लॉकडाउन : बढ़ती घरेलू हिंसा का इलाज भी जरूरी, पढ़ें कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 13, 2020 09:26 AM2020-04-13T09:26:24+5:302020-04-13T09:26:24+5:30
मार्च के पहले सप्ताह में यानी जब लॉकडाउन नहीं था, आयोग को देश भर से महिलाओं के खिलाफ अपराधों की 116 शिकायतें मिली थीं, जबकि लॉकडाउन में 23 से 31 मार्च के दौरान 257 यानी दुगुनी से ज्यादा मिलीं. आयोग को इनमें से अधिकतर शिकायतें ईमेल यानी पढ़े-लिखे तबके की महिलाओं से मिली हैं, जबकि देश की महिलाओं का एक बड़ा तबका अभी मोबाइल व कम्प्यूटर से दूर है.
इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने लॉकडाउन को देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य के विरुद्ध भीषण कदम बताया और कहा है कि इसके कारण लोगों को न सिर्फ आर्थिक बल्कि सामाजिक व मनौवैज्ञानिक दबावों से भी गुजरना पड़ रहा है, जिसका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर लंबा और गहरा विपरीत असर होगा. केंद्र और राज्य सरकारें कौंसिल की इस चेतावनी की अनसुनी कर लॉकडाउन बढ़ा रही हैं तो साफ है कि उन विशेषज्ञों को ज्यादा वजन दे रही हैं, जो कह रहे हैं कि नागरिकों की प्राण रक्षा के लिए अभी भी कारखानों, दुकानों या सड़कों पर भीड़ का उमड़ना और फिजिकल डिस्टेंसिंग तोड़ना खतरनाक सिद्ध होगा.
भारत समेत दुनिया के लॉकडाउन वाले सारे देशों में घरेलू हिंसा में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है. चीन, जिसके वुहान शहर में 11 हफ्तों का लॉकडाउन अभी-अभी खत्म किया गया है, महिलाओं के खिलाफ घरेलू मारपीट के मामले तीन गुना हो गए हैं. स्पेन की बात करें तो वहां लॉकडाउन की यातनाएं इतनी असह्य हो गईं कि अनेक महिलाओं को खुद को कमरे या बाथरूम में बंद करना पड़ा, जिसके बाद उनको बाहर निकलने की छूट देनी पड़ी. इस बीच लेबनान व मलेशिया में महिलाओं संबंधी ‘हेल्पलाइन’ पर कॉलों की संख्या दो गुनी हो गई है और ऑस्ट्रेलिया में गूगल जैसे सर्च इंजनों पर घरेलू हिंसा संबंधी मदद के लिए सबसे ज्यादा जानकारी इन्हीं दिनों खोजी जा रही है.
भारत की बात करें तो राष्ट्रीय महिला आयोग का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के खिलाफ हिंसा बेतहाशा बढ़ी है. मार्च के पहले सप्ताह में यानी जब लॉकडाउन नहीं था, आयोग को देश भर से महिलाओं के खिलाफ अपराधों की 116 शिकायतें मिली थीं, जबकि लॉकडाउन में 23 से 31 मार्च के दौरान 257 यानी दुगुनी से ज्यादा मिलीं. आयोग को इनमें से अधिकतर शिकायतें ईमेल यानी पढ़े-लिखे तबके की महिलाओं से मिली हैं, जबकि देश की महिलाओं का एक बड़ा तबका अभी मोबाइल व कम्प्यूटर से दूर है. उसे न संचार के आधुनिक तौर-तरीकों का इल्म है, न अपने अधिकारों का. लॉकडाउन में उस पर क्या बीत रही है, इसकी फिलहाल कोई खबर बाहर नहीं आ पा रही है.
लॉकडाउन के महिला विरोधी पहलुओं पर चिंता जताते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी दुनिया के सारे देशों की सरकारों से सजगतापूर्वक ठोस कार्रवाई का आह्वान किया है. क्या उम्मीद की जाए कि उनके इस आह्वान का अन्य देशों के साथ हमारे देश में भी असर होगा और महसूस किया जाएगा कि देश को कोरोना से बचाते हुए महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाना भी जरूरी है? और हां, इसके साथ ही बच्चों को भी बचाना होगा.