नासिक, जलगांव, नंदुरबार, पुणे और अहिल्या नगर क्षेत्रों से अब तक तेंदुओं हमलों में 40 मौत?, मनुष्यों पर हमले के लिए दोषी नहीं हैं तेंदुए

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 19, 2025 05:33 IST2025-12-19T05:33:56+5:302025-12-19T05:33:56+5:30

नासिक, जलगांव, नंदुरबार, पुणे और अहिल्या नगर क्षेत्रों से अब तक तेंदुओं के हमलों में लगभग 40 मौतें दर्ज की गई हैं. नागपुर के पास भी घातक हमले की घटना घटी है.

Maharashtra 40 deaths in leopard attacks Nashik, Jalgaon, Nandurbar, Pune and Ahilya Nagar areas Leopards not blame attacks humans blog Abhilash Khandekar | नासिक, जलगांव, नंदुरबार, पुणे और अहिल्या नगर क्षेत्रों से अब तक तेंदुओं हमलों में 40 मौत?, मनुष्यों पर हमले के लिए दोषी नहीं हैं तेंदुए

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Highlightsवन्यजीवों के स्वाभाविक रूप से फलने-फूलने के लिए विशाल प्राकृतिक आवास मौजूद था. मानव-वन्यजीव संघर्ष निवारण रणनीति एवं कार्य योजना जारी की थी. यह कार्य योजना 2026 में समाप्त हो रही है.तेंदुओं के हमलों में अचानक हुई बढ़ोत्तरी के लिए अकेले महाराष्ट्र वन विभाग को दोषी नहीं ठहराया जा सकता,

अभिलाष खांडेकर

‘प्रगतिशील महाराष्ट्र’ में मनुष्यों पर तेंदुओं के हमलों की बढ़ती संख्या उन सभी लोगों के लिए चिंता का विषय होनी चाहिए जो सिर्फ अधिक से अधिक भौतिक विकास चाहते हैं, प्रकृति का भले ही नाश हो. नासिक, जलगांव, नंदुरबार, पुणे और अहिल्या नगर क्षेत्रों से अब तक तेंदुओं के हमलों में लगभग 40 मौतें दर्ज की गई हैं. नागपुर के पास भी घातक हमले की घटना घटी है.

महाराष्ट्र उन प्रमुख राज्यों में से एक है जहां वन्यजीवों के स्वाभाविक रूप से फलने-फूलने के लिए विशाल प्राकृतिक आवास मौजूद था. फिर भी, इस तरह का मानव-पशु संघर्ष वहां देखने को मिल रहा है, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि संघर्ष को कम करने के लिए पर्याप्त उपाय नहीं किए गए हैं. हमलों की यह श्रृंखला दुर्भाग्यपूर्ण है.

केंद्रीय  पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय  संरक्षित वनों, राष्ट्रीय उद्यानों और बाघ अभ्यारण्यों का प्रभारी है; मंत्रालय हरित क्षेत्रों के संरक्षण के लिए नीतियां बनाता है. ये वे प्राकृतिक क्षेत्र होते है जहां आवासों और शिकार हेतु जानवरों में निरंतर सुधार के साथ वन्यजीवों की आबादी के रहने और बढ़ने की उम्मीद की जाती है.

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 वन्यजीवों की हर संभव तरीके से सुरक्षा के लिए एक केंद्रीय अधिनियम है, लेकिन यह वन्य जीवों को बचाने में कमजोर साबित हो रहा है. पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कुछ वर्ष पूर्व एक व्यापक राष्ट्रीय मानव-वन्यजीव संघर्ष निवारण रणनीति एवं कार्य योजना जारी की थी. यह कार्य योजना 2026 में समाप्त हो रही है.

ऐसा प्रतीत होता है कि योजना काफी हद तक कागजों पर ही सिमट कर रह गई है या पीड़ितों को मुआवजे का भुगतान करना भर ही इसका काम रह गया है. हमलों में कहीं कोई कमी नहीं आई है. तेंदुओं के हमलों में अचानक हुई बढ़ोत्तरी के लिए अकेले महाराष्ट्र वन विभाग को दोषी नहीं ठहराया जा सकता,

क्योंकि कृषि, उद्योग, राजस्व और विशेष रूप से शहरी विकास जैसे अन्य विभागों की भी इन घटनाओं को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका है. महाराष्ट्र में घटता हरित क्षेत्र जंगली जानवरों के शहरी क्षेत्रों में भटकने का एक प्रमुख कारण है. यदि कोंकण और पश्चिमी घाटों को घटा दिया जाए तो वन क्षेत्र एकल अंक में रह जाएगा, जो चिंता का विषय होना चाहिए.

