विद्यार्थियों की आत्महत्या में सब को पीछे छोड़ता महाराष्ट्र

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: November 24, 2025 07:28 IST2025-11-24T07:27:58+5:302025-11-24T07:28:59+5:30

इस परिदृश्य को मनोचिकित्सक अपने ढंग से देखते हैं और समाज अपनी तरह से चलता है.

Maharashtra leads in student suicides | विद्यार्थियों की आत्महत्या में सब को पीछे छोड़ता महाराष्ट्र

विद्यार्थियों की आत्महत्या में सब को पीछे छोड़ता महाराष्ट्र

विद्यार्थियों की आत्महत्या के मामले में पिछले कुछ दिनों से राजस्थान का कोटा शहर सबसे अधिक चर्चा में रहा है. किंतु राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हाल में जारी आंकड़ों के अनुसार छात्र आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र पहले और मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर हैं. महाराष्ट्र में आत्महत्या के मामले 14.7 फीसदी बढ़े हैं. सरकारी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2024 में राजस्थान के कोटा में कोचिंग छात्रों की आत्महत्या के 17 मामले सामने आए थे, जबकि 2023 में ऐसे 26 मामले दर्ज किए गए थे.

वर्ष 2023 में महाराष्ट्र में 2046 विद्यार्थियों ने आत्महत्याएं कीं. इसमें शहरी तथा ग्रामीण दोनों ही क्षेत्र शामिल हैं. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक देश में छात्रों की आत्महत्या की संख्या 2019 की तुलना में 2023 में 34 प्रतिशत बढ़ी है, जबकि 10 वर्षों में छात्र आत्महत्या में 65 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. वर्ष 2013 में आत्महत्या से 8,423 मौतें हुई थीं, जो 2023 में बढ़कर 13,892 हो गईं. छात्रों में बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृत्ति की वजहों में परीक्षा में असफलता, स्कूल-कॉलेज का वातावरण, इच्छाओं की पूर्ति न होना, पारिवारिक समस्याएं और बीमारी आदि प्रमुख माना गया है. एक तरफ जहां देश में शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन लाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर विद्यार्थियों के मन से तनाव घट नहीं रहा है.

पालकों की महत्वाकांक्षा और विद्यार्थियों की सीमा का अनुमान नहीं होने से स्थितियां बिगड़ रही हैं. कोचिंग कक्षाएं सपने दिखाने के लिए सभी विद्यार्थियों को एक साथ सामने बैठाती हैं, लेकिन सपने पूरे न होने पर समाधान नहीं बताती हैं. सर्वविदित है कि देश की जनसंख्या बढ़ने के साथ अवसरों में कमी आ रही है. आपसी स्पर्धा बढ़ने से शिक्षा महंगी होती जा रही है, हालांकि वह कौशल विकास में लाभदायक सिद्ध नहीं हो रही है. इससे चिंताएं बढ़ रही हैं और अतिवादी कदम उठाए जा रहे हैं.

हाल के दिनों में इंटरनेट ने अनेक काम आसान किए हैं. दूसरी ओर दिमागी तनाव बढ़ाया है. साथ ही अत्यधिक खुलापन सही-गलत का अंदाज नहीं कर पा रहा है. परिणाम स्वरूप अनेक अप्रिय घटनाएं सामने आ रही हैं. महाराष्ट्र में शहरी क्षेत्र के बढ़ने और ग्रामीण भागों से पलायन के बाद सामान्य पृष्ठभूमि वाले परिवारों के लिए परिस्थितियां अच्छी नहीं हैं. यदि शिक्षा के बाद रोजगार नहीं मिलता तो मुश्किलें अधिक बढ़ जाती हैं. इस परिदृश्य को मनोचिकित्सक अपने ढंग से देखते हैं और समाज अपनी तरह से चलता है. चुनौती विद्यार्थियों के समक्ष ही रहती है, जो अक्सर अनिर्णय की स्थिति में रहते हैं.

अब आवश्यक यही है कि छात्र-छात्राओं की सोच और समझ को व्यापक बनाने के लिए प्रयास किए जाएं. स्पर्धा और महत्वाकांक्षा की शिक्षा से आगे जीवन में विचार करने की क्षमता विकसित की जाए. पालकों के समक्ष पढ़ाई के खर्च के बाद उपलब्धियों की चिंता है तो उसे हार-जीत की बजाए परिणाम अनुसार स्वीकार करने लायक बनाया जाए. अन्यथा इन आंकड़ों को बदलना आसान नहीं होगा. कोरी चिंताओं से समाधान नहीं होगा.

Web Title: Maharashtra leads in student suicides

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