तमिलनाडु गर्वनर विवाद: मोलेस्टेशन को क्रूरतम अपराध ही रहने दें, हर टच मोलेस्टेशन नहीं होता
By भारती द्विवेदी | Published: April 19, 2018 01:32 PM2018-04-19T13:32:18+5:302018-04-19T13:32:18+5:30
हर आदमी सिर्फ संत या शैतान नहीं होता है। इसके बीच का भी एक इंसान होता है, जो कि ना तो संत है और ना ही शैतान। बस इंसान होता है।
तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित एक महिला पत्रकार के गाल थपथपाने को लेकर आलोचनाओं से घिर गये हैं। राज्यपाल ने यौन शोषण के मुद्दे पर एक पत्रकार वार्ता के दौरान ये हरकत की। मामले ने तूल तब पकड़ा जब महिला पत्रकार ने ट्विटर लिखा कि राज्यपाल ने उन्हें उनकी मर्जी के बगैर छुआ और उन्होंने कई बार गाल धोए। महिला पत्रकार के ट्वीट के बाद से एक तरफ जहां सोशल मीडिया और मीडिया राज्यपाल को मोलेस्टर की कैटगेरी में खड़े करने लगे। दूसरी तरफ, कुछ लोगों कहने लगे कि महिला पत्रकार ने "फेमस" होने के लिए तिल को ताड़ बनाया है। किसी का कहना था कि अब हालात ये हो गए हैं कि शाबाशी देने के लिए भी लड़कियों को पूछना पड़ेगा।
"No means No" के दौरे में हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि लड़कियों की सुरक्षा और यौन शोषण एक वास्तविक और गंभीर मुद्दा है। वहीं ये भी जरूरी है कि कुछ लड़कियों को भी समझना होगा कि हर आदमी सिर्फ संत या शैतान नहीं होता है। इसके बीच का भी एक इंसान होता है जो कि ना तो संत है और ना ही शैतान।
राज्यपाल को क्यों नहीं छूने चाहिए थे महिला पत्रकार के गाल?-
विवाद में फंसने के बाद राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित ने सफाई देते हुए कहा- उन्होंने उस पत्रकार को "पोती" समझकर गाल थपथपाया था। लेकिन हर चीज का एक दायरा होता है। संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों से उम्मीद की जाती है कि सार्वजनिक जीवन में उनका आचरण मर्यादित रहेगा। आम जीवन में भी जब भी कभी हम नए लोग से मिलते हैं तो तुरंत उनसे अनौपचारिक रूप से नहीं पेश आते। अगर आते हैं तो इसे डिसेंट व्यवहार नहीं माना जाता। लेकिन वहीं जब हम अपने किसी अच्छे दोस्त से मिलते हैं तो वो दूरी घट जाती है। इसको और डिटेल में समझा जाए तो अगर आप अपनी मां और गर्लफ्रेंड के साथ होते हैं तो वो सहजता और बढ़ जाती है। प्रेस कांफ्रेंस में उतने लोगों के बीच जिस महिला को आप जानते तक नहीं है, उसका गाल थपथपाना अनप्रोफेशनल है। भले ही राज्यपाल की वैसी मंशा न रही हो, लेकिन उनकी कैसी मंशा थी ये साबित करने का भी कोई तरीका नहीं है।
भारतीय संस्कृति चेहरे पर हाथ फेर शाबाशी नहीं दी जाती -
कहते हैं ना कि लड़कियों के पास सिक्स सेंस होता है। वो सामने वाले की बात या बॉडी लैंग्वेज से समझ जाती हैं कि सामने वाला क्या कहना चाह रहा है। या यूं कहिए कि हर समझदार इंसान को बेकिस बॉडी लैंग्वेज की समझ होती है। चाहे वो लड़की हो या लड़का। हम कुछ भी अच्छा करते हैं और हमारे बड़ों के हम पर लाड़-प्यार या स्नेह दिखाना होता है तो वो हमारे सर को सहला कर तारीफ करते हैं। उससे भी आगे बढ़े तो आपके कंधे को थपथपा कर आपको शाबाशी देते हैं ना कि चेहरा छूकर। किसी भी अनजान का गाल छूना या चेहरे पर हाथ फेरना गलत टच में ही आता है।
मोलेस्टेशन को क्रूरतम अपराध ही रहने दें-
राज्यपाल बनवारीलाल ने जो हरकत की उसके लिए उनकी आलोचन बिल्कुल ही होनी चाहिए। लेकिन उन्हें रेपिस्ट या मोलेस्टर के तौर पर दिखाना गलत है। जिस पत्रकार के साथ ये हुआ वो सहज नहीं थीं, उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए इसका विरोध दर्ज किया। लेकिन उसके बाद से जिस तरह से सोशल मीडिया पर और मीडिया चैनलों ने इस बदतमीजी को मोलेस्टेशन का रूप दिया वो सरासर गलत है। उदहारण से समझिए आंतकवाद एक बहुत मुद्दा है। कल को अगर हम एक छोटी सी भी मारपीट को आतंकवाद कहकर संबोधित करें, फिर उस शब्द की अहमियत खत्म होती है। घूरना, गाल थपथपाना, गाली-गलौच, ईव टीजिंग इन सारी बदतमीजियों के लिए मोलेस्टेशन शब्द का इस्तेमाल गलत है। कहीं ना कहीं ये इस शब्द की अहमियत को खत्म कर रहा है।