Lebanon pagers explosion: तकनीक का इतना खौफनाक चेहरा...!
By विकास मिश्रा | Updated: September 24, 2024 05:16 IST2024-09-24T05:16:31+5:302024-09-24T05:16:31+5:30
Lebanon pagers explosion: पेजर का जन्म 1949 में हुआ था लेकिन दुनिया के कई देशों में उसका उपयोग अभी भी हो रहा है.

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Lebanon pagers explosion: लेबनान में करीब-करीब एक ही समय में हजारों पेजर में धमाके और उसके बाद वॉकी-टॉकी तथा सोलर पैनल में हुए धमाकों ने मुझे नॉर्वे के महान शांति समर्थक शिक्षक, राजनीति विज्ञानी और 1921 में शांति के लिए नोबल पुरस्कार के सह विजेता क्रिश्चियन लूस लैंग के एक कथन की याद दिला दी है. उन्होंने कहा था कि ‘टेक्नोलॉजी इज अ यूजफुल सर्वेंट बट अ डेंजरस मास्टर.’ यानी तकनीक उपयोगी नौकर है लेकिन मालिक के रूप में बहुत खतरनाक है. लैंग के इस कथन के करीब सौ साल बाद यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि तकनीक हमारी जिंदगी की मालिक बनती जा रही है और रह-रह कर उसका भयावह चेहरा सामने आ रहा है. तकनीक कब कहां किस रूप में किसकी जान ले सकती है, यह कहना कठिन है. मुझे तो लगता है कि कोई सुरक्षित नहीं है.
हम सब इस बात से वाकिफ हैं कि अत्याधुनिक मोबाइल फोन को कहीं से भी ट्रैक किया जा सकता है. उसकी लोकेशन को आधार बनाकर हजारों मील दूर मिसाइल हमला किया जा सकता है. यही कारण है कि लेबनान के चरमपंथी संगठन हिजबुल्लाह ने तय किया कि संचार के लिए मोबाइल नहीं बल्कि पेजर का इस्तेमाल किया जाए.
आज की युवा पीढ़ी ने पेजर नहीं देखा होगा क्योंकि भारत में मोबाइल आने के पहले दो-तीन साल ही पेजर का इस्तेमाल हुआ. उसके बाद मोबाइल ने पेजर का खेल खत्म कर दिया. पेजर का जन्म 1949 में हुआ था लेकिन दुनिया के कई देशों में उसका उपयोग अभी भी हो रहा है. पुरानी तकनीक होने के कारण उसके लोकेशन का पता नहीं लगाया जा सकता. इसीलिए हिजबुल्लाह ने इसका इस्तेमाल शुरू किया.
लेबनान में पेजर विस्फोट को लेकर हालांकि इजराइल ने कुछ भी नहीं कहा है लेकिन सब यही मानकर चल रहे हैं कि इसके पीछे मोसाद जैसी दुनिया की सबसे तेजतर्रार अैर खौफनाक खुफिया एजेंसी का ही हाथ है. माना जा रहा है कि हिजबुल्लाह ने पिछले साल किसी समय ताइवान की एक कंपनी को पांच हजार पेजर के ऑर्डर दिए.
हालांकि कंपनी कह रही है कि ये उसके पेजर नहीं हैं. कुछ लोग कह रहे हैं कि पेजर हंगरी में बने थे. जो भी हो, विशेषज्ञ इस बात पर एकमत हैं कि निर्माण से लेकर हिजबुल्लाह के पास पेजर के पहुंचने के दौरान किसी समय पेजर में किसी चिप के रूप में कुछ ग्राम विस्फोटक चिपका दिए गए और उसे अल्फान्यूमेरिक कोड से एक्टिवेट करने की व्यवस्था कर दी गई.
जब ये पेजर हिजबुल्लाह कमांडर्स के पास पहुंच गए तो वक्त के हिसाब से इनमें मैसेज भेजकर करीब तीन हजार पेजर्स में विस्फोट कर दिया गया. लोगों ने मैसेज देखने के लिए पेजर को हाथ में लिया, चेहरे के पास रखा इसलिए सैकड़ों लोगों की आंखें चली गईं. लेबनान के एक डॉक्टर ने कहा कि तीन दशक के अपने चिकित्सकीय कार्यकाल में उसने जितनी आंखें नहीं निकालीं, वो एक रात में निकालनी पड़ीं.
वह चिकित्सक सदमे में है. तकनीक के माध्यम से किए गए इस बिल्कुल नए तरह के हमले ने पूरी दुनिया को सकते में डाल दिया है. जब पचहत्तर साल पुरानी तकनीक का इस्तेमाल करके इस तरह का टार्गेटेड हमला किया जा सकता है तो जरा सोचिए कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस जमाने में हमलावर क्या-क्या नहीं कर सकते!
अभी तक तो हम अणु, परमाणु और हाइड्रोजन बम को लेकर ही चिंतित रहते थे लेकिन अब तो सही मायनों में मोबाइल भी भयभीत करने लगा है. कुछ जगहों से यह भी खबर आई है कि सोलर पैनल में विस्फोट हो गए. अभी यह पता नहीं है कि ये सोलर पैनल क्या किसी देश से आयात किए गए थे? लगता तो यही है! लेकिन सोलर पैनल में विस्फोट ने चिंतित कर दिया है.
सोलर पैनल से लेकर सोलर पैनल बनाने के कंपोनेंट, इन्वर्टर तक हम चीन से आयात कर रहे हैं. यह बात जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि यदि आपने पूरी तरह भारत में निर्मित सोलर पैनल भी लगाए हैं और इन्वर्टर भी भारतीय है तो भी उसमें चीन का हस्तक्षेप है क्योंकि उसके लिए एजेंसियां चीनी एप का इस्तेमाल करती हैं.
यह बात भी आप जानते ही हैं कि भारतीय बाजार में कम बजट के मोबाइल फोन की बिक्री में चीन का भारी दबदबा है. इतना ही नहीं हर इलेक्ट्रॉनिक सामान में चीन हमारे देश में छाया हुआ है. चीन की जो दैत्य वाली विचारधारा है, उसमें मानवता के लिए कोई जगह नहीं है. इसीलिए मेरे मन में कई बार यह काल्पनिक सवाल पैदा होता है कि यदि कभी चीन से हमारा युद्ध हुआ तो वह क्या-क्या कर सकता है?
चीन पर एप के सुनने वाले फीचर से जासूसी के आरोप लगते रहे हैं. ऐसे में क्या किसी अनहोनी की आशंका से इनकार किया जा सकता है? ऐसी स्थिति में हम क्या करेंगे? इसलिए पेजर के माध्यम से किया गया हमला केवल लेबनान का मामला नहीं है. यह पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है. मानवता के लिए चिंता का विषय है.
हम संचार के जिस साधन का इस्तेमाल अपनी जिंदगी को आसान बनाने के लिए कर रहे हैं, वही जानलेवा बन जाए तो इससे बुरी स्थिति और क्या हो सकती है. पूरी दुनिया को मिलकर गंभीरता के साथ सोचना होगा कि जिस तकनीक को हमने जन्म दिया वह हमारे लिए भस्मासुर न बन जाए.