शरद जोशी का ब्लॉग: नेशनल लैंग्वेज के लिए कुर्बानियां!
By शरद जोशी | Published: June 22, 2019 06:54 AM2019-06-22T06:54:26+5:302019-06-22T06:54:26+5:30
आज हमारे सामने यह सवाल है कि हम हिंदी राष्ट्रभाषा को पॉपुलर कैसे करें? आज जनसाधारण में भाषा के लिए हमें कांशसनेस जाग्रत करना है कि वे भूलकर अंग्रेजी का एक वर्ड भी अपनी जुबान पर न लाएं. यों तो प्राय: आंदोलन चलते हैं, स्पीचबाजी होती है पर उसमें हमारी समस्या का सॉल्यूशन नहीं है.
जब मैं छोटा था तब गालियां देने की सहज स्वाभाविक प्रवृत्ति को रोकने के लिए हम लड़कों में चेत की प्रथा थी. इसका तात्पर्य यह कि जो भी मुंह से गाली निकालता, उसकी पीठ में घूंसा जमा दिया जाता. आप जानते हैं, शरीर पर जो कष्ट होता है, उसका अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष दिमाग पर प्रभाव पड़ता है तो गालियां देने की आदत धीरे-धीरे छूट गई. छूट तो क्या गई, भाषा जरा सुधर गई.
आज हमारे सामने यह सवाल है कि हम हिंदी राष्ट्रभाषा को पॉपुलर कैसे करें? आज जनसाधारण में भाषा के लिए हमें कांशसनेस जाग्रत करना है कि वे भूलकर अंग्रेजी का एक वर्ड भी अपनी जुबान पर न लाएं. यों तो प्राय: आंदोलन चलते हैं, स्पीचबाजी होती है पर उसमें हमारी समस्या का सॉल्यूशन नहीं है. उसके लिए हमें नया नजरिया, नया एंगल अख्तियार करना पड़ेगा. हमारी लैंग्वेज में जो अंग्रेजी के शब्द घुसे हुए हैं, उन्हें हमें निकाल फेंकना है. अलावा इसके हमारी हिंदी जुबान में कई लफ्ज उर्दू के भी घुसे हुए हैं और आज हमें उसकी मुखालिफत करना है यानी हमारी जंग उर्दू के भी खिलाफ होगी.
अब जने तीन पहलू हैं : एक अंग्रेजी के खिलाफ, उर्दू के विरोध में और हिंदी दुरुस्त करने के वास्ते. अब सवाल है कि क्या मार्ग लिया जाए जिससे सारे जमाने में हिंदीज हिंदी हो जाए? भोपाल शहर में एक ग्रुप ने हिंदी प्रचार का एक अच्छा तरीका खोजा है. जो भी उस ग्रुप का मेंबर अंग्रेजी का एक वर्ड भी बोलेगा तो उसे एक आना फाइन हो जाएगा. यह अटेम्प्ट दूसरे लोगों को भी करना चाहिए, इससे कमाई भी होगी और साथ में भाषा भी लोग ठीक से बोलेंगे. भोपाल में जब फाइनवाला मार्ग अपनाया गया तो यह कितनी दुखदायी बात है कि स्वयं प्रेसीडेंट जो स्पीच देना था, उसने दो शब्द अंग्रेजी के बोले और उसे भी फाइन पे करना पड़ा. बताइए, कैसा दुख का वाकिया है! मगर फिर भी इस नोबेल प्रयत्न के लिए बधाई.
नी तो, मैं तो चेत वाला मार्ग बेहतर समझकर यही रिक्वेस्ट करता हूं कि आप भी अंग्रेजी की चेत ले लें. अपना-अपना दल बना के जे पेले तय कर लो कि जो भी कोई अंग्रेजी बोलेगा, उसे पीठ में एक डुक मारेंगे. घूंसा नी खाना हो तो अंग्रेजी मत बोलो. मैं भी बनते कोशिश इंग्लिश भाषा को अवाइड करता हूं. चेत का आइडिया घने दिन से मेरे माइंड में है; पन कई रखने का मोकाज नी मिला. हमें नेशनल लैंग्वेज के लिए ये कुर्बानियां करनीज पड़ेंगी.