ब्लॉग: क्षेत्रीय नेताओं के लिए करो या मरो की स्थिति

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 13, 2024 03:10 PM2024-03-13T15:10:40+5:302024-03-13T15:10:46+5:30

राज्य में मराठा दिग्गज शरद पवार तथा शिवसेना के एक गुट का नेतृत्व कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की राजनीति में प्रासंगिकता दांव पर लगी हुई है। ये दोनों नेता राष्ट्रीय राजनीति के भी खिलाड़ी हैं।

lok sabha election 2024 Do or die situation for regional leaders | ब्लॉग: क्षेत्रीय नेताओं के लिए करो या मरो की स्थिति

ब्लॉग: क्षेत्रीय नेताओं के लिए करो या मरो की स्थिति

प्रभु चावला

अगर शांतिकाल में कोई ‘युद्ध’ होता है तो वह चुनाव के दौरान होता है। एक वह दौर था, जब दरबारी ज्योतिषियों द्वारा बताई गई ग्रहों की गणना के आधार पर राजा हमला करने का समय चुनते थे। विडंबना यह है कि हालात बदलने के बावजूद वे नहीं बदलते। शक्तिशाली उद्योगपति, बाजार के जानकार, विचारधारा से ग्रस्त बुद्धिजीवी की कॉकटेल पार्टियों या टेलीविजन अपने लक्षित दर्शकों की भूख मिटाने के लिए आंकड़ों के खेल में जुट जाते हैं। चूंकि 2024 के लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है, तो नेताओं के उत्थान, पतन, हाशिए पर जाने और दौड़ से बाहर हो जाने की भविष्यवाणियां करना लोगों का शौक बन गया है।

2024 के लोकसभा चुनाव मोदी की तीसरी बार सत्ता में वापसी तक सीमित नहीं है बल्कि उनमें ममता बनर्जी, शरद पवार, एम.के. स्टालिन, सिद्धारमैया और रेवंत रेड्डी की क्षेत्रीय विचारधाराओं के राजनीतिक स्थायित्व की भी परीक्षा होगी। यादवकुल रत्नों अखिलेश तथा तेजस्वी यादव को यह साबित करना होगा कि वे दिग्गज पिताओं के योग्य उत्तराधिकारी हैं जिन्होंने अपने राज्यों में अपना जबर्दस्त मुकाम बनाया तथा प्रधानमंत्री को गद्दी पर बैठाने या उतारने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

अब देखें 2024 के मुकाबले में कौन अपना अस्तित्व बचा पाता है। उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजे 50 वर्षीय पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का भविष्य तय करेंगे जिनके पिता मुलायमसिंह यादव की विराट शख्सियत की बदौलत समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में एक बार लोकसभा की 36 तथा विधानसभा की लगभग 60 प्रतिशत सीटें जीतने में सफल हो गई थी। 2012 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश विजयी हुए थे मगर उसके बाद उनका ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है। मायावती अकेले लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं। उनकी ‘अबूझ’ राजनीति के चलते क्या अखिलेश उ.प्र. में अपने सांसदों की संख्या मौजूदा 5 से बढ़ा सकेंगे और कांग्रेस के सांसदों की संख्या बढ़ाने में भी मदद कर पाएंगे।

बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। यहां भी परिवारवाद दांव पर लगा हुआ है। राज्य के 34 वर्षीय पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव या तो अपने दिग्गज पिता लालूप्रसाद यादव के योग्य उत्तराधिकारी साबित होंगे या उनकी राजनीति का सूर्य भी डूब जाएगा। लालूप्रसाद की बिहार की राजनीति पर दबदबा रहा है। इस वक्त लोकसभा में यादव परिवार के राष्ट्रीय जनता दल का एक भी सदस्य नहीं है. इस मर्तबा मोदी के प्रभाव को कम करने की चुनौती तेजस्वी के सामने है। महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं।

राज्य में मराठा दिग्गज शरद पवार तथा शिवसेना के एक गुट का नेतृत्व कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की राजनीति में प्रासंगिकता दांव पर लगी हुई है। ये दोनों नेता राष्ट्रीय राजनीति के भी खिलाड़ी हैं। दोनों ही नेता हाल ही में अपनी-अपनी पार्टी को दो फाड़ होते देख चुके हैं और उनकी मूल पार्टी के चुनाव चिह्न और नाम विरोधी खेमे को मिल चुके हैं। 2024 के चुनाव में यह साबित हो जाएगा कि ये दोनों नेता अपने कार्यकर्ताओं तथा संगठन का समर्थन फिर से हासिल कर पाते हैं या नहीं? पश्चिम बंगाल ममता बनर्जी तथा प्रधानमंत्री मोदी दोनों के लिए प्रतिष्ठा का मैदान बन गया है। आगामी चुनाव प. बंगाल में ममता तथा भाजपा दोनों का भविष्य तय कर देंगे। यही नहीं लोकसभा चुनाव के नतीजे का आगामी राज्य विधानसभा चुनाव के लिए भी ममता और भाजपा को उनके भविष्य का संकेत दे देंगे। तमिलनाडु में 71 वर्ष के एम.के. स्टालिन अपने राजनीतिक जीवन की सबसे कठिन परीक्षा का सामना कर रहे हैं। भाजपा इस चुनाव में सनातन के हथियार के साथ उतर रही है। ऐसे में स्टालिन को नया द्रविड़ शस्त्र ढूंढना होगा।

केरल ने अभी तक भाजपा के किसी प्रत्याशी को लोकसभा में नहीं भेजा है। राज्य में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाले एलडीएफ तथा कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन यूडीएफ के बीच ही मुकाबला होता आया है। पहली बार केरल में इन दोनों गठबंधनों को भाजपा से कड़ी टक्कर मिल रही है। वामपंथी मोर्चा पूरी तरह मुख्यमंत्री पिनरई विजयन के करिश्मे पर निर्भर है। क्या राज्य में विजयन की उम्मीदें ध्वस्त होंगी और भाजपा के लिए दरवाजे खुलेंगे?

मोदी का रथ रोकने के लिए लोकसभा चुनाव में नजरें कर्नाटक, झारखंड, पंजाब तथा दिल्ली में स्थानीय नेतृत्व की क्षमता पर टिकी हुई हैं। कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया तथा उपमुख्यमंत्री डी.के.शिवकुमार भाजपा का आंकड़ा मौजूदा 25 से घटाकर 15 तक लाने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं। वे कांग्रेस की सीटें एक से बढ़ाकर 10 करने की कोशिश कर रहे हैं। दिल्ली में ‘आप’ के मुखिया अरविंद केजरीवाल तथा उनके साथी भगवंत मान पंजाब और दिल्ली में भाजपा को शून्य पर लाने के लिए कमर कसे हुए हैं।

कांग्रेस अकेले 17वीं लोकसभा का गणित और नए भारत का राजनीतिक भविष्य निर्धारित करने में सक्षम नहीं है। लोकसभा चुनाव के नतीजे क्षेत्रीय नेताओं तथा जातिगत राजनीति का भाग्य तय करेंगे। चुनाव के केंद्र में निश्चित रूप से प्रधानमंत्री मोदी रहेंगे। दांव पर वंशवाद तथा वैचारिक स्थिरता और दिग्गजों की मजबूत विरासत होगी।

Web Title: lok sabha election 2024 Do or die situation for regional leaders