साक्षात्कार: एलोपैथी और आयुष प्रतिस्पर्धी नहीं, पूरक हैं: केंद्रीय आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 31, 2022 10:27 AM2022-08-31T10:27:58+5:302022-08-31T10:41:02+5:30

परंपरागत भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के बढ़ते प्रभाव के बारे में केंद्रीय आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल से लोकमत मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर शरद गुप्ता की बाचचीत।

Lokmat Media Group Senior Editor Sharad Gupta talks with Union AYUSH Minister Sarbananda Sonowal | साक्षात्कार: एलोपैथी और आयुष प्रतिस्पर्धी नहीं, पूरक हैं: केंद्रीय आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल

केंद्रीय आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल (फाइल फोटो)

प्रश्न- भारतीय चिकित्सा पद्धतियां सदियों पुरानी हैं, फिर भी पश्चिमी चिकित्सा पद्धतियों के आगे फीकी क्यों हैं?

सर्बानंद सोनोवाल- लक्ष्मण को मूर्छा आने पर हनुमान द्वारा लाई गई संजीवनी बूटी से उनका इलाज किया गया था, तभी से आयुष का प्रचलन भारतीय समाज में था। यदि आजादी मिलने के बाद से ही हमने भारतीय चिकित्सा पद्धतियों पर जोर दिया होता तो आज पूरे विश्व में इसका और जोर से डंका बज रहा होता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद आयुष को एक अलग मंत्रालय बनाकर इसका विस्तार किया जा रहा है। इसी से भारतीय परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों को पूरे विश्व में स्वीकार किया जा रहा है, इस समय करीब 170 देशों में आयुष उत्पादों का निर्यात हो रहा है।

प्रश्न- क्या एलोपैथी अब भी आयुष पर भारी है?

सर्बानंद सोनोवाल- आयुष और एलोपैथी प्रतिस्पर्धी नहीं, बल्कि सहयोगी हैं। कोविड महामारी के कारण भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में स्वास्थ्य के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव आया है। अब संपूर्ण स्वास्थ्य की बात की जा रही है। आयुष और स्वास्थ्य मंत्रालय मिलकर काम कर रहे हैं। अंतर-मंत्रालयी स्तर पर बैठकों का दौर जारी है। इसी का परिणाम है कि शीघ्र ही मॉडर्न मेडिसिन और आयुष चिकित्सा पद्धतियों का एक संयुक्त फार्मोकोपिया या औषधि संग्रह कोष बनेगा। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एम्स) के सहयोग से 2016 में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने सेंटर फॉर इंटिग्रेटिव मेडिसिन एंड रिसर्च सेंटर की स्थापना की थी। इसके जरिये एलोपैथी चिकित्सा व्यवस्था में भारत की परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों के बेहतर उपयोग पर शोध और अध्ययन किया जा रहा है।

प्रश्न- आयुष का बाजार कितना बढ़ा है?

सर्बानंद सोनोवाल- 2014 से 2022 के बीच आयुष बाजार का आकार 17 प्रतिशत बढ़ा। इस वर्ष इसका आकार 1.86 लाख करोड़ रुपयों का होने की उम्मीद है। आयुष उत्पाद और सेवाओं की पहचान अब दुनिया के करीब-करीब सभी देशों में है। आयुष निर्यात में तेजी से हो रही वृद्धि से यह साबित भी हो रहा है। 2014 में यह निर्यात 8714 करोड़ रुपए था जो 2020 में बढ़कर 12311 करोड़ रु. हो गया। 2028 में इसके 34 लाख करोड़ रुपयों का हो जाने की आशा है।

प्रश्न- क्या आयुर्वेद को पश्चिमी देशों में वह मान्यता नहीं मिल रही जिसका वह हकदार है?

सर्बानंद सोनोवाल- 2014 में भारत में आयुष मंत्रालय के गठन के बाद से ही सभी देशों में आयुर्वेद सहित योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा, होम्योपैथी, यूनानी, सोवा रिग्पा और सिद्धा का प्रसार बढ़ा है। केन्या के पूर्व प्रधानमंत्री राइला ओडिंगा की बेटी रोजमेरी को दुनिया भर में इलाज कराने पर भी अपनी आंखों की रोशनी नहीं मिल पाई थी। आखिरकार रोजमेरी को आयुर्वेद चिकित्सा के जरिये आंखों की रोशनी वापस मिली। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बारे में बात की थी।

प्रश्न- सरकार इस बारे में क्या कदम उठा रही है?

