ को बंद करके जो गाद जमा थी, उसे धकेल कर हटाना बंद किया; फिर फरक्का बना कर गाद का जमा करना बाधित कर दिया. कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि फरक्का के कारण पटना से लेकर फरक्का के बीच में गाद जमा हो रही है जिसके कारण इस पूरे क्षेत्न में गंगा उथली हो गई है और कम पानी में भी इसलिए बाढ़ का प्रकोप अधिक हो रहा है.
गंगा का वेग कम हो जाने से गंगा की गंडक और कोसी जैसी नदियों के द्वारा लाए गए बाढ़ के पानी को वहन करने की क्षमता भी कम हो जा रही है जिसके कारण बाढ़ पीछे भी बढ़ रही है.