संतोष देसाई का ब्लॉग: विकल्पों को खत्म करता ध्रुवीकरण
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 22, 2019 09:54 AM2019-04-22T09:54:57+5:302019-04-22T09:54:57+5:30
लोकसभा चुनाव 2019: अमित शाह का वक्तव्य हो या योगी आदित्यनाथ का हालिया बयान, ऐसा लगता है कि समाज के धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण को तेज किया जा रहा है. यह ध्रुवीकरण सिर्फ चुनावों तक ही सीमित रहता दिखाई नहीं देता.
भाजपा के अधिकृत ट्विटर हैंडल पर हाल ही में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के भाषण का एक अंश डाला गया, जिसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि उनकी पार्टी अगर सत्ता में आई तो पूरे देश के लिए नागरिकता अधिनियम को क्रियान्वित किया जाएगा और उन सभी घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी जो हिंदू, सिख या बौद्ध धर्मावलंबी नहीं हैं. अलग-अलग धर्मावलंबियों को लेकर पार्टी की क्या भूमिका है, यह इससे स्पष्ट होता है. राष्ट्रीय स्तर पर बाहरी लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए ‘राष्ट्रवादी’ दृष्टिकोण अपनाने में शायद किसी को समस्या नहीं होगी, लेकिन इसमें धर्म के आधार पर भेदभाव करने का दृष्टिकोण स्पष्ट दिखाई देता है.
ऐसा नहीं है कि पार्टी द्वारा धार्मिक आधार पर भेदभाव किया जाना अब तक कोई गोपनीय बात रही है. आश्चर्यजनक यही है कि इस बार खुले तौर पर इस तरह का वक्तव्य देने का साहस दिखाया गया है जबकि इसके पहले परोक्ष रूप से ही इस तरह की बातें की जाती रही हैं. ऐसा नहीं है कि इस तरह के ध्रुवीकरण का समर्थन करने वाले लोग नहीं हैं. उनकी संख्या बहुत छोटी भी नहीं है. दूसरे छोर पर ऐसे लोगों की भी काफी संख्या है जो इस तरह के ध्रुवीकरण से चिंतित हैं और इसे संविधान की भावना के विरुद्ध मानते हैं. इन दोनों ध्रुवों के बीच, एक बड़ा मध्यम वर्ग ऐसा है-जिसका बड़ा हिस्सा शहरी है-जो उदार मतवादी है और पिछले आम चुनाव में जिसने विकास के मुद्दे पर भाजपा का समर्थन किया था. यह वर्ग मोदी के नेतृत्व के गुण का प्रशंसक है और इस बात के लिए उनका गुणगान करता है कि दुनिया में उन्होंने देश का सम्मान बढ़ाया है. पूर्व की सरकार से यह वर्ग भ्रष्टाचार को लेकर नाखुश था. धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण के परोक्ष प्रयास उसके लिए ज्यादा मायने नहीं रखते. उसके लिए महत्वपूर्ण विषय आर्थिक विकास, दुनिया में भारत की रैंकिंग और भ्रष्टाचार का खात्मा है.
लेकिन अब अमित शाह का वक्तव्य हो या योगी आदित्यनाथ का हालिया बयान, ऐसा लगता है कि समाज के धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण को तेज किया जा रहा है. यह ध्रुवीकरण सिर्फ चुनावों तक ही सीमित रहता दिखाई नहीं देता. अनेक लोगों के लिए यह कोई नई बात नहीं है. लेकिन जो लोग बीच में हैं, उनके लिए अब दोनों ध्रुवों में से किसी एक का चुनाव करना अपरिहार्य हो गया लगता है, क्योंकि धार्मिक आधार पर किया जा रहा ध्रुवीकरण अब बीच का कोई मार्ग छोड़ नहीं रहा है. इससे बचने का कोई उपाय नहीं दिख रहा.