भरत झुनझुनवाला का ब्लॉगः आगामी सरकार की आर्थिक चुनौतियां

By भरत झुनझुनवाला | Published: May 13, 2019 09:49 AM2019-05-13T09:49:56+5:302019-05-13T09:49:56+5:30

विदेशी निवेशकों को पूंजी लाने की तथा चीनी नागरिकों को पूंजी बाहर ले जाने की खुली छूट दी गई. इस नीति का आधार था कि विकसित देशों में पर्याप्त मांग थी. अब परिस्थितियां बदल गई हैं. विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर न्यून हो गई है. वहां माल की मांग की विशेष वृद्धि नहीं हो रही है.

lok sabha election: Economic Challenges of the upcoming Government | भरत झुनझुनवाला का ब्लॉगः आगामी सरकार की आर्थिक चुनौतियां

Demo Pic

बीते समय में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाओं ने भारत की आर्थिक विकास दर को घटाया है. अर्थव्यवस्था की इस मंद गति के पीछे यूपीए एवं एनडीए सरकारों द्वारा लागू की गई कुछ नीतियां हैं. नई सरकार को इन मूल नीतियों पर पुनर्विचार करना जरूरी है. एक नीति विदेशी निवेश की है. दोनों सरकारों की पॉलिसी थी कि चीन की तर्ज पर भारत में भी विदेशी निवेश को भारी मात्ना में आकर्षित किया जाए. जिस प्रकार चीन में बड़ी संख्या में रोजगार बने हैं और जनता के जीवन स्तर में सुधार आया है उसी प्रकार का भारत में भी हो. लेकिन चीन और भारत की परिस्थिति में समय का मौलिक अंतर है. 

चीन ने यह नीति 80 के दशक में अपनाई थी जिस समय विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाएं तेजी से बढ़ रही थीं. वहां माल की मांग थी. उस मांग की पूर्ति के लिए पश्चिमी बहुराष्ट्रीय कंपनियां चीन में निवेश करने को उद्यत थीं. उस समय चीन में भारी मात्ना में विदेशी निवेश आया, रोजगार बने और उत्पादित माल का निर्यात विकसित देशों को हुआ. इस चक्र  को चलने के लिए विदेशी पूंजी के अंतर्राष्ट्रीय प्रवाह को खुली छूट दी गई. 

विदेशी निवेशकों को पूंजी लाने की तथा चीनी नागरिकों को पूंजी बाहर ले जाने की खुली छूट दी गई. इस नीति का आधार था कि विकसित देशों में पर्याप्त मांग थी. अब परिस्थितियां बदल गई हैं. विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर न्यून हो गई है. वहां माल की मांग की विशेष वृद्धि नहीं हो रही है. ऊपर से रोबोट के उपयोग से माल का उत्पादन विकसित देशों में ही होने लगा है. इसलिए चीन द्वारा अपनाई गई नीति को अपना कर आज हम सफल नहीं हो सकते हैं. जरूरी है कि हम विदेशी निवेश के पीछे भागना बंद करें और अपनी पूंजी अपने ही देश में रहने के लिए समुचित वातावरण उपलब्ध कराएं.    

इसी प्रश्न से जुड़ा हुआ दूसरा प्रश्न वित्तीय घाटे का है. यूपीए तथा एनडीए सरकारों ने सरकार के वित्तीय घाटे पर नियंत्नण की नीति को अपना रखा था. परिणाम यह हुआ कि सरकार द्वारा रक्षा, अंतरिक्ष, रिसर्च और अन्य जरूरी कार्यो में पर्याप्त मात्ना में निवेश नहीं किया गया. इससे हमारी विकास दर में गिरावट आई है. 

वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने के पीछे सोच थी कि सरकार का वित्तीय घाटा नियंत्नण में रहेगा तो महंगाई भी नियंत्नण में रहेगी, अर्थव्यवस्था में स्थिरता रहेगी और विदेशी निवेश भारी मात्ना में आएगा. लेकिन जैसे ऊपर बताया गया है कि विकसित देशों में माल की मांग ही कम हो जाने से विदेशी निवेश आने की संभावना कम ही है. ऐसे में अपने वित्तीय घाटे को नियंत्रित करना और सरकारी निवेश में कटौती करना दोहरे घाटे का सौदा हो गया है. इसलिए आने वाली सरकार को वित्तीय घाटे पर नियंत्नण के स्थान पर राजस्व घाटे पर नियंत्नण करने की नीति को लागू करना चाहिए. 

Web Title: lok sabha election: Economic Challenges of the upcoming Government

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे