ब्लॉग: जवाब तो जनता के बीच जाकर ही देना होगा
By Amitabh Shrivastava | Published: June 29, 2024 02:32 PM2024-06-29T14:32:56+5:302024-06-29T14:32:59+5:30
दोनों हाल के लोकसभा चुनाव की जीत-हार पर अपने-अपने दावे कर मतदाताओं के बीच स्वयं को सफल सिद्ध कर रहे हैं, लेकिन सत्ताधारियों और विपक्षी गठबंधन के चुनाव परिणाम 17 के मुकाबले 31 सीटें रहे, जिससे जनता के झुकाव की दिशा स्पष्ट हो जाती है।

ब्लॉग: जवाब तो जनता के बीच जाकर ही देना होगा
सत्तापक्ष कह रहा है कि वह विपक्ष के सारे सवालों का जवाब विधानमंडल के सदनों में तथ्यात्मक रूप से देगा, किंतु जनता के अनेक सवाल खुले आसमान के नीचे गूंज रहे हैं। महाराष्ट्र विधानमंडल का वर्षाकालीन सत्र आरंभ हो चुका है। परंपरा अनुसार सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों अपनी-अपनी तैयारी के साथ सदन में पहुंच रहे हैं। दोनों हाल के लोकसभा चुनाव की जीत-हार पर अपने-अपने दावे कर मतदाताओं के बीच स्वयं को सफल सिद्ध कर रहे हैं, लेकिन सत्ताधारियों और विपक्षी गठबंधन के चुनाव परिणाम 17 के मुकाबले 31 सीटें रहे, जिससे जनता के झुकाव की दिशा स्पष्ट हो जाती है।
फिर भी यदि आंकड़ों के समझाने में कोई तरीका बदला जाता है तो भी नतीजों में कोई बड़ा अंतर नहीं दिख पाता है। यह साफ करता है कि चाहे आरोप-प्रत्यारोप की लड़ाई को किसी भी सीमा या चार-दीवारी के बीच लड़ लिया जाए, किंतु असली फैसला तो आम आदमी के सवालों को मिले जवाब से ही आता है, जो लोकसभा चुनाव के दौरान अनुत्तरित रहे।
लोकसभा चुनाव की जब भी समीक्षा होती है तो महागठबंधन प्राप्त मतों की संख्या से अपनी पराजय को हल्के में लेता है। उसका दावा है कि इंडिया गठबंधन को महाराष्ट्र में 43.9 प्रतिशत और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(एनडीए) को 43.5 प्रतिशत मत मिले। इसके आधार पर दोनों गठबंधनों में अंतर नहीं रह जाता है। दूसरे शब्दों में शिवसेना का शिंदे गुट यह भी कहता है कि उसका शिवसेना के उद्धव गुट से 13 सीटों पर आमना-सामना हुआ, जिसमें से उसने 7 सीटें जीतीं। यहां तक कि मुंबई में महाविकास आघाड़ी का ‘स्ट्राइक रेट’ 42 फीसदी रहा, जबकि महागठबंधन का 47 फीसदी दर्ज हुआ।
यदि आंकड़ों की सच्चाई को अधिक विस्तार से देखा जाए तो भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) ने नौ सीटें जीतकर 26.2 प्रतिशत मत पाए, वहीं गठबंधन में उसकी सहयोगी राकांपा अजित पवार गुट ने एक सीट जीतकर 3.6 प्रतिशत मत हासिल किए।
वहीं शिवसेना के शिंदे गुट को सात सीटों के साथ 12.9 प्रतिशत मत मिले और राष्ट्रीय समाज पार्टी को कोई सीट नहीं मिली और मत 0.8 प्रतिशत मिले. दूसरी ओर इंडिया गठबंधन की महाविकास आघाड़ी में कांग्रेस को 13 सीटों के साथ 16.9, शिवसेना उद्धव गुट को नौ सीटों के साथ 16.7 प्रतिशत और राकांपा के शरद पवार गुट को आठ सीटों के साथ 10.3 प्रतिशत मत मिले।
मत प्रतिशत के आधार पर यह बात साफ हो जाती है कि महागठबंधन में भाजपा के अलावा कोई भी सहयोगी महाविकास आघाड़ी के सभी सहयोगियों से अधिक मत हासिल नहीं कर सका। हालांकि सब जोड़ कर दोनों की स्थिति बराबर के समीप पहुंच जाती है। किंतु कांग्रेस का 17 सीटों में से 13 जीतना, राकांपा शरद पवार गुट का दस में से आठ सीटें जीतना ‘स्ट्राइक रेट’ के दावों पर सवाल खड़ा कर देता है। शिवसेना उद्धव गुट का 21 सीटें लड़कर नौ जीतना और शिवसेना शिंदे गुट का 15 सीटें लड़कर सात स्थान जीतना एक-दूसरे के लिए संदेश हो सकता है। किंतु जब बात राज्य स्तर पर गठबंधन की निकलती है तो परिणाम सामूहिक रूप से समीक्षा के दायरे में आएंगे। जिसमें चुनाव से पहले 45 सीटें जीतने का दावा किया गया था।
स्पष्ट है कि लोकसभा चुनाव ने राज्य सरकार को संदेश देने का काम किया है। भले ही यह माना जाए कि आम चुनाव सम्पूर्ण राष्ट्र की चिंताओं और आवश्यकताओं के आधार पर होते हैं, लेकिन उनके परिणामों से मिला संदेश राज्यों के लिए भी होता है। चुनावों में जनप्रतिनिधि जमीनी हकीकत को जानकर देश के सर्वोच्च सदन में जाते हैं। अभी गुरुवार को ही महाराष्ट्र के आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में सामने आया है कि राज्य प्रति व्यक्ति आय के मामले में देश में छठवें नंबर पर आ गया है। राज्य में प्रति व्यक्ति की आय 2,52,389 रुपए बताई गई है, जो गुजरात से पीछे खिसकने के बाद छठे क्रमांक पर पहुंच गई है. आर्थिक सर्वेक्षण कहता है कि 2021-22 में बड़े उछाल के बाद महाराष्ट्र का विकास इंजन धीमा हो गया है. वह ‘स्लाइडिंग मोड’ पर है।
कोरोना महामारी के दौरान राज्य की अर्थव्यवस्था बचकर कायम भी रही। किंतु उसके बाद बढ़ने की शुरुआत अच्छी हुई, लेकिन वर्तमान में आवश्यकता अनुरूप नहीं मानी जा रही है। वित्तीय वर्ष 2021-2022 और पिछले आर्थिक सर्वेक्षण में महाराष्ट्र प्रति व्यक्ति आय के मामले में कर्नाटक, तेलंगाना, हरियाणा और तमिलनाडु के बाद पांचवें नंबर पर था. मगर पिछले आर्थिक सर्वेक्षण की तुलना में राज्य के लोगों की प्रति व्यक्ति आय में बढ़ने के बावजूद वह गुजरात से पीछे आ गया है। यह सही है कि केवल एक ही मापदंड से राज्य में अर्थव्यवस्था की स्थिति अच्छी या खराब नहीं बताई जा सकती। संभव है कि इसके पीछे कोरोना की महामारी दूरगामी परिणाम और राज्य सरकार की राजनीतिक अस्थिरता का बड़ा कारण हो, लेकिन इसे बेरोजगारी और महंगाई से जोड़कर तो देखा ही जा सकता है। आज देश सहित राज्य में बड़ी संख्या में नौकरी की तलाश में युवाओं का भटकना जारी है। घर का किराना से लेकर सब्जी-भाजी सभी के भाव आसमान छू रहे हैं फिर सरकार के दावे राजनीति के आंकड़ों की जादूगरी पर टिके हैं।
सत्ताधारी पक्ष कह रहा है कि वह विपक्ष के सारे सवालों का जवाब विधानमंडल के सदनों में तथ्यात्मक रूप से देगा, किंतु जनता के अनेक सवाल खुले आसमान के नीचे गूंज रहे हैं। वे केवल झूठे विमर्शों से गढ़कर नहीं उठ रहे हैं। उनमें रोजाना के जीवन की सच्चाई दिख रही है. इसलिए उनका हल मिलना आवश्यक है. केवल विपक्ष को झुठलाकर सच पर परदा नहीं डाला जा सकता है।
राज्य सरकार ने अनेक क्षेत्रों में नौकरी भरती की प्रक्रिया आरंभ की है। कम से कम उसमें आ रहे आवेदनों से भी जमीनी सच समझा जा सकता है। दरअसल अब राजनीतिक सवालों और जवाबों से ऊपर उठकर वास्तविकता के धरातल पर दिखाई देने वाले परिणामों की आवश्यकता है। लोकसभा चुनाव के ताजा नतीजे साफ कर चुके हैं कि आशा और विश्वास पर पानी फिरने में अधिक समय नहीं लगता है। यह बात और है कि परिणामों को कोई कैसे भी समझे और कैसे भी समझाने का प्रयास करे।