सर्बानंद सोनोवाल- आयुष मंत्रालय सेंट्रल सेक्टर स्कीम के तहत अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाने के लिए इंटरनेशनल कोऑपरेशन के तहत कई तरह के काम कर रहा है। आयुष मंत्रालय की ओर से फेलोशिप स्कीम के तहत भारतीय प्रीमियर संस्थानों में विदेशी छात्रों को स्नातक, स्नातकोत्तर और शोध कार्य के लिए आर्थिक सहायता दी जा रही है। गांधीनगर में 20 से 22 अप्रैल के बीच आयुष ग्लोबल समिट में करीब 9000 करोड़ रुपए के लेटर ऑफ इंटेंट साइन किए गए। इस निवेश से करीब 5.56 लाख रोजगार सृजन की संभावना है।

प्रश्न- भारतीय चिकित्सा पद्धति के चिकित्सक अपना ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी बांटते हैं. लेकिन डिग्री के अभाव में ऐसे वैद्यों को सरकारी मान्यता नहीं है. क्या सरकार इस दिशा में कुछ कदम उठा रही है?

सर्बानंद सोनोवाल- परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों को सहेजने के लिए कई स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। हम परंपरागत चिकित्सकों से उनकी विशेष पद्धतियों और दवाइयों की जानकारी ले रहे हैं। इनके प्रयोगशाला में प्रमाणित होने के बाद वैश्विक स्तर पर लॉन्च किया जाएगा। इन दवाइयों और पद्धतियों का श्रेय और रॉयल्टी इनके मूल स्वामी वैद्यों को देने पर विचार हो रहा है। केंद्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद (सीसीआरएएस) 14 राज्यों में चिकित्सीय प्रजाति वानस्पतिक सर्वेक्षण (एमईबीएस) के तहत व्यक्तियों और समुदायों के बीच प्रचलित स्थानीय स्वास्थ्य परंपराओं एवं प्रजाति-औषधीय प्रथाओं (ईएमपी) को डॉक्युमेंट और प्रमाणित करने के लिए काम कर रही है। यह कोशिश स्थानीय ज्ञान परंपरा को संरक्षित करने और सहेजने की है।

प्रश्न- जामनगर में बन रहे ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडीशनल मेडिसिन की क्या भूमिका होगी और यह कब तक बनकर तैयार हो जाएगा?

सर्बानंद सोनोवाल- इस सेंटर के जरिये परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों के शोध, अध्ययन और प्रसार के काम को आगे बढ़ाया जा सकेगा। इससे भारत की परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों को विश्व स्तर पर पहचान मिल सकेगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व भर में करीब 80 प्रतिशत लोग परंपरागत चिकित्सा का किसी न किसी रूप में प्रयोग कर रहे हैं।

प्रश्न- अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित होने के बाद से इसे विश्व स्तर पर और प्रमोट करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?

सर्बानंद सोनोवाल- प्रधानमंत्री मोदी के प्रयास से 2014 में संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। इस वर्ष भी योग के प्रसार के लिए देश के 75 विशिष्ट स्थानों पर केंद्र सरकार के सहयोग से योग का आयोजन किया गया। अल्बानिया, कोमोरोस, क्यूबा, आयरलैंड, मॉरिशस, सऊदी अरब, श्रीलंका जैसे देश भी अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के आयोजन में शामिल हुए।

प्रश्न- सरकार योग में उच्च शिक्षा के लिए प्रबंध कर रही है?

सर्बानंद सोनोवाल- योग में उच्च शिक्षा के लिए एमए, एमएससी, एमफिल, एमडी योग, पीएचडी आदि का संचालन हो रहा है. नई शिक्षा नीति में भी स्कूलों में योगासन को बढ़ावा दिया जा रहा है। योगासन ओलंपियाड का आयोजन हो रहा है।
 

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