maharashtra result 2025 declared: परीक्षा परिणामों पर नहीं होती राजनीति, बड़ा बदलाव देखने नहीं मिला
By Amitabh Shrivastava | Updated: May 17, 2025 05:55 IST2025-05-17T05:54:14+5:302025-05-17T05:55:22+5:30
maharashtra result 2025 declared: आश्चर्यजनक है कि चुनाव से लेकर दुनिया में अनेक विषयों में परिणाम उलट जाते हैं. वे समय के साथ बदल जाते हैं.

सांकेतिक फोटो
maharashtra result 2025 declared: पिछले कुछ सालों की तुलना में इस बार महाराष्ट्र बोर्ड की दसवीं और बारहवीं की परीक्षाओं के परिणाम अपेक्षित समय से पहले ही घोषित कर दिए गए. बीते सालों में दसवीं-बारहवीं बोर्ड में से किसी एक के परिणाम की देरी होने की संभावना रहती थी. इस बार देरी का सवाल सामने नहीं आया और फटाफट दोनों परीक्षाओं के नतीजे विद्यार्थियों को मिल गए. यूं तो समय की दृष्टि से परिवर्तन आया, लेकिन नजर में समग्र परिणामों में बड़ा बदलाव देखने नहीं मिला. शिक्षा के मोर्चे पर अनेक प्रयोग और प्रयास होने के बावजूद महाराष्ट्र की दो महत्वपूर्ण परीक्षाओं के नतीजों में राज्य के शिक्षा संभागों की स्थिति यथावत रही. आश्चर्यजनक है कि चुनाव से लेकर दुनिया में अनेक विषयों में परिणाम उलट जाते हैं. वे समय के साथ बदल जाते हैं.
मगर महाराष्ट्र में बोर्ड की परीक्षाओं के दृष्टिकोण से शिक्षा के क्षेत्र में कोई गंभीर बदलाव दिखाई नहीं देता है. राजनेता उद्योग और निवेश पर चर्चा करते हैं. समाज और संस्कृति के जतन की ठेकेदारी करते हैं, लेकिन इन सभी प्राथमिकता और आवश्यक शिक्षा के स्तर में सुधार को लेकर कोई हलचल नहीं होती है.
महाराष्ट्र बोर्ड से अब केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड(सीबीएसई) को अपनाए जाने की घोषणा के बाद स्तर में सुधार पर किसी राजनीतिक दल की पहल दिखाई नहीं दे रही है. पाठ्यक्रम में बदलाव के साथ नई शिक्षा नीति को अपनाने की तैयारी पूरी हो गई है, लेकिन असफलता और गुणवत्ता में कमी के कारणों की खोज अभी बाकी है.
महाराष्ट्र की बोर्ड की परीक्षाओं के परिणाम जब सामने आते हैं तो मराठवाड़ा और विदर्भ जैसे क्षेत्र नीचे नजर आते हैं. मराठवाड़ा में दो शिक्षा संभाग छत्रपति संभाजीनगर, लातूर और विदर्भ में नागपुर तथा अमरावती की स्थिति कभी नहीं सुधरती है. इसी प्रकार उत्तर महाराष्ट्र में नासिक और मुंबई संभाग बीच में कहीं अपनी जगह बनाए रखते हैं.
दूसरी ओर परीक्षा परिणामों में कोंकण, कोल्हापुर और पुणे सर्वोच्च स्थानों पर डटे रहते हैं. अब इन संभागों की ऊपरी स्थानों पर स्थिति इतनी मजबूत हो चुकी है कि कोई उनसे आगे निकलने अथवा सवाल उठाने का प्रयास तक नहीं करता है. फिर चाहे दसवीं की परीक्षा हो या फिर बारहवीं के परिणाम, सभी का रुख एक ही तरह का बना रहता है.
इसके पीछे विशेषज्ञ भले ही कोई कारण समझाएं, लेकिन मराठवाड़ा और विदर्भ के शिक्षा परिदृश्य पर सवाल खड़े किया जाना आवश्यक है. प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर तक शिक्षा की उपलब्धता के बावजूद गुणवत्ता में सुधार नहीं होना चिंताजनक है. बेरोजगारी और उच्च शिक्षा की दृष्टि से भी यही स्कूली पढ़ाई की कमी-कमजोरी बाधा बनती ही है.
उद्योगों के समक्ष मानव संसाधन के अभाव के चलते बाहरी लोगों का आना और स्थानीय जन के साथ अन्याय प्रतीत होना एक नियति बन चुकी है. इस विषय पर चिंतन तो बहुत दूर राजनीतिक दलों की खामोशी भी टूटती नहीं है. यदि सरकार अथवा राजनीति की दृष्टि से देखा जाए तो मराठवाड़ा और विदर्भ कभी कमजोर नहीं रहा.
दोनों क्षेत्रों से मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री और अनेक विभागों के मंत्री हुए हैं. कोई भी सरकार दोनों इलाकों को अनदेखा नहीं कर पाई है. वर्तमान स्थिति भी यही बात दर्ज करती है. किंतु परीक्षा परिणामों के बाद कोई नेता दोनों क्षेत्रों की परिस्थिति पर टिप्पणी करने से कतराता है. दोनों क्षेत्रों में निजी और सरकारी स्कूलों की संख्या हजारों में है.
निजी क्षेत्र के पास आधारभूत संसाधनों की भी कमी नहीं है. उनमें सभी माध्यमों में हर प्रकार की शिक्षा दी जाती है. ‘कोचिंग क्लासेस’ का अपना मजबूत जाल बिछा हुआ है. निजी स्कूलों और कोचिंग में पढ़ाई की फीस भी अच्छी खासी ली जाती है. मगर परिणामों में पिछड़ेपन का कारण अपनी जगह बना रहता है. सरकार और राजनेता मेधावी विद्यार्थियों की पीठ थपथपा कर अपनी जिम्मेदारी को पूरा मान लेते हैं.
वे यह देखने का प्रयास नहीं करते हैं कि कुल परिणामों की स्थिति अपरिवर्तित ही है. उसे बेहतर बनाने के लिए उपाय किस प्रकार किए जाएं. बीते सालों में स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या को लेकर अभियान चलाया गया और फर्जी नामों को हटाया गया. नकल को समाप्त करने के लिए उपाय किए गए, जिनमें विवादास्पद केंद्रों को बंद किया गया.
नकल रोकने के लिए राजस्व विभाग की भूमिका को बढ़ाया गया. इस वर्ष शिक्षकों को भी दूसरे स्कूलों में पर्यवेक्षक बनाया गया. परिणाम स्वरूप नकल के कुछ मामले कम हुए. फिर भी परिणामों की दृष्टि से शिक्षा का स्तर वहीं रहा. स्पष्ट है कि दस-बीस साल के परिणामों को देखने के बाद भी यदि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार पर कोई चर्चा नहीं होती है तो उसके पीछे राजनीतिक इच्छाशक्ति का कम होना बड़ा कारण है. कोई नेता मराठवाड़ा और विदर्भ में बोर्ड परीक्षा परिणामों की सूची में अपने क्षेत्र के संभागों को ऊपरी स्थानों पर लाने का लक्ष्य नहीं रखता है.
दूसरी ओर निचली पायदानों पर आने के कारणों की जानकारी नहीं ली जाती है. स्कूलों में शिक्षकों की स्थिति की समीक्षा नहीं की जाती है. शिक्षा का स्तर पेशेवर ढंग से जांचा-परखा नहीं जाता है. लगातार ऊपर आने वाले संभागों से कोई प्रेरणा नहीं ली जाती है. कहीं न कहीं ये बातें सिद्ध करती हैं कि शिक्षा की गुणवत्ता सरकार या राजनेताओं की प्राथमिकता में नहीं है.
परीक्षा परिणामों के नाम पर भी कभी राजनीति कर लेने की उनके मन में कोई इच्छा नहीं है. जिसका लगातार नुकसान नई पीढ़ी को हो रहा है. वह जब किसी योग्य बनती है तो वह प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने लगती है. उसे अपनी शिक्षा में गुणवत्ता का अभाव एक बड़ा कारण समझ में नहीं आता है. वह समता और समानता की बात तो मन में रखता है, लेकिन अपने जीवन में शिक्षा के दौरान हुए समझौते को नहीं जान पाता है. शायद वह उसके बस में नहीं था.