महाराष्ट्र सबसे तेजी से शहरीकरण होते राज्यों में से एक है, जिसके चलते वन्यजीवों के लिए बहुत कम क्षेत्र बचे हैं. मुंबई, पुणे, पिंपरी-चिंचवड, नागपुर, संभाजी नगर या नासिक जैसे शहर भयावह गति से फैल रहे हैं; सड़क व भवन निर्माण को इस तरह से आगे बढ़ाया जा रहा है मानो कल का सूरज कभी उगेगा ही नहीं.

मुंबई या नासिक (तपोवन) में वृक्ष कटाई के विवाद इतने चर्चित हैं कि उन्हें यहां दोहराने की आवश्यकता नहीं है. महाराष्ट्र में तेंदुओं की देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी (1985) है. तेंदुओं की प्रजाति शर्मीली लेकिन आक्रामक होती है. पहले तेंदुओं को आदमखोर नहीं माना जाता था, लेकिन महाराष्ट्र के बदलते ग्रामीण परिदृश्य के कारण यह संघर्ष अब तीव्र होता जा रहा है.

इसके लिए कौन जिम्मेदार है? निश्चित रूप से तेंदुए तो नहीं. मध्यप्रदेश में सबसे अधिक तेंदुए पाए जाते हैं (3,907), लेकिन वहां इंसानों पर हमले बहुत कम होते हैं. दरअसल, भोपाल की नगरपालिका सीमा में बाघ भी घूमते हैं. सौभाग्य से, बाघों द्वारा इंसानों पर हमले की कोई गंभीर घटना दर्ज नहीं की गई है.

महाराष्ट्र की तुलना में मध्यप्रदेश में अधिक वन क्षेत्र होने के कारण, जंगली जानवरों को अपने लिए बेहतर आश्रय स्थल मिल जाते हैं. देशभर में मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती प्रवृत्ति का एक हिस्सा तेंदुआ-मानव संघर्ष है. बाघ और मनुष्यों के बीच, फिर हाथी और मनुष्यों के बीच संघर्ष छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश जैसे स्थानों पर देखे-सुने जाते हैं.

लेकिन महाराष्ट्र में जो हो रहा है, उस तरह की मानव जीवन की हानि होती है तो यह संघर्ष भयावह मोड़ ले लेता है. अन्य जगहों पर, काले हिरण या नीलगाय खेतों पर हमला करके खड़ी फसलों को चट कर जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप किसान नुकसान की शिकायत करते हैं. मध्यप्रदेश में पिछले कुछ वर्षों से जंगली हाथियों का आतंक बढ़ता जा रहा है;

यह एक नई घटना है. ये हाथी पहले मध्यप्रदेश के जंगलों में नहीं पाए जाते थे, बल्कि भोजन और पानी की तलाश में ओडिशा और झारखंड से यहां तक आए हैं. महाराष्ट्र की गंभीर समस्या अनियंत्रित शहरीकरण है. पहले से ही 45 प्रतिशत या उससे अधिक लोग शहरों में रहते हैं. शहर बेतहाशा बढ़ रहे हैं.

फिर इस राज्य में गन्ने की खेती भी होती है- ये खेत तेंदुओं के छिपने और प्रजनन के लिए आदर्श स्थान हैं. ताजा मुद्दा इन्हीं दो क्षेत्रों के इर्द-गिर्द घूमता है. हालांकि मेलघाट, ताड़ोबा और पश्चिमी घाट में घने वन क्षेत्र हैं, लेकिन तेंदुए और मानव के बीच संघर्ष प्राकृतिक आवासों के विखंडन और बढ़ते शहरी क्षेत्रों का प्रत्यक्ष परिणाम है. केवल दीर्घकालिक हरित नीति ही मनुष्यों को इससे बचा सकती है. तेंदुओं को दोष देना तो बिल्कुल भी सही नहीं होगा!

Web Title: Maharashtra 40 deaths in leopard attacks Nashik, Jalgaon, Nandurbar, Pune and Ahilya Nagar areas Leopards not blame attacks humans blog Abhilash Khandekar

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