एम. वेंकैया नायडू का ब्लॉग: मास्क के पीछे अनमास्क होती जिंदगी
By एम वेंकैया नायडू | Published: January 1, 2021 12:56 PM2021-01-01T12:56:51+5:302021-01-01T13:03:39+5:30
मुझे भी एकांतवास और गहन चिंतन से गुजरना पड़ा. जीवन का उद्देश्य क्या है और हमारा जीना कितना सार्थक है? ऐसे सवाल हमारे दिमाग में भर गए. जब हम जीवित रहने के लिए मास्क (नकाब) पहनते हैं, तो जीवन अनमास्क (बेनकाब) होता है.
कोरोना वायरस से बचने के लिए पिछले दस महीनों से जो मास्क पहनना पड़ रहा है, उसने जीवन के उद्देश्य और अर्थ के बारे में सवाल उठाए हैं. जीवन के कुछ सबसे यादगार पलों का संबंध अपनों के साथ संपर्क से रहता है. लेकिन हमने अपने मुंह और नाक को ढंक लिया और वर्ष के अधिकांश समय तक दूसरों से दूरी बनाए रखी.
क्या जीवित रहना और उसके लिए कुछ काम करते रहना ही जीवन का एकमात्र उद्देश्य है? कोविड-19 महामारी ने अलग-थलग रहने की मजबूरी पैदा की और इस एकांतवास ने अधिक जागरूक किया है.
मुझे भी एकांतवास और गहन चिंतन से गुजरना पड़ा. जीवन का उद्देश्य क्या है और हमारा जीना कितना सार्थक है? ऐसे सवाल हमारे दिमाग में भर गए. जब हम जीवित रहने के लिए मास्क (नकाब) पहनते हैं, तो जीवन अनमास्क (बेनकाब) होता है.
दलाई लामा का कहना है कि जीवन का उद्देश्य खुश रहना है. लेकिन खुशी क्या है और उस अवस्था को कैसे प्राप्त किया जाए और बनाए रखा जाए? घर से काम करना वैश्विक कोविड संस्कृति का एक अभिन्न अंग बन चुका है जो इस वर्ष हमें अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए मास्क पहनने और सुरक्षित दूरी बनाए रखने के साथ उभरा है. लेकिन क्या काम ही जीवन का एकमात्र उद्देश्य और खुशी का स्रोत है?
अपने काम को लेकर विशिष्ट समझ हममें उद्देश्य की भावना पैदा करती है. क्या हम इतने प्रबुद्ध हैं कि परिणामों के बारे में चिंतित हुए बिना काम करते रहें और उसे अर्थवान पाते रहें?
जीवन अनिश्चितताओं और चुनौतियों के खिलाफ एक संघर्ष है. सजीवों में सबसे विकसित प्राणी के तौर पर और सबसे जटिल आर्थिक, वैज्ञानिक व तकनीकी अंर्तसबंधों के बीच रहते हुए, महामारी के इस वर्ष के दौरान मानवता इस तरह के संघर्षो के एक बड़े हिस्से की गवाह रही है.
हम ऐसी स्थिति का सामना कैसे करें और समभाव व संतुलन के साथ रहें? चूंकि हम सभी एक ठहराव के दौर से गुजरे, महामारी ने हमें जीवन के उद्देश्य और अर्थ के बारे में आंतरिक मंथन के लिए प्रेरित किया है. यह बताता है कि जीवन हर समय राजमार्ग नहीं होता. इसने हमें दार्शनिक चिंतन के लिए प्रेरित किया.
प्लेटो ने कहा है कि दर्शन निरंतर प्रश्न करते रहना है जो संवाद का रूप लेता है. आधुनिक जीवन जीते हुए, हमने खुद से बात करना बंद कर दिया है. महामारी ने हमें सोचने के लिए मजबूर किया है कि हम किस तरह से जी रहे हैं और किस तरह से जीना चाहिए.
इसने हमें पुनर्विचार करने और जरूरी होने पर जीवन के उद्देश्य और अर्थ को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है. हमें अपनी मानसिकता को बदलने की जरूरत है क्योंकि महामारी ने हमें जीवन के कुछ सबक दिए हैं.
