अवधेश कुमार का ब्लॉगः लखीमपुर हिंसा मामले के आरोप पत्र से उठते सवाल
By अवधेश कुमार | Published: January 6, 2022 02:56 PM2022-01-06T14:56:15+5:302022-01-06T14:56:27+5:30
हम सबको न्यायालय की कार्यवाही तथा फैसले की प्रतीक्षा करनी चाहिए। उच्चतम न्यायालय की निगरानी होने के कारण फैसला भी जल्दी आ जाएगा।
लखीमपुर हिंसा मामले में विशेष जांच टीम द्वारा दायर आरोप पत्न को स्वीकार करें तो केंद्रीय गृह राज्यमंत्नी अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्र उर्फ मोनू ने जानबूझकर पूरी घटना को अंजाम दिया। आरोपपत्न के अनुसार आशीष मिश्र ने षड्यंत्र करते हुए हिंसा को अंजाम दिया और उसने 12 लोगों को शामिल कर वारदात की तैयारी 3 अक्तूबर से पहले ही कर ली थी। यह बात हैरत में डालती है एक पढ़ा-लिखा युवक जिसका परिवार राजनीति में हो, इतना अव्यावहारिक और नासमझ होगा कि वह इस तरह का अपराध करेगा। अगर आरोप साबित हो गए तो उसे आजीवन कारावास की सजा भुगतनी पड़ेगी। उसके सहित जो 13 अन्य आरोपी हैं उनमें भी कई की दशा ऐसी ही होगी। इन पर हत्या, हत्या की कोशिश, अंग-भंग करना, अवैध हथियार रखना और शस्त्र कानून की धाराओं के तहत कई आरोप लगाए गए हैं।
जैसा कि हम सब जानते हैं, 3 अक्तूबर को वहां हुई हिंसा में कृषि कानून का विरोध कर रहे चार और एक पत्नकार सहित 8 लोगों की मृत्यु हुई थी। इनमें तीन भाजपा कार्यकर्ता थे। इसमें चार आंदोलनकारी और एक पत्रकार की हत्या के मामले में जो प्राथमिकी दर्ज थी, उसी का आरोप पत्र दायर हुआ है।
हम सबको न्यायालय की कार्यवाही तथा फैसले की प्रतीक्षा करनी चाहिए। उच्चतम न्यायालय की निगरानी होने के कारण फैसला भी जल्दी आ जाएगा। लेकिन यहां कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर ढूंढ़ना पड़ेगा। आशीष मिश्र पढ़ा-लिखा है। उसका परिवार राजनीति में है। उसे इतना तो पता होगा कि अगर भीड़ के बीच गाड़ियां लेकर पहुंचेगा, गोलियां चलाएगा तो उसकी भी जान जा सकती है। इनकी गाड़ियों के काफिले में भीड़ से ज्यादा लोग थे नहीं। सरेआम इस तरह का दुस्साहस वही करेगा जो मानसिक रूप से किसी न किसी तरह के असंतुलन का शिकार हो। क्या आशीष को क्षण भर भी यह आभास नहीं हुआ कि उतनी भीड़ में अगर उसने किसी को मारा, हत्या की या कुचला और पकड़े गए तो उनको कोई बचा नहीं सकता। क्या सत्ता का मद इतना हो सकता है कि व्यक्ति इस सीमा तक सोच ले कि सरेआम भी हमने किसी को मार दिया तो हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा? वर्तमान भारतीय राजनीति में अब बाहुबलियों का पहले जैसा वर्चस्व नहीं है कि आप सरेआम अपराध करके बिल्कुल सुरक्षित बच जाएं। किसी भी परिस्थिति में अगर यह जानबूझकर की गई हिंसा है तो भी और नहीं है तो भी हम सबके लिए इसमें कई सबक निहित हैं। नेताओं को अपने परिवार और बच्चों को लेकर ज्यादा सतर्कऔर सावधान होने की आवश्यकता इस पूरे कांड ने फिर से जता दी है।