लोकमत संपादकीयः रोजगार ही नहीं, सुरक्षित भविष्य की भी बात हो
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 20, 2019 05:29 AM2019-01-20T05:29:35+5:302019-01-20T05:29:35+5:30
मंत्रालय की कैंटीन में वेटर के 13 पदों के लिए 7000 युवाओं ने आवेदन किया था. 25-27 वर्ष आयु वर्ग के इन बेरोजगारों में अधिकतर स्नातक व 12वीं पास थे।
बड़े-बुजुर्ग कहते हैं, ‘कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता, सबका अपना-अपना महत्व है.’ यह बात बिल्कुल सही भी है. ताजा मामला ही ले लीजिए महाराष्ट्र राज्य सचिवालय की कैंटीन में नेताओं, अफसरों और आगंतुकों को भोजन परोसने के लिए वेटर के तौर पर 12 स्नातकों की भर्ती की गई है. जाहिर है पढ़े-लिखे युवाओं की मौजूदगी से कैंटीन की व्यवस्था में सुधार होगा. लेकिन इसके दूसरे पहलू को नजरंदाज नहीं किया जा सकता. वह है विकराल आकार लेती बेरोजगारी.
इस समस्या का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि मंत्रालय की कैंटीन में वेटर के 13 पदों के लिए 7000 युवाओं ने आवेदन किया था. 25-27 वर्ष आयु वर्ग के इन बेरोजगारों में अधिकतर स्नातक व 12वीं पास थे, जबकि इस पद के लिए शैक्षणिक अर्हता चौथी पास थी. अब इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि बेरोजगार स्नातक चौथी पास की योग्यता वाले काम करने को मजबूर हैं, क्योंकि देश में नौकरियां ही नहीं हैं. इसे देश में रोजगार की मौजूदा स्थिति का स्पष्ट उदाहरण माना जा सकता है.
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि देश में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या करोड़ों में है और उसमें लगातार इजाफा होता जा रहा है, जबकि सरकार हर वर्ष रोजगार के सिर्फ कुछ लाख अवसर ही पैदा कर पा रही है. ये बात अलग है कि मोदी सरकार ने हर वर्ष दो करोड़ रोजगार सृजन का ‘चुनावी’ वादा किया था. बेरोजगारी और रोजगार के अवसरों के बीच बढ़ती खाई का एक बड़ा कारण निजी क्षेत्र की नौकरियों के प्रति युवाओं में असुरक्षित भविष्य की धारणा है. वहीं सरकारी क्षेत्र में उसे नौकरी छिनने, अचानक निकाले जाने का डर नहीं सताता.
इस आकर्षण को सकारात्मक लक्षण नहीं माना जा सकता और न ही युवा बेरोजगार इसके लिए दोषी हैं, बल्कि यह तो सत्ता में बैठी सरकार की नाकामी को दर्शाता है कि वह रोजगार के अवसर तो दूर, सुरक्षित भविष्य की चिंताओं को दूर करने में भी विफल रही है. ‘चुनावी मोड’ पर स्विच कर चुकी सरकार भले ही दावा करे कि उसने रोजगार के अवसर सृजित करने के अपने वादे को करीब-करीब पूरा किया है. लेकिन जमीनी हकीकत इसके विपरीत है. देश का युवा अब भी खाली हाथ है और खुद को फिर से ठगा हुआ महसूस कर रहा है.