जन्म और मृत्यु हमारी इच्छाओं के अधीन नहीं है. मुख्य चुनौती इन दो बिंदुओं के बीच यात्र करते हुए इसका उद्देश्य निर्धारित करना और अर्थवत्ता ढूंढना है. महामारी ने मनुष्यों के सर्वोच्च होने और सभी चराचर जगत का मालिक होने के अहंकार को चूर कर दिया है. मुख्य सबक यह है कि हम सिर्फ एक बड़े डिजाइन का हिस्सा हैं और हमें अपनी तरह से ही जीना होगा,दूसरों की कीमत पर नहीं.
अखंडता, अंर्तसबंध और ब्रह्मांड को संचालित करने वाले बुद्धिमत्तापूर्ण नियम, जिन्हें भुला दिया गया था, एक बार फिर से याद किए जा रहे हैं. वायरसों का नियमित प्रकोप, जिसमें वुहान शहर से फैला नवीनतम प्रकोप शामिल है, प्रकृति में बढ़ते हस्तक्षेप का परिणाम है, जिससे विभिन्न जीव-जंतुओं के रिहाइशी इलाकों में व्यवधान उत्पन्न हुआ है.
इससे वन्य जीव मानव बस्तियों का रुख करने पर मजबूर हुए हैं. मनुष्य सह-अस्तित्व की उस आश्चर्यजनक योजना का केवल एक हिस्सा है जिसे हम प्रकृति कहते हैं. मुद्दा प्रकृति को बचाने का नहीं है. यह इसके साथ मिलजुल कर रहने और यह समझने का है कि हम इसका एक हिस्सा हैं.
जीवन का अर्थ जन कल्याण के लिए मानवता और प्रकृति के उत्कर्ष में योगदान करने में निहित है. बांटना और परवाह करना हमारे पुराने लोकाचार का सार है. यह जीवन को एक निश्चित अर्थ प्रदान करता है. भगवद्गीता जीवन के बारे में कहती है; ‘जो कुछ हुआ वह अच्छे के लिए हुआ है; जो भी हो रहा है अच्छे के लिए हो रहा है; और जो भी होगा वह अच्छे के लिए होगा.’ यह हमें अनिश्चितताओं का सामना करने और संतुलन खोजने के लिए आगे बढ़ने का हौसला देता है.
कोरोना वायरस के एक नए स्ट्रेन के बारे में बात की जा रही है, जबकि हम अभी पुराने से ही निपटने की तैयारी कर रहे हैं. अनिश्चितताएं कभी नहीं खत्म होतीं. हमें शांति के साथ उनसे निपटने के लिए खुद को तैयार करने और हमेशा प्रसन्नचित्त रहने तथा ऐसे उद्देश्य के साथ जीने की आवश्यकता है जो अर्थपूर्ण हो.
वर्ष 2020 के संकट भरे वर्ष के दौरान महामारी से निपटते हुए, कुछ सकारात्मक बातें भी हैं. जबकि आमतौर पर एक वैक्सीन को आने में कई साल लगते हैं, वैज्ञानिक सभी को राहत देने के लिए एक साल से भी कम समय में कोविड-19 के लिए वैक्सीन खोजने में सफल रहे. वैक्सीन को पहले ही प्रबंधित किया जाना शुरू हो गया है. दुनिया भर में टीकाकरण अगली बड़ी चुनौती है.
भारत ने एक राष्ट्र के रूप में सराहनीय ढंग से महामारी से मुकाबला किया है. एक संसदीय पैनल ने इसके संचालन के विभिन्न पहलुओं की जांच की, इस व्यापक राष्ट्रीय प्रयास को रेखांकित करते हुए धैर्य और दृढ़ संकल्प की सराहना की तथा सभी हितधारकों को इसके लिए बधाई दी. वायरस और मृत्यु दर के प्रसार पर जिस तरह से निगाह रखी गई, वह कोई छोटी उपलब्धि नहीं थी.
समय की जरूरत है कि पिछले कई महीनों के अनुभवों से हम सही सबक लें, व्यक्तिगत तौर पर भी और सामूहिक रूप से भी, ताकि महामारी को मिटाने के लिए नया वर्ष चमत्कारिक सिद्ध हो. जब तक कि लड़ाई निर्णायक रूप से जीत न ली जाए, निरंतर सतर्कता बरतने की जरूरत है.